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Author: newswriters
फिल्म देखने और समझने के अपने अनुभवों के बीच जब हम ठहर कर अपने आप से पूछते है कि कोई कलाकार, कोई किरदार हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है या कि उस कलाकार की संपूर्ण कला-यात्रा को कैसे समझा जाए? तो महसूस करते है कि पर्दे पर किसी किरदार, कलाकार की उपस्थिति और हमारे समय और समाज के संबन्ध कितने घनिष्ठ है. ऐसा कहते हुए हम फिल्म ‘आक्रोश’ में ओमपुरी की चुप्पी और फिल्म के अंत मे उस चीख में कही गुम हो जाते है, और कुछ कहने या लिखने की सीमाओं के इतर वह चीख हमें अंदर तक भेद जाती…
आलोक वर्मा | लीड लिखना:लीड की हिंदी मत बनाइए, इसे लीड कहकर ही समझिए क्योंकि इसी शब्द का हर जगह इस्तेमाल होता है। लीड लिखने का मतलब है स्टोरी को शुरू करना…आप कैसे शुरू करें!! कई कापी एडीटर्स का ये मानना है कि अगर आपकी स्टोरी शूरू में ही धड़ाम से दर्शकों के दिल दिमाग पर असर नहीं डालेगी तो दर्शक या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा ही नहीं। लीड दर्शको को ये आइडिया देती है कि खबर कितनी बड़ी या दिलचस्प है। अब लीड एक लाइन की…
शालिनी जोशी,असिस्टेंट प्रोफेसर,मीडिया स्टडीजहरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विवि,जयपुर न्यूज ऐंकर टीवी पर समाचारों को प्रस्तुत करता है और स्टुडियो डिस्कशंस संचालित करता है. टेलीविजन समाचार तैयार करने और उसके प्रसारण के लिये भले ही एक बड़ी टीम होती है लेकिन बड़ा श्रेय न्यूज ऐंकर को ही मिलता है. वो एक तरह से अपने समाचार चैनल का प्रतिनिधि बन जाता है. टीवी के पर्दे पर अपनी प्रस्तुति की शैली और कौशल से दर्शकों में उसकी एक लोकप्रिय और ग्लैमरस शख्सियत बन जात है. प्रसारण पत्रकारिता में कैरियर की चाह रखनेवाले कई छात्र–छात्राएं इसी ग्लैमर की वजह से टीवी न्यूज ऐंकर…
आलोक वर्मा |काम के साथ-साथ ही लिखते जाइएजब डेडलाइन सर पर हो तो टुकड़ो में लिखना सीखिए। जैसे-जैसे काम होता जाए आप स्टोरी लिखते जाएं। मान लीजिए कि आपने किसी से फोन पर अपनी स्टोरी के सिलसिले में कुछ पूछा है और दूसरी तरफ से थोड़ा समय लिया जा रहा है तो उस समय को यूं ही बरबाद न होने दे, उस समय ये आप लिखना शुरू कर दे- क्या पता दूसरी तरफ से फोन कितनी देर में आए! आप उम्मीद के सहारे अपना वक्त बरबाद न करें।जितना मसाला उपलब्ध हो उसी से स्टोरी लिखना शुरू कर देंकई बार आप…
शैलेश एवं ब्रजमोहन |रिपोर्टर के लिए जरूरी नहीं है कि वो खबर में हमेशा अपने सूत्र के नाम का खुलासा करे। रिपोर्टर को अपने सूत्र के बारे में दूसरों को कभी जानकारी नही देनी चाहिए। जरूरी हो, तो रिपोर्टर को अपने सूत्र का नाम छिपाना चाहिए। खासकर तब जब नाम सामने आने पर सूत्र की नौकरी या जीवन पर कोई खतरा हो। सूत्र कोई जूनियर अधिकारी है, तो उसका नाम सामने आने पर बड़े अधिकारी उससे नाराज होकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कोई सूत्र अपराध, आतंकवादी संगठन या माफिया के बारे में कोई जानकारी देता है, तो उसके…
