शैलेश और डॉ. ब्रजमोहन।
टेलीविजन पर दर्शकों को सभी खबरें एक समान ही दिखती हैं, लेकिन रिपोर्टर के लिए ये अलग मायने रखती है। एक रिपोर्टर हर खबर को कवर नहीं करता। न्यूज कवर करने के लिए रिपोर्टर के क्षेत्र (विभाग) जिसे तकनीकी भाषा में ‘बीट’ कहा जाता है, बंटे होते हैं और वो अपने निर्धारित विभाग के लिए ही काम करता है।
रिपोर्टिंग दो प्रकार की होती है। एक तो जनरल रिपोर्टिंग या रूटिन रिपोर्टिंग कहलाती है, जिसमें मीटिंग, भाषण, समारोह जैसे कार्यक्रम कवर किए जाते हैं। दूसरी होती है खास रिपोर्टिंग। खास रिपोर्टिंग का दायरा काफी बड़ा है। इसमें राजनीति, व्यापार, अदालत, खेल, अपराध, कैंपस (कॉलेज, विश्वविद्यालय की गतिविधियां), स्थानीय निकाय, फिल्म, सांस्कृतिक और खोजपरक (Investigative) गतिविधियां आती हैं।
राजनीतिक रिपोर्टिंग के तहत पार्टियों के प्रेस कॉन्फ्रेंस, संसद, विधानसभा, मंत्रालय, राजनीतिक पार्टियां और उसके नेता, राजनयिकों और दूसरे देशों की राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। आमतौर पर राजनीतिक रिपोर्टिंग का जिम्मा वरिष्ठ पत्रकारों को सौंपा जाता है।
व्यापार और आर्थिक खबरों को कवर करने वाले रिपोर्टरों के लिए जरूरी है कि उन्हें अर्थशास्त्र, कॉमर्स की अच्छी समझ हो। अर्थ व्यवस्था से जुड़़ी तकनीकी बातें आम लोगों से जुड़ी हुई होती हैं, लेकिन लोगों को इसका सही ज्ञान नहीं होता। सरकार का कौन सा आर्थिक कदम लोगों के लिए फायदेमंद है और कौन सा नुकसान पहुंचाने वाला, सरकार की आर्थिक नीतियों का आने वाले दिनों में क्या असर होगा, इसे आसान भाषा में लोगों तक वही रिपोर्टर पहुंचा सकता है, जिसकी आर्थिक पहलुओं पर पकड़ मजबूत होगी। अर्थशास्त्र की जानकारी रखने वाले विद्यार्थियों के लिए बिजनेस रिपोर्टर बनना एक बढि़या विकल्प है।
अदालत- बहुत सी खबरें ऐसी होती है, जिनका स्रोत अदालतें होती हैं। अदालत में कई तरह के ऐसे मामले दायर होते हैं या फैसले होते हैं, जिनका आम आदमी की जिन्दगी से भले ही सरोकार न हो, लेकिन उसे जाने की जिज्ञासा सभी लोगों में होती है। इसलिए अदालत की खबरों को गवर करने का जिम्मा ज्यादातर ऐसे रिपोर्टर को सौंपा जाता है जिसे कानून की जानकारी हो। कानून की पढ़ाई कर चुके विद्यार्थियों के लिए कोर्ट की रिपोर्टिंग आसान होती है। अदालती खबरों को कवर करने से पहले रिपोर्टर को अदालत की अवमानना (अपमान) का कानून अच्छी तरह जान लेना चाहिए।
खेल- खेलों में आमतौर पर सभी की दिलचस्पी होती है और खेल टीवी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है। ये एक ऐसा विषय है, जिसमें अमूमन सभी लोगों की रूचि होती है। ये जरूरी नहीं है कि खेल पत्रकार बनने के लिए रिपोर्टर खुद भी खिलाड़ी हो। लेकिन ये जरूरी है कि रिपोर्टर को क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और टेनिस जैसे लोकप्रिय खेलों की बारीकी से समझ हो। उसे खेलों के तकनीकी शब्दों का भी भरपूर ज्ञान होना चाहिए और दुनियाभर में होने वाले खेल टूर्नामेंटों पर बराबर नजर रखनी चाहिए। परवेज अहमद कहते हैं कि खेल दरअसल भरपूर एक्शन है इसलिए इस क्षेत्र के रिपोर्टर को भी ज्यादा एक्टिव रहने की जरूरत होती है। अच्छा खेल रिपोर्टर वही है, जो हर खेल की बारीकियों को समझता है, साथ ही खेल की तकनीक, खिलाडि़यों, खेल जगत के बदलते माहौल, खेल प्रशासन और खेल सियासत पर भी पैनी नजर रखता है।
