नीरज झा | खेल के प्रति जूनून चाहिए
खेल आज की तारीख में पत्रकारिता का एक अहम अंग है. पिछले 15 साल के अपने अनुभव में हमने इसमे काफ़ी बदलाव होतें देखा है. पहले जमाने में ये मुख्य पत्रकारिता का अंश नही माना जाता था, लेकिन समय के साथ इसने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. अब अख़बारो में जहाँ खेल की खबरें पहले पन्ने में भी दिखती है, वही टेलीविज़न में स्पोर्ट्स का अब अलग बुलेटिन भी अनिवार्य हो गया है. इस से पहले की हम इस विषय की गहराई में जाए, इसकी थोड़ी सी पृष्ठभूमि को जाना ज़रूरी है.
“खेल” समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यक्तियों के लिए जहाँ यह फिटनेस और स्वास्थ्य में सुधार लाता है वहीँ आपके आत्म विश्वास को बढाकर आपको को एक सक्षम व्यक्ति बनाने में मददगार साबित होता है। राष्ट्रीय स्तर पर खेल और शारीरिक शिक्षा ना सिर्फ देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए जरूरी है बल्कि आम जनता के स्वास्थ्य में सुधार और विभिन्न समुदायों को एक साथ करीब लाने में भी इसका अहम रोल है.
पुराने ज़माने में एक प्रसिद्ध कहावत हुआ करती थी – पढोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब और खेलोगे धुपोगे तो होगे ख़राब. समय बदल चूका है और सोच भी. शायद ही अब कोई ऐसे माता पिता होंगे जो इस सोच को लेकर अडिग होंगे. अब तो बच्चों को खेल के प्रति रूचि पैदा करने में सबसे पहला कदम पेरेंट्स ही उठाते है. कई स्कूलों में स्पोर्ट्स क्लासेज अनिवार्य है.
खेल आज के दौर में किसी भी देश की प्रगतिशीलता का मापदंड बन चूका है. जो देश आर्थिक और सामाजिक दिशा में प्रगतिशील है वहां पर खेल और खिलाडियों के उत्थान पर विशेष बल दिया जाता है. भारत की आर्थिक स्थिति भी पिछले कुछ सालों में काफी अच्छी हुई है और उसका सीधा असर यहाँ के खेल और खिलाडियों पर साफ़ दीखता है. हालांकि भारत में चीज़ों को बदलने में कुछ अधिक समय लगता है लेकिन अच्छी बात यह है की चीज़ें बदल रही है.
भारतीय खेल उद्योग
खेल दुनिया भर में एक मल्टीबिलियन डॉलर उद्योग है और एक उच्च सम्मानित कैरियर विकल्प है। खेल क्षेत्र में भारत में हुए विकास का असर स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. ना सिर्फ यह खेल और खेल सम्बंधित सेवाओं के विकास में सहायक है बल्कि इस के साथ जुड़े युवाओं के लिए एक अच्छा और आकर्षक कैरियर का अवसर भी प्रस्तुत करता है।
हाल के वर्षों में भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय खेलों की बड़ी संख्या में मेजबानी की है। चाहे आईपीएल हो या फिर २०११ क्रिकेट वर्ल्ड कप या फिर दिल्ली में 2010 में राष्ट्रमंडल खेल की मेजबानी – भारत सरकार का प्राइम फोकस खेल और खेल से सम्बंधित उत्पादों के बुनियादी ढांचे के विकास पर है। भारत में खेल उद्योग लगभग एक सदी पुराना है और इसमें काम करने वालों की संख्या और उनके कौशल की वजह से इस उद्योग में काफी निखार आया है. यह उद्योग 5,00,000 से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। भारत में इस इंडस्ट्री का केंद्र पंजाब और उत्तर प्रदेश के राज्यों के आसपास है।
खेल और पत्रकारिता
खेल पत्रकारिता – जैसा की नाम से ही पता चलता है की ये एक खेल रिपोर्टिंग करियर है. मीडीया यानी की टेलीविज़न, रेडियो, मॅगज़ीन्स और इंटरनेट हर किसी के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है. खेल के चाहने वेल फॅन्स खबरों के अपडेट्स और खबर की जानकारी के लिए इन माध्यमों का उपयोग करते है.