अतुल सिन्हा |टेलीविज़न में स्क्रिप्टिंग को लेकर हमेशा से ही एक असमंजस की स्थिति रही है। अच्छी स्क्रिप्टिंग कैसे हो, कौन सी ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जाए जो दर्शकों को पसंद आए और भाषा के मानकों पर कैसी स्क्रिप्ट खरी उतरे, इसे लेकर उलझन बरकरार है। हम लंबे समय से यही कहते आए हैं कि भारत में टेलीविज़न प्रयोग के दौर से गुज़र रहा है। ये धारणा बना दी गई है कि भाषा से लेकर, स्क्रिप्टिंग और पैकेजिंग तक में हमारे चैनल अभी कच्चे हैं और हमें उन चैनलों से सीखना चाहिए जिन्होंने विदेशों में लंबे समय से अपनी…
ओमप्रकाश दास।टेलीविज़न प्रोडक्शन की पटकथा यानी स्क्रिप्ट ही वह हिस्सा है जो विचारों और किसी कहे जाने वाली कहानी को एक ठोस रूप देता है। लेकिन प्रोडक्शन के लिहाज़ से पटकथा में आधारभूत अंतर उसके विषय को लेकर होता है। उदाहरण के लिए किसी काल्पनिक कहानी की स्थिति में पटकथा का स्वरूप अलग होता है तो किसी सचमुच की घटना को प्रस्तुत करने के लिए पटकथा की रूपरेखा बिल्कुल बदल जाती है।टेलीविज़न प्रोडक्शन मूल रुप से किसी घटना या कहानी को शुरु से अंत तक पहुंचाने की प्रक्रिया है। किसी कहानी या किसी घटना को आप कैसे कैमरे में रिकॉर्ड…
पुण्य प्रसून वाजपेयी |लोकतन्त्र का चौथा खम्भा अगर बिक रहा है तो उसे खरीद कौन रहा है? और चौथे खम्भे को खरीदे बगैर क्या सत्ता तक नहीं पहुँचा जा सकता है? या फिर सत्ता तक पहुँचने के रास्ते में मीडिया की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो चुकी है कि बगैर उसके नेता की विश्वसनीयता बनती ही नहीं और मीडिया अपनी विश्वसनीयता अब खुद को बेच कर खतम कर रहा है अगर मीडिया भी एक प्रोडक्ट है तो यह भी कैसे सम्भव है कि मीडिया बिना खबरों के बिक सके। जैसे पंखा हवा ना दें, एसी कमरा ठंडा ना करें। गिजर पानी गरम…
शैलेश और डॉ. ब्रजमोहन |पत्रकारिता में टीवी रिपोर्टिंग आज सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम है। अखबार या संचार के दूसरे माध्यमों की तरह टीवी रिपोर्टिंग आसान नहीं। टेलीविजन के रिपोर्टर को अपनी एक रिपोर्ट फाइल करने के लिए लम्बी मशक्कत करनी पड़ती है। रिपोर्टिंग के लिए निकलते वक्त उसके साथ होता है कैमरामैन, जो फील्ड में घटना के विजुअल और लोगों की प्रतिक्रियाएं शूट करता है। जबरदस्त कम्पिटिशन के इस दौर में टीवी रिपोर्टर के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है कि वो सबसे पहले अपने चैनल में न्यूज ब्रेक करे। इसके लिए इसके पास ओबी वैन…
अजय कुमार मिश्रा। राजनीतिक मामले हो या फिर आर्थिक अथवा सामाजिक मुद्दा, किसी भी टीवी प्रोग्राम के लिए विषयवस्तु अलग अलग हो सकती है लेकिन उसका व्याकरण कमोबेश एक सा होता है… किसी भी टीवी प्रोग्रामिंग के कान्सेप्ट पर निर्भर करता है कि आप कैसे उसको अमली जामा पहनाने के लिए आगे बढ़ते हैं। आजकल लाइव प्रोग्राम या तो किसी विषय पर चर्चा करते नजर आते हैं या फिर एक ही थीम पर पहले से बनी न्यूज स्टोरीज को एकसूत्र में पिरोने का काम करते हैं। फारमेट चाहे जो हो, कई वजहों से बिजिनेस से जुड़े प्रोग्राम करना एक कठिन…
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