अपराध की खबरों को कवर करने वाले रिपोर्टर से आईपीसी, सीआरपीसी की जानकारी रखने की उम्मीद की जाती है। साथ ही जरूरी है कि पुलिस प्रशासन में भी उसकी अच्छी पैठ हो।
कैंपस (कॉलेज, यूनिवर्सिटी), स्थानीय निकाय (नगर निगम, नगरपालिका) की खबरों को कवर करने का जिम्मा कम अनुभवी रिपोर्टरों को सौंपा जाता है। ज्यादातर नए रिपोर्टर इन्हीं विभागों का चक्कर लगाकर अपने करियर की शुरूआत करते हैं।
फिल्म और सांस्कृतिक गतिविधियां खास रिपोर्टर कवर करते हैं। इस फील्ड में काम करने के लिए जरूरी है कि रिपोर्टर को सिनेमा और टीवी में इंटरटेनमेंट से जुड़ी तमाम बातों की जानकारी हो। फिल्मों या टीवी सीरियलों में काम करने वाले हीरो-हिरोइन सेलिब्रेटी होते है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की इन पर नजर होती है और इनकी हर छोटी-बड़ी बातों में लोगों की रूचि होती है। इसके अलावा देश-विदेश के संगीत, नृत्य और दूसरी सांस्कृतिक गतिविधियों की बारीकी से जानकारी भी जरूरी है । सांस्कृतिक गतिविधियां भी इंसान की जिन्दगी का हिस्सा हैं और लोगों का इससे मनोरंजन होता है। इसी से जुड़ा एक और क्षेत्र है लाइफ स्टाइल और फैशन, जिस पर पैनी नजर रखने वाला रिपोर्टर अच्छा नाम कमा सकता है।
इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग – खास रिपोर्टिंग में खोजपरक (इन्वेस्टिगेटिव) रिपोर्टिंग सबसे चुनौती भरा काम है। इसके जरिए रिपोर्टर पर्दे के पीछे की असली कहानी लोगों के सामने लाता है। इसमें सार्वजनिक जगहों, संस्थाओं में जारी भ्रष्टाचार या ऐसे मामले आते हैं, जिसमें ज्यादा लोगों की रूचि हो। आमतौर पर इसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक अपराध और विकास से जुड़े मामले शामिल होते हैं।
दूसरी रिपोर्टिंग से इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग इस मायने में भी अलग है, क्योंकि इसमें परिस्थितियां अलग होती हैं। सब कुछ गुपचुप होता रहता है और आरोपी की कोशिश होती है कि वो कोई सबूत नहीं छोड़े। इसमें सवाल पूछने का तरीका भी अलग होता है। खबर निकालनी हो, तो आरोपी से सीधे नही पूछ सकते कि आप घूस लेते हैं या नहीं।
इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग में आम रिपोर्टिंग से ज्यादा समय, संसाधन और ताकत खर्च करनी पड़ती है। क्योंकि जरूरी नहीं है कि एक या दो बार की कोशिश में ही रिपोर्टर पूरी खबर निकाल लाए। साथ ही इसमें सारी जानकारी रिकॉर्ड करनी पड़ती है, ताकि सबूत पुख्ता हों।
स्टिंग ऑपरेशन – इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग का ही एक रूप स्टिंग ऑपरेशन है। टेलीविजन में स्टिंग ऑपरेशन, रिपोर्टिंग की सबसे आधुनिक तकनीक है और ये खबरों की सच्चाई से लोगों को रू-ब-रू कराने का सबसे प्रभावशाली जरिया भी है। ये वो माध्यम है जिसके जरिए समाज के सफेदपोश लोगों, बड़े नेताओं, अफसरों, सेलिब्रिटीज के काले चेहरे उजागर होते रहे हैं। स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर स्पाई या छिपे हुए कैमरे का इस्तेमाल करता है और टारगेट व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती कि वो, जो कुछ बोल या कर रहा है, वो सब गुपचुप कैमरे में कैद भी हो रहा है। कई तरह के स्पाई कैमरे बाजार मे मिलते हैं। इन्हें कलम, टाई से लेकर बटन तक में छिपाकर रिपोर्टर अपने साथ ले जा सकता है।