समाचार चैनलों में खेल के बारे में ख़बरे प्रसारित करने के लिए उनकी एक निश्चित एयरटाइम होती है. और इसके पीछे एक महत्वपूर्ण धन राशि भी खर्च किया जाता है. खेल से संम्बधित हर अखबार और पत्रिका में कॉलम लिखे जाते है और उनके लिए अलग अलग पन्ने भी समर्पित होते है. भारत में लोग ना सिर्फ खेल के बारे में पढ़ने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, बल्कि इस खंड का एक सार्वभौमिक पाठक वर्ग भी है। खेल पत्रकारिता इस क्षेत्र में हर दिन तेज गति से बढ़ रहा है कि और इस से खेल पत्रकारिता के बढ़ते लोकप्रियता को नाकारा नही जा सकता.
खेल के चाहनेवालों और खेल को फॉलो करने वाले लोगों के लिए यह एक बेहतरीन करियर है. इसमे जहाँ खेल पत्रकार को रिपोर्टिंग करने का ना सिर्फ़ मौका मिलता है बल्कि अलग अलग जगहों पर जाकर गेम्स कवर करने का भी चान्स मिलता है. इसके अलावा स्पोर्ट्स की वेन्यूस, नामी गिरामी खिलाड़ियों से मुलाक़ात, उनकी खबरों और इंटरव्यूस को वापस खेल के चाहनेवालों तक पहुचना ना सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी है बल्कि पत्रकारों के लिए यह एक मौका भी होता है खेल की बाड़ीकियों को नज़दीक से समझने का.
खेल पत्रकार बनना इतना आसान नही
खेल पत्रकारिता शुरू करने की पहली शर्त यह है की आपको खेलों की पूरी जानकारी होनी चाहिए. और जब हम खेल शब्द का प्रयोग करते है तो इसका मतलब सिर्फ़ क्रिकेट या फिर हमारी नॅशनल गेम हॉकी नही बल्कि कई अन्य खेल जैसे की – फुटबॉल, खोखो टेन्निस, बॅस्केटबॉल, वॉलीबॉल जैसे और भी कई खेल. अब तो टीवी ने कबड्डी जैसे खेलो को भी काफ़ी लोकप्रिय बना दिया है.
विषय की समझ के अलावा आपको दुनिया भर में हो रही खेलो पर भी पैनी नज़र बनाई रखनी होती है. शनिवार या रविवार की छुट्टियों को भूल जाए क्यूंकी ज़्यादातर स्पोर्ट्स इवेंट्स इन्ही दो दीनो में होते है. इसके अलावा आप महीनों तक अपने परिवार और परिजनों से दूर रहकर अख़बार, रेडियो, टीवी या फिर किसी वेबसाइट के लिए रिपोर्टिंग करते है.
इस करियर को अपनाना तो उतना मुश्किल नही है लेकिन इस फील्ड मे आकर अपना नाम बनाना काफ़ी मुश्किल है. एक बार इस फील्ड में नाम बन जाने के बाद आपको हर इवेंट्स के लिए इन्विटेशन खुद ही आएँगे और लाइव मैच आपको बॉक्स सीट्स से देखने का मौका भी मिलता है. इसके अलावा आपको इंटरनॅशनल्स स्पोर्ट्स स्टार्स से भी रूबरू करने का मौका मिलता है. एक देश से दूसरे देशों का सफ़र के दौरान आप खेल, खिलाड़ियों, कोच और उनकी ट्रैनिंग को जानते है और उसे अपने ऑडियेन्स तक पहूचाते है.
स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट बनने के लिए टॉप टिप्स
- आपके अंदर खेल के प्रति जूनून होना चाहिए और इसके लिए आपको खेल से प्यार होना चाहिए. आपको खेल और खिलाड़ियों को जानने के अलावा इवेंट्स पर भी नज़र रखनी पड़ेगी. जब तक आपको खेलों में रूचि नही होगी आप एक अच्छे खेल पत्रकार बन ही नही सकते.
- स्पोर्ट्स राइटिंग – लिखना एक कला है और जैसे की अँग्रेज़ी मे कहावत है की – राइटिंग विल नेवेर बे आ वेस्टेड स्किल, नो मॅटर हाउ मच टेक्नालजी टेक्स ओवर. – यानी लेखन कभी भी बेकार नही जाता है चाहे दुनिया कितना भी बदल जाए. और अच्छा लेखन पढ़ने से ही आता है. आप जितना पढ़ेगे उतना ही आपकी लिखावट में सुधार होगा. आर्टिकल्स पढ़े और अपने फॅवुरेट स्पोर्ट्स राइटर्स के डिफरेंट स्टाइल्स ऑफ राइटिंग पर गौर करे – आपको अंतर सॉफ दिखेगा और आप अलग अलग स्टाइल्स को समझ पाने में सक्षम होंगे. जितना लिखेंगे उतना सीखेंगे – यही है अच्छे लेखन को सीखने का फ़ॉर्मूला – अगर आपको स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट बनना है तो आपको कॉलेज के दिनों से ही लिखना शुरू कर देना चाहिए. एक बात याद रखे – लेखन का कोई रीप्लेस्मेंट नही है.
