महेंद्र नारायण सिंह यादव।
आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के युग में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सामान्य तात्पर्य टीवी चैनल ही हो गया है, लेकिन वास्तव में रेडियो भी इसका अभिन्न प्रकार है। सच तो यह है कि टीवी चैनलों का युग शुरू होने से पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मतलब रेडियो ही रहा। प्रासंगिकता रेडियो की बाद में भी बनी रही और अब भी खत्म नहीं हुई है। ऐसे में रेडियो समाचार में भी पत्रकारों के लिए अवसर और चुनौतियां लगातार बने हुए हैं।
रेडियो समाचार प्रसारण में पत्रकारों के लिए मुख्य कार्य रिपोर्टिंग के अलावा, समाचार आलेखन, संपादन और वाचन का है। वास्तव में रिपोर्टिंग में भी समाचार लेखन का कार्य शामिल होता है क्योंकि रेडियो के लिए समाचार अधिकतर लिखित रूप में ही भेजे जाते हैं। रेडियो न्यूज़ की प्रक्रिया समाचार संकलन, रिपोर्ट लेखन, संपादन एवं अनुवाद, बुलेटिन निर्माण, और समाचार वाचन।
समाचार संकलन का कार्य तो सामान्य रिपोर्टिंग का ही अंग है। फर्क इसमें यह होता है कि इसमें कैमरे या तस्वीरों की गुंजाइश नहीं होती। इस तरह से रेडियो समाचार टीवी समाचार की तुलना में ज्यादा तेज गति से श्रोताओं तक पहुँच सकते हैं। समाचार जुटाने में वही सारी सावधानियाँ बरतनी होती हैं जो आमतौर पर पत्रकारों को पढ़ायी जाती हैं या जो वो अनुभव से सीखते हैं।
रिपोर्ट तैयार करते समय समाचार के सभी तथ्यों को ध्यान में रखना ज़रूरी होता है। घटना स्पष्ट रूप से वर्णित हो। स्थान के नाम इस तरह स्पष्ट दिए हों कि दूरदराज का पाठक भी वहाँ की भौगोलिक स्थिति का अनुमान लगा सके। प्रयास ये भी करना चाहिए कि व्यक्तियों और स्थानों के नाम इस तरह से समझाए जाएँ कि उनका समाचार वाचक सही उच्चारण कर सके। घटना की पृष्ठभूमि भी ज़रूरत के अनुसार दी जानी चाहिए।
समाचार रिपोर्ट आजकल फैक्स या ईमेल के जरिए (या ऐसे ही आधुनिक तंत्रों के जरिए) तुरंत ही समाचार कक्ष तक भेजी जाती है। समाचार रिपोर्ट प्राप्त होने पर प्रभारी समाचार संपादक का काम शुरू होता है। समाचार की गुणवत्ता के आधार पर वह उस समाचार को लेने या न लेने का निर्णय करता है। समाचार उपयोगी लगने पर वह स्वयं या सहयोगी संपादकों को वह रिपोर्ट देता है ताकि वो उसका संपादन करें या किसी अन्य भाषा में है तो उसे प्रसारण की भाषा में अनुवाद करें।
समचार संपादक जो प्रति तैयार करता है, वही मोटे तौर पर वाचन प्रति होती है, इसलिए समाचार संपादक को बहुत सतर्कता से काम करने की ज़रूरत होती है। भाषा बहुत ही सरल, और हर हाल में बोली जाने वाली होनी चाहिए। हिंदी के हिसाब से देखें, तो ‘तथा, एवं, व’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल कतई नहीं होना चाहिए क्योंकि बोलचाल में इन सबकी जगह हम हमेशा ‘और’ शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। समाचार लेखन और संपादन में भी यही करना चाहिए। ‘द्वारा’ शब्द का इस्तेमाल तो भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इसका इस्तेमाल तो अखबारी भाषा तक में वर्जित होता है।
इसके अलावा, संख्याओं को जहाँ तक संभव हो, राउंड फिगर में व्यक्त करना चाहिए, भले ही इसके लिए करीब या लगभग जैसे शब्दों का इस्तेमाल साथ में करना पड़े। अंग्रेजी में बड़ी संख्याएं मिलियन, बिलियन, और ट्रिलियन तक के रूप में व्यक्त की जाती हैं और सहज ही यह समझा जा सकता है कि हिंदी में गिनती के ये शब्द कतई नहीं चलते। हिंदी में संख्याएं हमेशा सौ, हजार, लाख, करोड़ और अरब आदि के रूप में व्यक्त करने पर ही श्रोता उन्हें समझ सकते हैं। दशमलव की संख्याओं के इस्तेमाल से भी बचना चाहिए और जहाँ ज़रूरी हो वहाँ दशमलव और उसके बाद के अंकों को शब्दों में ही लिख देना चाहिए। उदाहरण के लिए 7.65 को 7 दशमलव छह पाँच लिखना बेहतर होगा अन्यथा वाचक इसे सात दशमलव पैंसठ पढ़ने की गलती कर सकता है।