भारत में स्टिंग ऑपरेशन की शुरूआत तहलका नाम की एजेंसी ने की थी। इसने बीजेपी में चंदा के नाम पर लाखों रूपये लेने का भंडाफोड़ किया और पार्टी के अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को पद छोड़ना पड़ा था। अलग-अलग न्यूज चैनलों में अब तक कई स्टिंग हो चुके हैं। इसमें आजतक का ‘ऑपरेशन दूर्योधन’, स्टार न्यूज का ‘ऑपरेशन चक्रव्यूह’, IBN7 का ‘ऑपरेशन माया’, एनडीटीवी का ‘ऑपरेशन बीएमडब्ल्यू’ खास माना जा सकता है।
‘ऑपरेशन दूर्योधन’ और ‘ऑपरेशन चक दे’, स्टिंग ऑपरेशन के सबसे अच्छे उदाहरण हैं। ऑपरेशन चक दे में रिपोर्टर ने इंडियन हॉकी फेडरेशन के अधिकारियों को पैसा लेकर खिलाडि़यों का चुनाव करते हुए पकड़ा था और इसका नतीजा ये निकला कि फेडरेशन के अध्यक्ष के.पी.एस. गिल और आरोपी अधिकारियों को पद से हटना पड़ा।
कोबरा पोस्ट और आजतक ने स्टिंग ‘ऑपरेशन दूर्योधन’ के जरिए संसद में सवाल पूछने के लिए सांसदों के घूस लेने का भंड़ाफोड़ कर देश की राजनीति में तहलका मचा दिया था। इस खबर के बाद संसद से ग्यारह सांसदों की सदस्यता भी जाती रही।
कोबरा पोस्ट और आजतक ने भले ही इस खबर को ब्रेक किया, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये खबर रिपोर्टर के पास कैसे पहुंची होगी। निश्चिततौर पर इस खबर को बाहर लाने के लिए रिपोर्टर ने खुफिया तकनीक का असरदार इस्तेमाल किया। सबसे पहले सांसदों के निजी सचिवों या करीबी लोगों से उनके बारे में जानकारी इकट्ठा की। यह पता किया कि सवाल पूछने के लिए सांसद पैसा लेते हैं या नही। प्रारंभिक सूचना तो निजी सचिव या कर्मचारियों से मिल कई, लेकिन रिपोर्टर के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसे साबित करने की थी। इसके लिए उसने स्पाई कैमरे का इस्तेमाल किया। उसने सबसे पहले सांसदों को लिखित सवाल दिए और स्पाई कैमरे के जरिए सवाल को पढ़कर रिकॉर्ड किया, ताकि साबित हो कि संसद में पूछा जाने वाला सवाल रिपोर्टर ने ही दिया है। फिर सवाल को संसद में भिजवाया।
इस काम के लिए सांसदों को इस तरह पैसे दिए कि लेन-देन स्पाई कैमरे में रिकॉर्ड हो जाए। फिर रिपोर्टर ने संसद में सवाल का जवाब आने तक इंतजार किया। सांसद को सवाल देने, उसे संसद में सवाल पूछने के लिए पैसा देने और उसका जवाब आने तक एक सर्कल पूरा हुआ। रिपोर्टर को इस काम में सात-आठ महीने लगे और लोगों तक इस खबर को पहुंचाने के लिए रिपोर्टर को तब तक इंतजार करना पड़ा।
इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग या स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर को जासूस की तरह काम करना पड़ता है। आमतौर पर ये नहीं बताता कि वो रिपोर्टर है, बल्कि वा जिस खबर को कवर कर रहा होता है, उससे जुड़ी किसी काल्पनिक संस्था का प्रतिनिधि बन जाता है। ‘ऑपरेशन दुर्योधन’ के रिपोर्टर एक काल्पनिक व्यापार संगठन के प्रतिनिधि बनकर सांसदों से मिले, तो ‘ऑपरेशन चक दे’ के रिपोर्टर एक काल्पनिक खेल संगठन के प्रतिनिधि बन गए।
