देवेंद्र मेवाड़ी।
मैंने विज्ञान लेखन कैसे शुरू किया?
अपने आसपास की घटनाओं को देखा, मन में कुतूहल हुआ, उनके बारे में पढ़ा, लगा कितनी रोचक बात है- मुझे दूसरों को भी बताना चाहिए। सर्दियों की शुरूआत में हमारे गांव का सारा आकाश प्रवासी परिंदों से भर जाता था। मां ने बताया वे ‘मल्या’ हैं। ठंड लगने पर दूर देश से आती हैं। गर्म जगहों को जाती हैं। जाड़ा खत्म होने पर फिर लौट जाती हैं। बिल्कुल हमारी तरह। हमारे गांव के लोग भी सर्दियों में माल-भाबर के गर्म गांव में चले जाते थे। पक्षियों के इस व्यवहार के बारे में पढ़ा और लेख लिखा- ‘जानि शरद ऋतु खंजन आए’। बरसात के बाद गायब हो जाने वाले मेंढ़कों, छिपकलियों, सांपों और घोंघों के बारे में एक और लेख लिखा- शीत निष्क्रियता। हम अपनी अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक में बचपन में एक कविता पढ़ते थे। इस लेख की शुरूआत में शीत ऋतु की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मैंने कवि की इन पंक्तियों का प्रयोग किया थाः
द नार्थ विंड डथ ब्लो, एंड वी शैल हैव स्नो
एंड ह्वट विल द स्वालो डू दैन? पूवर थिंग!
दोनों लेख एक भावुक पत्र के साथ संपादक ‘विज्ञान जगत’ को भेज दिए कि न जाने ये लेख छपेंगे या नहीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि विज्ञान के रहस्यों के बारे में मैं लिखता रहूं। उत्तर में मिले पत्र ने मुझे हतप्रभ कर दिया। उस पत्र ने मुझमें विज्ञान लेखन की लौ जगा कर मुझे विज्ञान लेखक बना दिया। ‘विज्ञान जगत’ के संपादक श्री आर. डी. विद्यार्थी ने लिखा था- तुम्हारे दोनों लेख ‘विज्ञान जगत’ के संयुक्तांक में प्रकाशित कर रहा हूं। तुम्हारे विज्ञान विषयक लेख मैं प्रकाशित करूंगा।
तुम लिखते रहना, कौन जाने तुम स्वयं कल एक विज्ञान लेखक बनो!
कई किलोमीटर पैदल चल कर जिस घने जंगल को पार करके बस पकड़ता था, वहां बेहद सुंदर गगनचुंबी हरे-भरे शंकुधारी पेड़ थे। वैसे पेड़ और कहीं नहीं दिखाई दिए। कौन-से हैं वे पेड़? पढ़ते, पूछते पता लगा वे ‘एबीज’ के पेड़ हैं। शंकुधारी वर्ग के पेड़ और उस क्षेत्र में उसी घने जंगल में हैं। तब लिखा- ‘कुमायूं और शंकुधारी’ जो विज्ञान परिषद, प्रयाग की पत्रिका में अप्रैल 1965 में छपा। वही मेरा पहला प्रकाशित वैज्ञानिक लेख था। संपादक थे डॉ. शिवगोपाल मिश्र। आप मुझसे पूछेंगे तो मैं अपनी कहानी बयान करने लगूंगा। यों, मुझे विश्वास है, उससे भी आपको विज्ञान लेखन की राह टटोलने में मदद ही मिलेगी। फिर भी, चलिए आगे चलते हैं।
एक बात मुझे याद आ गई। हिंदी के प्रख्यात कथाकार और उपन्यासकार शैलेश मटियानी जी कहा करते थे- लेखन तपस्या है। तपस्या करके सिद्धि मिलती थी, वैसे ही लिखते-लिखते एक दिन सिद्धि प्राप्त हो जाती है। पहले लिखने का प्रयास करना पड़ता है लेकिन सिद्धि मिल जाने पर विचार कौंधते ही जैसे स्वयमेव लिखा जाने लगता है। इसलिए चाहे कैसी भी परिस्थिति हो लिखते रहना चाहिए। एक दिन जरूर सिद्धि प्राप्त होगी। यही निरंतर तपस्या किसी को सफल लेखक बनाती है, किसी को एक बड़ा गायक, संगीतकार, चित्रकार या नर्तक।