समाचार संपादन और अनुवाद करते समय वाक्य भी बहुत लंबे-लंबे नहीं होने चाहिए। भाषा की सरलता इस हद तक होनी चाहिए कि एक बार सुनते ही श्रोता आशय समझ जाए। अखबार की तरह रेडियो के श्रोता को कोई लाइन समझ न आने पर दोबारा देख लेने की सुविधा नहीं होती, इसलिए उसे एक बार में ही सारी बात समझानी होती है।
अखबार के समाचार की तरह रेडियो में समाचार का इंट्रो अलग से देना आसान नहीं होता। बुलेटिन लंबा हो, तब तो कुछ आसानी होती है जिसमें पहली लाइन में समाचार की सबसे मुख्य बात को दिया जा सकता है। अगर बुलेटिन बहुत छोटा (मसलन 5 मिनट का) हो तो समाचार की पंक्तियां इस तरह से चुननी पड़ती हैं कि वो इंट्रो का भी काम करें और मूल समाचार भी कह डालें।
समय के महत्व को बहुत ज्यादा ध्यान में रखना चाहिए और कम से कम शब्दों में अपनी बात कहनी चाहिए। रेडियो के संदर्भ में तो यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। अगर किसी एक ही समाचार में ज्यादा समय लगा दिया तो निश्चित मानिए कि कोई दूसरा समाचार छूट जाएगा या पूरा नहीं जा पाएगा।
समाचार संपादन और अनुवाद पूरा हो जाने के बाद प्रभारी समाचार संपादक उस पर नजर डालकर उसे अंतिम रूप देता है। इस दौरान वह तथ्यों की जाँच ज़रूर करता है ताकि किसी भी तरह की गलती न जा सके। इसके बाद काम शुरू होता है, बुलेटिन निर्माता का। बुलेटिन निर्माता के पास ढेर सारे समाचार होते हैं जिनमें से वह महत्व के आधार पर कुछ समाचार चुनता है। समाचार बुलेटिन अगर बड़ा है तो चुने गए समाचारों में से ही वह हेडलाइंस या मुख्य समाचार भी चुनेगा। कम समय में ज्यादा से ज्यादा समाचार देने के क्रम में वह मूल प्रति में से काट-छांट भी कर सकता है और कुछ वाक्यों का रूप भी परिवर्तित कर सकता है। महत्वपूर्ण तथ्यों को एक बार फिर से जाँच लेना भी उसका दायित्व होता है। किसी शब्द के उच्चारण में वाचक को या समझने में श्रोता को दिक्कत तो नहीं होगी, इसका भी उसे ध्यान रखना चाहिए और आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर लेना चाहिए।
बुलेटिन निर्धारित समय में खत्म हो जाए, इसके लिए समाचारों की लाइनों और उन्हें पढ़ने में लगने वाले समय का हिसाब लगा लेना चाहिए। बुलेटिन निर्धारित समय से न तो पहले खत्म होना चाहिए और न ही बाद में। इसके लिए अंत में अक्सर छोटे छोटे समाचार रखने चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार कहीं भी बुलेटिन खत्म करने में आसानी हो। बुलेटिन निर्धारित समय से पहले ही न खत्म हो जाए, इसके लिए बुलेटिन निर्माता को कुछ अतिरिक्त समाचार भी बुलेटिन के साथ में लगा देने चाहिए ताकि समय बचने की स्थिति में उनका इस्तेमाल करवा सके।
इस तरह से बुलेटिन पूरी तरह से तैयार हो जाने के बाद उसे समाचार वाचक के हवाले कर दिया जाता है। समाचार वाचक का काम प्रसारण योग्य मधुर आवाज़ में आकर्षक तरीके से समाचारों की प्रस्तुति करना होता है। प्राय: नया पैराग्राफ या नया समाचार बोलते समय थोड़ा ज़ोर से बोलना श्रोता का ध्यान खींचने में सहायक सिद्ध होता है। इसके अलावा, स्वर में उचित उतार-चढ़ाव या आरोह-अवरोह का तो अपना महत्व होता ही है। सबसे बड़ी बात यह है कि समाचार तैयार करने में कितनी भी बड़ी टीम क्यों न शामिल रहती हो, लेकिन श्रोता केवल समाचार वाचक की आवाज को ही पहचानता है। उसके लिए समाचार अच्छा या बुरा होने का जिम्मेदार केवल समाचार वाचक ही होता है। ऐसे में समाचार वाचक का कर्तव्य होता है कि वह माइक पर वाचन करने से पहले समय रहते एक बार रिहर्सल ज़रूर कर ले, ताकि किसी भी तरह की त्रुटि की गुंजाइश न रहे।
महेंद्र नारायण सिंह यादव, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और टीवी समाचार के अलावा, आकाशवाणी समाचार संपादन, समाचार अनुवाद और समाचार वाचन का लंबा अनुभव रखते हैं। रेडियो प्रसारण की अन्य विधाओं-उद्घोषणा, कार्यक्रम आलेखन और कार्यक्रम निर्माण तथा प्रस्तुति का भी उनके पास काफी अनुभव है।