टीवी न्यूज में स्टिंग ऑपरेशन शुरू से ही विवाद में रहा है और इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। 2007 में एक चैनल ने दिल्ली में एक स्कूल टीचर का स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था, जिसकी विश्वसनीयता को लेकर खासा बवाल हुआ। इस घटना के बाद सभी टीवी चैनलों ने स्टिंग ऑपरेशन के लिए अपने नियम कड़े कर दिए। बड़े चैनलों में स्टिंग ऑपरेशन के लिए अब एडिटर की इजाजत जरूरी है। कई चैनलों ने तो स्टिंग ऑपरेशन के लिए बाकायदा सर्कुलर जारी कर गाइड लाइन तय कर दी है और जूनियर रिपोर्टरों से स्टिंग ऑपरेशन कराने या उन्हें स्पाई कैमरा इस्तेमाल करने की मनाही कर दी गई है।
आशुतोष के मुताबिक स्टिंग ऑपरेशन खबर करने का एक असरदार तरीका है और उतना ही जरूरी है, जितना खोजी पत्रकारिता के दूसरे तरीके। लेकिन इसका इस्तेमाल तभी होना चाहिए, जब आप इस नतीजे पर पहुंच जाएं कि एक खास खबर को कवर करने के लिए बाकी सभी तरीकों से काम नहीं बनेगा।
उनका ये भी कहना है कि स्टिंग ऑपरेशन में सावधानी बरतने की काफी जरूरत होती है। रिपोर्टर पहले ये सुनिश्चित कर ले, कि वो जिस खबर को करने जा रहा है, वो खबर सही है। वो देख ले कि खुफिया कैमरा और दूसरे सभी सामान (Equipments) दुरूस्त हैं। क्योंकि स्टिंग ऑपरेशन में दूसरा मौका मिलने की संभावना ज्यादा नही होती है। किसी भी नए रिपोर्टर के भरोसे स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम देना खतरे से खाली नही। स्टिंग ऑपरेशन किसी वरिष्ठ पत्रकार की देखरेख में पूरा किया जाना चाहिए।
संदीप चौधरी कहते हैं कि देश, समाज के बड़े हित से जुड़ी खबरों के लिए ही स्टिंग ऑपरेशन किया जाना चाहिए। आम खबरों के लिए स्टिंग ऑपरेशन का इस्तेमाल सही नहीं है।
निजी चैनलों के संगठन, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के स्टिंग ऑपरेशन के लिए गाइडलाइन जारी की है। एनबीए के मुताबिक :
1- स्टिंग ऑपरेशन जनहित में केवल तभी किए जाने चाहिए, जब जरूरी सूचना को हासिल करने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं हो और यह कोई गैरकानूनी तरीका अपनाये बगैर, किसी को प्रलोभन दिे बगैर किया जाना चाहिए। इस दौरान निजता के वैधानिक अधिकारों का ख्याल रखा जाना चाहिए।
2- ब्रॉडकास्टर्स को केवल तभी स्टिंग ऑपरेशन का सहारा लेना चाहिए, जब ऐसा करना संपादकीय दृष्टि से उचित हो और किसी गलत काम का, खास तौर पर सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यक्तियों की सच्चाई को उजागर करना हो।
3- कोई भी स्टिंग ऑपरेशन संपादकीय प्रमुख की सहमति लेकर ही किया जाना चाहिए और ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भी सभी स्टिंग ऑपरेशन के बारे में पूर्व सूचित किया जाना चाहिए।
4- स्टिंग ऑपरेशन किसी अपराध के संबंध में सबूत जुटाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि किसी को लालच देकर अपराध करने के लिए उकसाया जाए।