इसलिए, आइए लिखें और लगातार लिखें।
किस माध्यम के लिए क्या लिखें
विज्ञान लेखन पहले केवल लेख, पुस्तकें और वार्त्ता तक ही सीमित था। समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं के लिए लेख लिखे जाते थे। रेडियो पर वार्त्ता दी जाती थी। लेकिन आज विज्ञान लेखक के लिखने के लिए अपार संभावनाएं हैं। वह कई माध्यमों या मीडिया के लिए लिख सकता है। विविध प्रकार का लेखन कर सकता है। इनमें से कुछ माध्यम अर्थात् मीडिया तथा लेखन के प्रकार हैं-
प्रिंट मीडिया
समाचार पत्र
- लेख, फीचर, व्यंग्य, नियमित कालम, विज्ञान कथाएं, साक्षात्कार
पत्रिकाएं
- लेख, कविताएं, नाटक, व्यंग्य, परिचर्चा, नियमित कालम, विज्ञान कथाएं
पुस्तिकाएं, पत्रक
- पोस्टर
- पुस्तकें
- समीक्षाएं
- अनुवाद
- कॉमिक्स तथा चित्रकथाएं
इलैक्ट्रानिक मीडिया
- रेडियो
- वार्त्ता
- परिचर्चा
- साक्षात्कार
- फीचर
- विज्ञान पत्रिका
- विज्ञान समाचार
- रेडियो नाटक, झलकी, रूपक
- फोन-इन कार्यक्रम
- ब्रिज-इन कार्यक्रम
- स्पांसर्ड कार्यक्रम
दूरदर्शन
- विज्ञान कार्यक्रम प्रस्तुतीकरण
- विज्ञान समाचार
- साक्षात्कार
- विज्ञान विषयक धारावाहिक (पटकथा)
- विज्ञान वृत्त चित्र
- विज्ञान पत्रिका कार्यक्रम
- नाटक, झलकियां
फिल्म
- वृत्त चित्र
- फीचर फिल्म
आडियो/वीडियो कैसेट/सीडी
- विज्ञान धारावाहिक
- विज्ञान के रोचक कार्यक्रम
- वैज्ञानिक गतिविधियां
- वैज्ञानिकों की जीवनी
विज्ञान प्रदर्शनी
- संकल्पना तथा आलेख
- कमेंट्री
- पत्रक, पुस्तिकाएं, पोस्टर
कठपुतली प्रदर्शनी
नाट्य आलेख
जादू प्रदर्शनी
- अंध विश्वासों, चमत्कारों को दूर करने के लिए कार्यक्रम संकल्पना व आलेख
मौखिक माध्यम
- आलेख
• इत्यादि
कैसे लिखें
हर माध्यम के लिए विविध प्रकार के लेखन का स्वरूप और शैली अलग-अलग होती है। बात यह है कि हर माध्यम की जरूरत अलग-अलग होती है। आइए, इन पर अलग-अलग विचार करते हैं।
विज्ञान समाचार
विज्ञान की हर घटना, दुर्घटना, खोज, आविष्कार तथा संभावना समाचार है। इनका संबंध विज्ञान के किसी भी विषय, प्रयोगशालाओं, वैज्ञानिकों आदि से हो सकता है। विज्ञान समाचार को सरल तथा सहज भाषा में लिखा जाना चाहिए ताकि विज्ञान की सामान्य जानकारी रखने वाला या विज्ञान से अनभिज्ञ आम पाठक तथा श्रोता उसे आसानी से समझ सके। विज्ञान की बात को सरल बना कर लिखना चाहिए। विज्ञान लेखन की मूल कवायद यहां भी करनी होगी- पढ़ना, सोचना, समझना और फिर आम पाठक के लिए लिखना। विज्ञान समाचार तथ्यों पर आधरित होते हैं इसलिए इनमें इधर-उधर की बातें नहीं की जा सकती। समाचार का शीर्षक सटीक और पैना होना चाहिए। शीर्षक कभी भी भ्रामक नहीं होना चाहिए। उसे अर्थपूर्ण और संभव हो तो मुहावरेदार होना चाहिए। अगर आप विज्ञान समाचार का सार मान कर संक्षिप्त शीर्षक लिखेंगे तो वह सटीक ही होगा। महत्वपूर्ण समाचारों का संक्षिप्त ‘इंट्रो’ भी लिखिए ताकि उसे पढ़ कर पाठक को समाचार के बारे में मुख्य जानकारी मिल जाय। विज्ञान समाचारों के शेष भाग या बॉडी में अन्य जानकारी दे सकते हैं।