- आपको कॉलेज की ग्रेजुएशन डिग्री के दौरान ही नज़र रखनी पड़ेगी ऐसी यूनिवर्सिटी कोर्सस पर जो स्पोर्ट्स जर्नलिज़म मे स्पेशलाइज़ करती हो. वैसे बहुत सारे नेशनल और इंटरनेशनल लेवेल पर अच्छे यूनिवर्सिटीस जर्नलिज़म के क्षेत्र मे स्पेशलिस्ट कोर्सस औफ़र करती है.
- कोर्स ख़त्म होने के बाद आपको वर्क एक्सपीरियेन्स के लिए तुरंत ही अप्लाइ करना चाहिए. प्लेस्मेंट्स के लिए लोकल पेपर्स, रेडियो स्टेशन्स और टीवी मीडीया आउटलेट्स मे भी प्रयास करना चाहिए.
. • खेल और खिलाड़ियों का इंटरव्यू काफ़ी महत्वपूर्ण होता है और आपको समझना पड़ेगा की यही आपकी रोज़ी और रोटी है. अचानक से विराट कोहली या फिर सचिन तेंदुलकर का इंटरव्यू करना इतना आसान नही होता. मैने अपने करियर मे एसे कई नये पत्रकारों को देखें है जो इंटरव्यू के दौरान बड़े खिलाड़ियों के सामने यही भूल जाते है की उनको पूछना क्या है. तो सबसे पहले आपको अपने अंदर की झीझक को दूर करना पड़ेगा – इसके लिए आप किसी भी ज़ूनीयर लेवेल के टूर्नमेंट और मॅच के दौरान इंटरव्यू करने की प्रॅक्टीस शुरू कर सकते है.
- और सबसे महत्वपूर्ण प्वाइंट, खेल पत्रकारों से बातचीत का सिलसिला बनाए रखना . ये प्वाइंट इसलिए भी इतना अहम है क्यूंकी आपको असल मे फील्ड मे ही सब कुछ सीखने का मौका मिलता है. आपके सामने कई तरह के पत्रकार होते है – कई छोटे तो कई नामी गिरामी. आप उन्हे फील्ड मे काम करते देखते हो और आप उनकी अच्छाइयों से तो सीखते ही हो बल्कि आप उनकी ग़लतियों से भी सबक लेते हो. हर जर्नलिस्ट के काम करने का तारीखा अलग अलग होता है और इसका कोई सेट फ़ॉर्मूला भी नही होता है – तो जो आपको फील्ड में सीखते है वो इन जर्नलिस्टस के अनुभव को आधार बनाकर ही सीखते है.
अगले भाग में हम खेल पत्रकारिता के अलग अलग पाठ्यक्रम और जॉब प्रोफाइल्स की चर्चा करेंगे और जानेगे की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में कहाँ कहाँ नौकरियाँ उपलब्ध है,
नीरज झा ने भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) ईलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज़म की पढ़ाई करने के बाद एक मल्टिनॅशनल इंटरनॅशनल मॅनेज्मेंट ग्रूप (IMG) की टीवी प्रोडक्सन विंग ट्रांस वर्ल्ड इंटरनॅशनल (TWI) से अपने करियर की शुरुआत की. उसके बाद उन्होने ज़ी न्यूज़ मे स्पोर्ट्स रिपोर्टर के तौर पर काम किया. 2005 में टेन स्पोर्ट्स में काम करने का मौका मिला और उसके बाद से वो लगातार पिछले 10 सालों से इस स्पोर्ट्स चॅनेल से जुड़े हुए है. कई देशों में लाईव स्पोर्ट्स प्रोड्यूस करने के अलावा इन्हे स्पोर्ट्स प्रोग्राम बनाने का भी अच्छा ख़ासा तजुर्बा हासिल है. इसके अलावा वो BBC हिन्दी, और कई दूसरे वेबसाइट्स के लिए लिखते रहे है. भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC), आमिटी और शारदा यूनिवर्सिटी मे भी इन्होने बतौर गेस्ट लेक्चर अपना समय दिया है.