ब्रेकिंग न्यूज- पल-पल की खबर दर्शक तक पहुंचाना ही कामयाब रिपोर्टर की पहचान है। जैसे ही कोई महत्वपूर्ण घटना घटे, उसे तुरन्त और बाकी चैनलों से पहले अपने दर्शक तक पहुंचाना टीवी रिपोर्टर की सबसे अहम जिम्मेदारी होती है। किसी भी महत्वपूर्ण घटना को तुरन्त दर्शक तक पहुंचाना, ब्रेकिंग न्यूज है। यानी खबर इतनी बड़ी हो, जिसका असर देश और समाज के बड़े तबके पर व्यापक हो। खबर इतनी बड़ी हो कि टीवी पर चल रही तमाम खबरों को रोक दिया जाए और न्यूज व्हील तोड़कर उस खबर को तुरंत दर्शकों तक पहुंचाया जाए। मतलब बड़ी खबर की पहली झलक ब्रेकिंग न्यूज है। खबर की ये पहली झलक, ब्रेकिंग न्यूज की शक्ल में लोगों को चौंकाती है और ऐसी खबरें ही रिपोर्टर को भीड़ में सबसे अलग दिखाती है। इसमें ख्याल रखने वाली बात है कि कोई पुरानी घटना ब्रेकिंग न्यूज नहीं है, लेकिन पुरानी घटना किसी दिलचस्प या नाटकीय मोड़ पर पहुंचती है, तो वो ब्रेकिंग न्यूज हो सकती है।
आशुतोष कहते हैं कि ब्रेकिंग न्यूज माने वो खबर, जो इतनी बड़ी है कि सबको उसकी फौरन जानकारी देना अनिवार्य है। जैसे कि प्रधानमंत्री का इस्तीफा या फिर इस्तीफे की पेशकश या रेल दुर्घटना, जिसमें दर्जनों लोगों की मरने की आशंका हो या कोई आतंकवादी विस्फोट, जिसमें लोगों की जान गई हो। ब्रेकिंग न्यूज दर्शकों को फौरन बतानी होती है, इसलिए रिपोर्टर के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है, खबर को सही-सही देने की और खबर देते समय भाषा के इस्तेमाल में संयम बरतने की। खबरों मे एकुरेसी तो वैसे भी जरूरी है, लेकिन ब्रेकिंग न्यूज, जैसे कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे की बात गलत हो जाए, तो आप समझ सकते हैं कि ये कितनी गैरजिम्मेदाराना और खतरनाक बात हो सकती है। ब्रेकिंग न्यूज में स्पीड के साथ एकुरेसी और भाषा पर संयम रिपोर्टर के लिए बड़ी चुनौती है।
प्रबल प्रताप सिंह के मुताबिक खबर अपनी अहमियत खुद बताती है। हर वो खबर ब्रेकिंग न्यूज है, जो किसी न किसी रूप में लोगो को झकझोड़े, अचंभित करे और सोचने पर मजबूर करे।
रिपोर्टर की प्रतिभा की असली पहचान ब्रेकिंग न्यूज से ही होती है। क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज अचानक होने वाली बड़ी घटना है, जिसे सटीक और सही तरीके से दर्शकों तक पहुंचाना, किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। ब्रेकिंग न्यूज चौकाने वाली वो सूचना है, जिसे एक रिपोर्टर सबसे पहले अपने दर्शकों तक पहुंचाता है और ये काम एक गुमनाम पत्रकार भी, जो भले ही किसी कस्बे में क्यों न रहता हो, बखूबी कर सकता है। ये सोचना गलत है कि ब्रेकिंग न्यूज सिर्फ बड़े शहरों में ही मिल सकती है।
देश-दुनिया को प्रभावित करने वाली घटनाएं कहीं भी हो सकती हैं और नजर पैनी हो, तो इसे सबसे पहले लोगों के सामने लाकर एक अदना पत्रकार भी रातोंरात दुनिया की नजर में हीरो बन सकता है। नोएडा के निठारी गांव से बच्चों के गायब होने की खबरें लगातार आ रही थीं, लेकिन शुरूआती दौर में किसी रिपोर्टर ने इसकी गहराई से छानबीन नहीं की, नहीं तो, ये केस पुलिस की तफ्तीश से नहीं, टीवी रिपोर्टर के कैमरे से सबसे पहले लोगों के सामने आता।