फीचर तथा लेख
फीचर समाचार का विस्तार है। समाचार पढ़ने के बाद पाठक के मन में जो जिज्ञासा पैदा होती है उसे फीचर पूरा कर सकता है। फीचर उसी विषय पर सटीक जानकारी देने वाली विस्तृत टिप्पणी है। उसमें इधर-उधर के संदर्भ या विवरण देने के बजाय समाचार में चखचत वैज्ञानिक विषय की और अधिक जानकारी सरल, सहज भाषा और रोचकता के साथ दे सकते हैं। लेकिन, एक बात गांठ बांध लीजिए। आप विज्ञान के उस विषय की जानकारी दे रहे हैं इसलिए भटकिए मत और उत्साह में उसे सनसनीखेज भी मत बनाइए। अतिशयोक्तियां डाल कर उसे उथला या हल्का बनाने की भूल भी मत कीजिए। ‘चांद पर मानव के कदम’ ही काफी है उसे ‘तीनों लोकों को नापेगा मानव’ लिख कर ज्यादा मत नाप दीजिए। ‘अब सारे काम संभाल लेंगे रोबोट’ में भी थोड़ा धैर्य रखिए, उन्हें ढंग से आने तो दीजिए। विश्वास कीजिए, वे सारे काम नहीं संभालेंगे। रोबोटिक्स के वैज्ञानिक उन्हें जो काम सिखा रहे हैं फिलहाल वही करने दीजिए। और हां, यह भी याद रखिए कि फीचर में आंकड़े नहीं भरने हैं अन्यथा वे जानकारी के सहज प्रवाह को रोकेंगे और सरस स्वाद में कंकड़ों की तरह किरकिराएंगे। फीचर को शुरू के आखीर तक रोचक बनाए रखिए। हम हर कहीं से कुछ सीखते हैं- सफल फीचर और लेख लिखने के लिए रसोई के फार्मूलों से बहुत कुछ सीख सकते हैं- सही सब्जी का चुनाव, उसे काट-छांट कर केवल काम का भाग लेना, स्वाद के लिए सही मात्रा में नमक, मिर्च, मसाले डालना। मिर्च से फिर सावधन। यह अतिशयोक्ति और अतिरंजन है। इस पर काबू रखिए अन्यथा पाठक बर्दास्त नहीं करेगा। भाषा की सरसता का नमक और शैली के मसाले भी उतना ही डालिए कि फीचर स्वादिष्ट लगे। जटिल तथ्यों के इतने तेल में मत छोंकिए कि वह बेहद गरिष्ठ हो जाए और पाठक को पचे ही नहीं।
लेख
आपने संक्षेप में सारतत्व देकर समाचार लिखा। पाठक की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए रोचकता के साथ मुहावरेदार, मजेदार भाषा में उसके लिए फीचर लिखा। लेकिन, विषय पर और भी बहुत बातें हो सकती हैं। विषय का आमूलचूल वर्णन कर सकते हैं। तो कीजिए न। अब तो आप विषय के आकाश में उड़ सकते हैं। उस पर ऊंचाई से विहंगम दृष्टि डाल सकते हैं। लेख के पूरे स्वरूप की योजना बना कर, यहां-वहां उड़ान भर कर भरपूर जानकारी जुटा सकते हैं। प्रथम वयस्क स्तनपोषी प्राणी भेड़ का क्लोन पैदा हुआ और आपने समाचार लिखा- ‘भेड़ के प्रथम मानव निखमत क्लोन ने जन्म लिया- डॉली एक हकीकत’।
इस समाचार को पढ़ते ही अनेक भाषाओं के विज्ञान लेखक तुरंत हरकत में आए। जिसने इस विषय की खोजों का जितना पीछा किया है, मतलब फॉलोअप करता रहा है वह उतनी ही तेजी से बाजी मार लेगा। उसने तत्काल समाचार का विस्तार किया और फीचर लिखा कि डॉली कौन है, किन वैज्ञानिकों ने किस विधि से उसे तैयार किया और इस विधि की भावी संभावनाएं क्या हैं।
