शशि झा।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता रहा है। पर विडंबना यह है कि प्रिंट से लेकर इलैक्ट्रानिक तक कमोबेश इनके सभी अहम समूहों के मालिक बड़े पूंजीपति, उद्योगपति और बड़े बिजनेसमैन रहे हैं। कोढ़ मे खाज यह है कि पिछले कुछ वर्षों में चिट फंड, रियल एस्टेट से जुड़े धंधेबाजों ने मीडिया पर लगभग एकाधिकार ही कर लिया है। ऐसी सूरत में पत्रकारिता या लेख के टॉपिक की बात करें तो बिजनेस रिपोर्टिंग यानी कॉरपोरेट, फाईनेंशियल या कॉमर्स रिपोर्टिंग कितने प्रकार के दबाव से गुजरती होगी, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था लगातार अपनी वित्तीय प्रणाली को सुधार रही है और इसी के अनुरूप बेहतर कॉरपोरेट रिपोर्टिंग की जरूरत भी बढ़ रही है कि वह निवेशकों, कंपनियों, आम लोगों और सभी पक्षों से जुड़ी जानकारी संबंधित जरूरतों को पूरी करें।
बिजनेस रिपोर्टिंग के मूल में है निवेश यानी सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र की कंपनियां कहां निवेश कर रही हैं, अपने निवेश से वह कितने रिटर्न की उम्मीद कर रही है, कौन-सी परियोजनाएं लगा रही हैं, कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के मोर्चे पर वह क्या कर रही हैं, इन सबकी जानकारी प्राप्त करने को ज्यादा तवज्जो दिए जाने की जरूरत है। बिजनेस रिपोर्टिंग के संदर्भ में यहां एक बेहद गौरतलब बात कही जाती है और वह यह कि कोई भी कंपनी जिस बात को प्रेस विज्ञप्तियों, संवाददाता सम्मेलनों या इंटरव्यू के जरिये जानकारी देने की कोशिश कर रही है, वह उसका विज्ञापन है। खबर दरअसल वह है जिसे वह छुपाने की जुगत में लगी होती है और एक अच्छे रिपोर्टर का काम इसी तथ्य को बाहर लाने का होता है। मसलन अगर कोई बीमा कंपनी है तो उससे सवाल बीमा दावों के निपटान की संख्या, आने वाली शिकायतों, निपटान के तरीकों पर पूछे जाने चाहिए, बाकी पहलुओं से कम। पर कंपनिया, खासकर, निजी क्षेत्र की कंपनियां कोई कम घाघ तो होती नहीं है।
अपने हितों को पूरा करने के लिए किस हद तक जा सकती हैं, हाल का जासूसी कांड इसका एक बड़ा उदाहरण है। पर छोटे-छोटे उदाहरण तो लंबे समय से भरे पड़े हैं। कंपनियों के पब्लिक रिलेशन विभाग यानी पीआर पत्रकारों कोशिशे में उतारने की कला में माहिर होते हैं। जैसा कि उनका दावा होता है तीन ‘डब्ल्यू’ की मदद से वे ज्यादातर पत्रकारों को साधे रहते हैं। इन तीन डब्ल्यू में एक डब्ल्यू यानी वेल्थ यानी गिफ्ट सबसे आमफहम है और कंपनियों इसे बांटती नहीं अघाती। इस हमाम में सभी नंगे हैं, सरकारी क्षेत्र की कंपनियां भी गेट टूगेदर, सालाना जलसों और होली-दीवाली के नाम पर तो निजी क्षेत्र की कंपनियां छोटे-छोटे गिफ्ट से लेकर देश विदेश के दौरों तक का इंतजाम पत्रकारों, खासकर रिपोर्टरों को खुश करने के लिए किया करती हैं।
आज की तारीख में कॉरपोरेट रिपोर्टिंग के सफेद चेहरे कम, स्याह चेहरे ज्यादा दिखते हैं। आप चाहे लाख बेरोजगारी, नौकरी के लिए असुरक्षा, परिवार चलाने के बोझ की दुहाई दें, अगर ऐसे में आप कहीं भी डिगते हैं तो यह कहीं न कहीं आपकी अपनी नैतिक दुर्बलता को ही प्रदर्शित करता है, जिस पर विजय पाने के लिए आपको ही प्रयास करने की जरूरत है। दरअसल, कॉरपोरेट रिपोर्टिंग करना, वो भी आज के बेहद कठिन दौर में, दोधारी तलवार पर चलने से कम नही है।
आप जिस भी मीडिया समूह में काम करते हैं, वह चाहे विजुअल हो या प्रिंट, आज के जमाने में उसके अन्यत्र व्यावसायिक हित भी होते ही हैं, और उन हितों को साध्ने की जिम्मेदारी अब पॉलिटिकल से ज्यादा कॉरपोरेट रिपोर्टरों पर लरजने लगी है। ऐसी स्थिति में अपनी नैतिकता, अपने जमीर को बनाये रखते हुए तथा तमाम तरह के लोभों एवं लाभों का संवरण करते हुए निष्पक्ष एवं संतुलित रिपोर्टिंग करना काफी दुष्कर काम बनता जा रहा है। जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों यानी सरकारी कंपनियों का सवाल है तो पहले भी और अब भी वहां खबरें निकालना या सूत्र बनाना कोई आसान काम नही है। इसके लिए कई सालों या दशक लग जाते हैं और निरंतर प्रयास करते रहना पड़ता है तब कहीं जाकर कोई ढंग की यानी आम लोगों के हितों से संबंधित कोई खबर या किसी घपले की भनक लग पाती है।
यह तो राजधानी का मामला है, राज्यों और वह भी स्थानीय स्तर पर रिपोर्टिंग का मिजाज कुछ अलग होता है। सरकारी या निजी क्षेत्र की कंपनियों की कोई बड़ी पहल या नीति संबंधित कदमों का फैसला तो बेहद ऊपर के स्तर पर ही होता है। हां, उसके स्थानीय प्रभावों या फिर किसी स्थानीय कंपनी के बारे में जानकारी अपेक्षाकृत आसानी से प्राप्त हो सकती है क्योंकि स्थानीय स्तर पर पत्रकारों की पहुंच भी ज्यादा होती है और उसका असर रसूख भी। कॉरपोरेट, कॉमर्स रिपोर्टरों के लिए बेहतर यही है कि वे इस क्षेत्र से जुड़े देशी-विदेशी शब्दावलियों, विशिष्ट टर्म्स, उनके अर्थो, निहितार्थों का निरंतर अध्ययन करते रहें और अपने को अपडेट रखें। जो भी आपकी ‘बीट’ हो, उन मंत्रालयों, विभागों, उनसे जुड़ी सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों सबके बारे में पुख्ता जानकारी रखें।
अपने विषय वस्तु पर आपकी पकड़ हो जिससे कि जिसका आप साक्षात्कार करें, वह शख्स भ जानकर मान कर आपको संजीदगी से ले। और सबसे बड़ी बात कि आपके नाम की विश्वसनीयता हो जिससे कि आपका पाठक आपका नाम पढ़कर आपका लेख पढ़ने को उत्सुक हो जाए।
साभार : प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के प्रकाशन ” The Scribes World सच पत्रकारिता का”. लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सदस्य हैं।