ब्रेकिंग न्यूज के लिए आसपास की घटनाओं पर नजर रखना जरूरी है और इसके लिए टीवी रिपोर्टर को भी नियमित रूप से अखबार पढ़ना चाहिए। अखबारों में छपी एक छोटी सी खबर भी हलचल मचा सकती है। अखबारों पर सिर्फ पैनी नजर रखने की जरूरत होती है। कई बार अनायास ही रिपोर्टर के हाथ बड़ी खबर लग सकती है। छोटी-मोटी खबरों की पड़ताल के दौरान ऐसा संभव हो सकता है। यहां पर एक बात मजाक लग सकती है, लेकिन कुत्ते की तरह रिपोर्टर में भी न्यूज सूंघने की क्षमता हो, तो साधारण रिपोर्टर भी रातोंरात मीडिया में हीरो बन सकता है।
पुरानी महत्वपूर्ण खबरों पर नजर भी, रिपोर्टर को ब्रेकिंग न्यूज दे सकती है। ज्यादातर बड़ी खबरें भी दो-चार दिन सुर्खियों में रहने के बाद टीवी स्क्रीन से गायब हो जाती हैं। लोग भी उस खबर को भूल जाते हैं और रिपोर्टर भी उसे नजरअंदाज कर देता है। लेकिन घटना की जांच-पड़ताल तो चलती रहती है और उसका लगातार फॉलोअप किसी न किसी दिन रिपोर्टर को ब्रेकिंग न्यूज दे सकता है। किसी बड़े नेता या सेलिब्रिटी के विवादास्पद बयान भी ब्रेकिंग न्यूज हो सकते हैं।
सावधानियां
ब्रेकिंग न्यूज के लिए कुछ सावधानियां हैं, जिसका पालन करना हर रिपोर्टर का फर्ज है।
ब्रेकिंग न्यूज की पुष्टि होते ही रिपोर्टर को सबसे पहले इसकी जानकारी असाइनमेंट डेस्क को देनी चाहिए। उसे खबर की मुख्य बातें जरूर नोट करा देनी चाहिए, ताकि सही खबर ही दर्शकों तक जाए। रिपोर्टर की फोन पर दी गई जानकारी, न्यूज रूम में कई हाथों से होती हुई दर्शकों तक पहुंचती है और ये लिखी हुई न हों, तो डेस्क पर गलती की गुंजाइश बढ़ जाती है।
परवेज अहमद कहते हैं कि ब्रेकिंग न्यूज सबसे पहले रिपोर्टर को ही चौंकाती है और चन्द लम्हों में ही रिपोर्टर को तौलना होता है कि वो खबर दर्शकों तक पहुंचाए या नहीं। खबर कितनी भी बड़ी हो, उसे भेजने की जितनी भी जल्दी हो, रिपोर्टर का पहला फर्ज है कि उसकी पुष्टि करे। रिपोर्टिंग का सबसे अच्छा फॉर्मूला है कि गलत खबर देने से बेहतर है कि खबर न दी जाए। इसलिए ब्रेकिंग न्यूज में जल्दबाजी की जगह अच्छा है कि थोड़ी देर से ही दर्शकों को सच्ची और पूरी खबर दी जाए।
रिपोर्टर को चाहिए कि अपने सूत्र से सुनिश्चित किए बिना खबर ब्रेक न करे। अनुमान पर चलना खतरनाक हो सकता है। सूत्र से खबर की पुष्टि हर हाल मे होनी चाहिए। जिस खबर पर तनिक भी सन्देह हो, वो खबर किसी भी रूप में दर्शकों तक नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। अधूरी जानकारी पर खबर ब्रेक न करें।
ब्रेकिंग न्यूज देने से पहले याद रखें। खबर देने वाला स्रोत, रिपोर्टर को मूर्ख भी बना सकता है। मुमकिन है कि वो रिपोर्टर को किसी विवाद में फंसाना चाहता हो। इसलिए खबर की सावधानी से जांच करें। खबर की सच्चाई के बारे में पूरी तरह पता करें और उसकी गुत्थियों को समझने के लिए रिपोर्टर अपने दिमाग का इस्तेमाल जरूर करें, ताकि किसी झंझट में न फंसे। याद रखें, खबरों के मामले में लापरवाही की कोई माफी नहीं है।
खबर साम्प्रदायिक मुददे से जुड़ी हो तो, ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। ध्यान रखें,
– खबर में सीधे तौर पर सम्प्रदायों के नाम का उल्लेख न करें।
– खबर किसी एक सम्प्रदाय का पक्ष लेता हुए न दिखे। – खबर से रिपोर्टर और चैनल की निष्पक्षता पर आंच न आए। – भाषा संयमित हो, भावनाओं को भड़काने वाली न हो। – तथ्यों में पूरी सच्चाई हो।