लेकिन, क्लोन कथा तो बहुत लंबी है। इस विषय पर वैज्ञानिक बहुत पहले से अनुसंधान कर रहे हैं। कुछ लेखकों को क्लोन की कल्पना के बीज मांस पिंड से कौरवों के जन्म में भी दिखाई दिए। कुछ विज्ञान लेखकों को याद आया कि विज्ञान कथाओं में तो क्लोन बहुत पहले पैदा हो चुके हैं। माइकेल क्रिख्टन ने जुरैसिक पार्क में डायनोसौरों को जन्म दिलाया जिन्हें प्रख्यात निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म में साकार कर दिखाया। और हां, वर्षों पहले डेविड रोरविक ने अपनी ‘इन हिज ओन इमेज’ पुस्तक में यह घोषणा की थी कि एक उद्योगपति का क्लोन जन्म ले चुका है। तथ्यों पर ध्यान देने वाले विज्ञान लेखकों को सर जान गर्डन के टेडपोलों की कोशिकाओं से मेंढक बनाने के प्रयोग याद आए, कार्ल इल्मेंसी और पीटर होप की क्लोन चुहिया याद आई, जैरी हाल और राबर्ट स्टिलमैन की मानव भ्रूण से क्लोन बनाने की संभावना का स्मरण हो आया और विश्व भर में छिड़ी बहस भी याद आई। तभी इस घोषणा से विश्व भर में खलबली मच गयी कि मानव क्लोन ‘ईव’ का जन्म हो गया है। अरे एक क्लोन पर इतना कुछ?
इस विषय पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है! आप ठीक कह रहे हैं। हमारा विनम्र सुझाव है कि अब आप ‘लेख’ लिखिए। सागर गागर में वहीं समाएगा। इतना कुछ फीचर में तो नहीं दिया जा सकता ना? लेकिन लेख में यह सब कुछ देकर आप शखतया अपना सिक्का जमा सकते हैं। (क्षमा कीजिए, शायद किसी को क्लोन की बात सुनते-सुनते इस अकिंचन की क्लोन कथा ‘अंतिम प्रवचन’ भी याद हो आई है। आदाब!)
अच्छा, एक बात और। जैसे पहले मैंने कहा, लेख लिखने के लिए भी आपको खूब पढ़ना, गुनना और सुनना जरूरी है। अधिक से अधिक पढ़िए। अपनी रूचि के विषयों पर जो कुछ भी मिले पढ़ लीजिए और नोट्स लिखिए। माफ कीजिएगा, लेख लिखते हुए आप विषय के बारे में अपना ज्ञान पाठकों के सामने रख सकते हैं। आपका यही ज्ञान पाठकों के लिए प्रेरणा बनेगा कि बाप रे, कितना कुछ पढ़ा है इन्होंने इस बारे में। कितना-कुछ पता है इन्हें। लेख में आपको ज्ञान प्रदखशत करने का मौका मिलता है, उसे मत चूकिए।
लेख लंबा बेशक हो, अगर नीरस न हो अन्यथा कौन पढ़ेगा उसे? पाठक पन्ने पलट देगा। इसलिए बड़े धैर्य के साथ लिखिए, मुहावरेदार भाषा और रोचक शैली अपनाइए और स्वयं पाठक बन कर लिखिए। अगर आप बोर हो रहे हैं तो आपके लेख को पढ़ने वाले हजारों, लाखों पाठक भी बोर होंगे। क्या आप नहीं चाहते, लोग कहें- ‘वह लेख इन्होंने लिखा है।’ आपकी जिम्मेदारी बनती है। आप हजारों-लाखों पाठकों के प्रति जिम्मेदार हैं। इसलिए, बहुत सोच-समझ कर, जिम्मेदारी से लिखिए।
लेकिन सुनिए, आप तो संपादकीय पृष्ठ के लिए संपादकीय टिप्पणी भी लिख सकते हैं।
देवेंद्र मेवाड़ी जाने-माने विज्ञान लेखक हैं. संपर्क : फोनः 28080602, 9818346064,
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