अजय कुमार मिश्रा।
राजनीतिक मामले हो या फिर आर्थिक अथवा सामाजिक मुद्दा, किसी भी टीवी प्रोग्राम के लिए विषयवस्तु अलग अलग हो सकती है लेकिन उसका व्याकरण कमोबेश एक सा होता है… किसी भी टीवी प्रोग्रामिंग के कान्सेप्ट पर निर्भर करता है कि आप कैसे उसको अमली जामा पहनाने के लिए आगे बढ़ते हैं।
आजकल लाइव प्रोग्राम या तो किसी विषय पर चर्चा करते नजर आते हैं या फिर एक ही थीम पर पहले से बनी न्यूज स्टोरीज को एकसूत्र में पिरोने का काम करते हैं। फारमेट चाहे जो हो, कई वजहों से बिजिनेस से जुड़े प्रोग्राम करना एक कठिन काम हो जाता है। आज चर्चा इसी पर। डीडी न्यूज पर मनीमंत्र प्रोग्राम में हम किसी एक खास मुद्दे पर लोगों के सवालों को जानकारों के सामने रखते हैं और इसे लोगों के लिए फायदेमंद बनाने की कोशिश करते हैं …
पहले तय करें प्रोग्राम का फारमैट
किसी भी प्रोग्राम को करने के लिए आपको उसका फ्लेवर तय करना होगा। आप प्रोग्राम अपने टीवी स्टूडियो में करना चाहते हैं अथवा किसी बाहरी परिवेश में ये तय करना जरूरी है। मनीमंत्र में शुरुआत में हमने सोचा कि बिजिनेस पर आधारित कई समाचार चैनल शेयर बाजार पर आधारित कार्यक्रम तो दिखाते हैं लेकिन निवेश के दूसरे तरीकों केबारे में जानकारीकाफीकमहोती है। इसी तरह से बचत से जुड़े काफी कम कार्यक्रम ही दूसरे चैनलों पर दिखाई जाते हैं ।तो हमने सबसे पहले तय किया कि हम मनीमंत्र में शेयर बाजार को छोड़कर निवेश और बचत की बाकी बची दुनिया पर फोकसकरेंगे। इस कार्यक्रम को शुरु करने के पीछे तर्क ये था कि पहले लोगों को आमदनी और बचत के तरीके बताने होंगे जिसके बाद ही वो निवेश करने के लायक होगा। तो हमने बीमा, बैंकिग, टैक्स, रीयल एस्टेट ,म्युचुअल फंड जैसे मुद्दों पर फोकस करने काफैसला लिया। अचानक हमारी विषयवस्तु का दायरा काफी ज्यादा बड़ा हो गया क्योंकि शायद ही कोई ऐसा उपभोक्ता हो जिसे ऊपर लिखे विषय वस्तु से पाला न पड़ता हो। हमने किसी अमुक हफ्ते में न्यूज वैल्यू के आधार पर विषय वस्तु का चयन करना तय किया। ये भी तय किया कि विषयवस्तु पर एक मास्टर स्टोरी पैकेज होगा इसके बाद एक्सपर्ट से चर्चा। प्रोग्राम करने के बाद इसका भविष्य क्या होगा चर्चा अब इस पर करते हैं ..