न्यूज फ्लैश- ब्रेकिंग न्यूज की तरह न्यूज फ्लैश का भी टीवी न्यूज में खास अहमियत है। आशुतोष के मुताबिक न्यूज फ्लैश यानी वो खबर जो ज्यादा बड़ी न हो, लेकिन दर्शकों को फौरन बताना जरूरी हो। उनका कहना है कि इसके लिए न्यूज व्हील तोड़ना जरूरी नही है।
स्पेशल स्टोरी- किसी विषय या मौके पर की गई खास स्टोरी स्पेशल स्टोरी कहलाती है। कई बार सामाजिक सरोकार का कोई मुददा इतना अधिक चर्चित हो जाता है कि लोग उसके बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं। मसलन श्रीलंका में भारत वनडे सीरीज जीतकर पहली बार इतिहास बनाता है और कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की कामयाबी में एक और सितारा जुड़ जाता है। ऐसे में धोनी के क्रिकेट सफर पर स्पेशल स्टोरी दिखाई जा सकती है। विदर्भ या बुंदेलखंड में सूखे की मार झेल रहे किसानों की मुश्किलों पर बनाई गई स्पेशल स्टोरी, समाज के हर तबके का ध्यान खींच सकती है।
एक्सक्लूसिव- एक्सक्लूसिव रिपोर्ट, रिपोर्टर की खास स्टोरी होती है। एक्सक्लूसिव खबर का मतलब है कि वो खबर किसी और चैनल या अखबार के पास नहीं है।
आशुतोष कहते हैं ऐसी खबरें एक्सक्लूसिव हैं, जो सिर्फ आपके पास या फिर आपके चैनल या अखबार के पास ही हो। वो खबर दूसरों के पास नहीं है।
इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि खबर खास होने के साथ ही, उसका आयाम भी इतना बड़ा होना चाहिए कि दर्शकों के बड़े हिस्से को उसे जानने की दिलचस्पी हो। राज्य, देश या दुनिया के बड़े हिस्से पर उसका प्रभाव हो, और मुददा कहीं न कहीं जनहित से भी जुड़ा हो। उसमें दी जा रही जानकारी बिल्कुल नई हो, और वो अपने दर्शकों को सावधान और सचेत करने के साथ, उनकी जानकारी भी बढ़ाती हो।
एक्सक्लूसिव खबरें- आम खबरों से अलग हटकर होती हैं और इसका संदेश भी खास होता है। ऐसी खबरें आर्थिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक किसी भी क्षेत्र की हो सकती है।
फॉलोअप- किसी घटना के खत्म होने के बाद, उसमें होने वाले विकास पर नजर रखना फॉलोअप कहलाता है। उदाहरण के लिए किसी सनसनीखेज हत्या के बाद पुलिस की जांच-पड़ताल और अदालत में अंतिम फैसले तक उस पर नजर रखना फॉलोअप कहलाएगा। बड़ी घटनाओं में दर्शकों में उत्सुकता बनी रहती है और वो उस घटना का अंजाम भी जानना चाहते हैं।
कोई जरूरी नहीं कि घटना के सामने आते ही उसके बारे में पूरी जानकारी मिल जाए या उस पर लोगों की प्रतिक्रिया तुरंत मिल जाए। इसलिए हर बड़ी घटना पर लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत होती है। खबर पर नजर रखने और उसमें लगातार होने वाले डवलपमेंट से लोगों को अपडेट करते रहना ही फॉलोअप है।
फॉलोअप सिर्फ बड़ी खबरों की ही होनी चाहिए। खबर से जुड़ी हर नई बात स्टोरी में शामिल होनी चाहिए। इससे लोगों को घटना के बारे में ताजा जानकारी मिलती रहेगी और स्टोरी में ताजगी बनी रहेगी।
फॉलोअप इसलिए भी जरूरी है कि हर घटना एक क्रम से घटित होती है। शुरूआती दौर में खबर को पूरा मान लेना नासमझी होगी। हर रोज कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसका दूरगामी असर होता है और ऐसी खबरों पर लगातार नजर रखने की जरूरत भी होती है। रिपोर्टर को ध्यान रखना चाहिए कि खबर चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, उस पर लगातार नजर नहीं रखी जाए और घटनाक्रम में होने वाले डवलपमेंट को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो उस खबर का व्यापक असर नहीं हो सकता।