पहले रीएक्शन की काफी अहमियत है
कार्यक्रम खत्म करने के बाद आप एक प्रोड्यूसर या एंकर की हैसियत से वो पहले व्यक्ति होते हैं जिन्हें पता होता है किप्रोग्राम कैसा गया। एक प्रोड्यूसर और एंकर के तौर पर मैं पहले एपीसोड से काफी खुश था। खुश इसलिए कि मेरे लिए ये कुछ नया सीखने का मौका था, अपने एक्सपर्ट से भी और आस पास की कहानियों से भी। स्टूडियो के कैमरामैन अगर खुद आकर कहें कि बॉस आपका कार्यक्रम बड़ा अच्छा रहा और आपके गेस्ट से अपनी परेशानियों कासमाधान रखने लगें तो समझिये काम बन गया। इससे एक और आइडिया आया कि लोगों को इस कार्यक्रम से कैसे जोड़ा जाए। फिर हमने फोन लाइन खोलने का फैसला लिया।
आपकी कार्यक्रम में हिस्सेदारी काफी अहम है
फोन लाइन खोलने के बाद हमें इस बात का कोई अंदाज नहीं था कि लोग रविवार को दोहपर 1.30 बजे क्यों टीवी प्रोग्राम पर कॉल करेंगे। जब आपको इतना मुश्किल वक्त मिलता है जिसकी अमूमन कोई टीआरपी नहीं होती तो एक रोचक प्रोग्राम बनाना काफी मुश्किल काम होता है। उस पर तुर्रा ये कि ये प्रोग्राम डीडी न्यूज के लिए था यानी और भी चुनौतीभरा। लेकिन इन्हीं चुनौतियों को आपको अपने लिए एकअवसर बनाना होता है और हमारी टीमने भी यही किया। हम अपने प्रोग्राम के कान्सेप्ट कोलेकर काफी उत्साहितथे, हमें अपने कान्सेप्टपरपूरा विश्वास था और यकीन था इस बार पर कि लोग पैसे को लेकर काफी संवेदन शील होते हैं। सो अगर उन्हें ये बताया जाए कि कैसे टैक्स की बचत की जा सकती है. कैसे अपना बीमा करा कर विषम परिस्थितियों में अपने आपको सुरक्षित किया जा सकता है, या फिर थोड़ी थोड़ी बचत कैसे मुश्किल वक्त में आपका साथ देगी, तो लोग प्रोग्राम जरूर देखेंगे।
बिजिनेस प्रोग्रामिग की दिक्कतें
आर्थिकजगत से जूड़ी किसीभी प्रोग्रामिंग केलिए सबसे ज्यादा जरूरी येहै कि आपको अपने विषय की अच्छी समझ होनी चाहिए। इसके बाद उसे सरल और सजह तरीके से आम जनता के लिए समझा पाना दूसरा बड़ा चैलेंज है। बिजिनेस संबंधित कहानियों में शाट्स की समस्या भी आम है। इसका समाधान ये है कि आप सरल ग्राफिक्स के जरिए अपनी बात को रखिए। बिजिनेस का विषय आकर्षक तो नहीं होता तो आप सेट को खूबसूरत बना कर, अच्छे ग्राफिक्स और सरल प्रस्तुतीकरण के ज़रिए अपने दर्शकों को अपनी ओर खींच सकते हैं।
टीम वर्क पर करें भरोसा
किसी भी अच्छे प्रोग्राम को करने के लिए एक अच्छी टीम होना बेहद ज़रूरी है। प्रोड्यूसर को फारमैट के बारे में समझ अच्छी होनी चाहिए। ये अंदाज लगा पाना काफी अहम तथ्य है कि जनता को पसंद क्या आएगा। इसी तरह से प्रोग्राम का सेट, कैमरा की पोजीशन, कैमरावर्क, लाइटिंग, स्टूडियो गेस्ट और एंकर के बीच का अंतर, प्रोग्राम के लिए ग्राफिक्स सपोर्ट, इंजिनियरिंग सपोर्ट, फोन इन, सवालों केलिएऑडियो की क्वालिटी सब कुछ काफी अहम है। एक भी चीज में कमी हुई तो मजा किरकिरा समझिए। बिजिनेस की प्रोग्रामिंग को मैं रेगिस्तान में कैक्टस की खेती की तरह देखता हूं जो काफी चुनौती भरा है लेकिन अगर सफल रहे तो काफी सूकून और संतोष भरा सफर तय है। मीडिया इन्हीं तरह की चुनौतियों से भरा है जिस पर विजय पाने का अपना ही आनंद है….
अजय कुमार मिश्रा दूरदर्शन में सीनियर बिज़नेस संवाददाता और एंकर के रूप में कार्यरत हैं। वे दूरदर्शन के मनी मंत्रा प्रोग्राम के प्रोडूसर और एंकर हैं।