किसी भी घटना का तभी महत्व है, जब वो लोगों को प्रभावित करे। एक पूरी खबर, लोगों को केवल ये ही नहीं बताती कि क्या हुआ है, बल्कि क्यों हुआ, और उस घटना का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किन लोगों पर असर हुआ, इसकी भी जानकारी देती है। इसके अलावा खबर की अहमियत तभी है, जब ये भी पता चले कि उसका दूरगामी असर क्या होगा।
रिपोर्टर को ध्यान रखना चाहिए कि कई बार फॉलोअप की स्टोरी, पहली स्टोरी से बेहतर हो सकती है और फॉलोअप वाली स्टोरी का असर भी पहली स्टोरी से व्यापक हो सकता है। इसलिए उसे अपनी किसी भी स्टोरी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मुमकिन है कि फॉलोअप वाली स्टोरी से ही रिपोर्टर को स्कूप मिल जाए।
फॉलोअप की अहमियत अमेरिका के वॉटरगेट काण्ड से समझी जा सकती है। कहानी चोरी की एक छोटी घटना से शुरू हुई थी, लेकिन रिपोर्टर ने लगातार अपनी पड़ताल जारी रखी और वॉटरगेट स्कैंडल सामने आया। मतलब कोई घटना होती है, तो तत्काल उस घटना की अहमियत खुलकर सामने नहीं आती। सरकार, प्रशासन या आरोपी, बहुत सी जरूरी बातें छिपा लेते हैं। लेकिन लगातार पड़ताल के बाद उस घटना की असली कहानी तभी सामने आती है, जब रिपोर्टर ये जानने की कोशिश करे कि पर्दे के पीछे कुछ और भी जानकारी है या नहीं। फॉलोअप खासतौर पर उन हालात में बहुत जरूरी है, जब घटना तुरन्त घटी हो और उससे जुड़े कुछ सवालों का जवाब नहीं मिल रहा है। जरूरी है कि घटनाक्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाए, दर्शकों तक उसी क्रम में जानकारी भी पहुंचाई जाए। अगर इस तरह न्यूज कबर हो, तो दर्शकों के बीच रिपोर्टर और चैनल की विश्वसनीयता बढ़ती है।
शैलेश: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान दैनिक जागरण के लिए रिपोर्टिंग। अमृत प्रभात (लखनऊ, दिल्ली) में करीब 14 साल तक काम। रविवार पत्रिका में प्रधान संवाददाता के तौर पर दो साल रिपोर्टिंग। 1994 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। टीवीआई (बी.आई.टीवी) आजतक में विशेष संवाददाता। जी न्यूज में एडिटर और डिस्कवरी चैनल में क्रिएटिव कंसलटेंट। आजतक न्यूज चैनल में एग्जीक्यूटिव एडिटर रहे । प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 35 साल का अनुभव। अभी जल्द एयर होने वाले चैनल न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया का दायित्व संभाला है।
डॉ. ब्रजमोहन: नवभारत टाइम्स से पत्रकारिता की शुरूआत। दिल्ली में दैनिक जागरण से जुड़े। 1995 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। टीवीआई (बी.आई.टीवी), सहारा न्यूज, आजतक, स्टार न्यूज, IBN7 जैसे टीवी न्यूज चैनलों और ए.एन.आई, आकृति, कबीर कम्युनिकेशन जैसे प्रोडक्शन हाउस में काम करने का अनुभव। IBN7 न्यूकज चैनल में एसोसिएट एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे । प्रिंट और इलेक्ट्रॉंनिक मीडिया में 19 साल का अनुभव।