डॉ. महर उद्दीन खां |
भारत गांवों का देश है। शिक्षा के प्रसार के साथ अब गांवों में भी अखबारों और अन्य संचार माध्यमों की पहुंच हो गई है। अब गांव के लोग भी समाचारों में रुचि लेने लगे हैं। यही कारण है कि अब अखबारों में गांव की खबरों को महत्व दिया जाने लगा है। अखबारों का प्रयास होता है कि संवाददाता यदि ग्रामीण पृष्ठभूमि का हो तो अधिक उपयोगी होगा। हर गांव एक खबर होता है और इस एक खबर के अंदर अनेक खबरें होती हैं। पत्रकार यदि समय समय गांव का दौरा करते रहें और वहां के निवासियों के निरंतर सम्पर्क में रहे तो उन के पास कभी खबरों का टोटा नहीं होगा। गांव के नाम पर कई पत्रकार नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं मगर ऐसा ठीक नहीं। माना गांव में पत्रकारों को वह सब नहीं मिलता जो शहरों में मिलता है। अगर आप को गांव जाने का चस्का एक बार लग गया तो फिर आप के लेखन की दिशा ही बदल जाएगी।
सामान्य रुटीन समाचारों के अतिरिक्त गांव में समाजिक सरोकारों से जुड़े ऐसे समाचार होते हैं जो पाठकों को नया अनुभव देते हैं। समय-समय पर गांवों में विभिन्न सरकारी योजनाएं चलती रहती हैं इन याजनाओं से गांवों में आए बदलाव के साथ साथ योजना में भ्रष्टाचार के समाचार भी गांव के हित में होते हैं। अगर इन योजनाओं पर पत्रकार पैनी नजर रखेंगे तो योजना का जो लाभ मिल रहा है वह और अधिक मिलने लगेगा क्यों कि जब योजना लागू करने वालों को पता चलेगा कि इस पर पत्रकार की नजर है तो वह गलत काम करने से पहले सोचेगा और गलत काम करने से बचेगा।
शहरी करण के बढ़ते प्रभाव के कारण गांवों में क्या बदलाव आ रहा है यह भी जनरुचि का विषय है। इसे हम चाहें तो कई भागों में बांट सकते हैं जैसे खान पान और पहनावे में बदलाव, सामाजिक सम्बंधों में बदलाव, युवाओं में बदलाव और महिलाओं पर शहरीकरण का असर आदि। आज बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण पर काफी चिंता जताई जा रही है मगर यह चिंता केवल शहरों तक ही सीमित है। पर्यावरण प्रेमी अभी तक अहा ग्राम जीवन भी क्या है पर ही अटके हैं जबकि आज गांव के नदी नाले, तालाब पोखर और चरागाह सब प्रदूषण की चपेट में हैं। इस समस्या पर पत्रकार ही सरकार और समाज का ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं बशर्ते कि वह गांव जाना आरंभ कर दें।
गांव में रहने वालों के पास लोक साहित्य का अनूठा खजाना होता हैं लोगों से मिल कर इस बारे में जानकारी ली जाए आरै फिर उस का उपयोग पत्रकारिता में किया जाए तो समाचार अधिक रोचक हो जाएगा। गांवों में प्रचलित मुहावरे और लाकोक्तियां समाचार में सोने पर सुहागा का काम करती हैं। ग्रामीण रिपोर्टिंग से नीरसता का भाव पैदा होता है मगर ऐसा है नहीं यह हमारी सोच है जबकि ग्रामीण रिपोर्टिंग शहरी रिपोर्टिंग से कहीं अधिक सरल होती है तथा अगर मन से काम किया जाए तो पाठक उसे पढना भी पसंद करता है।
गांव के बारे में रिपोर्ट लिखते समय सावधानी यह बरतनी होगी कि समाचार किसी के पक्ष या वरोध में न हो जाए। दरअसल गांवों में गांव प्रधान के चुनाव को ले कर हर गांव में गुटबंदी हो गई है। एक गुट दूसरे को नीचा दिखाने की जुगत में रहता है और इस के लिए वह पत्रकार को मोहरा बना सकता है। सावधानी यह बरतनी है कि अगर प्रधान के बारे में कोई समाचार मिले तो उसे देने से पहले प्रधान का पक्ष भी जान लेना जरुरी है। प्रधान या पंचायत अधिकारी कोई सूचना नहीं दे रहे हैं तो इस के लिए आरटीआई का सहारा लिया जा सकता है।
खेत खलिहान से जुड़ी यानि कृषि पत्रकारिता भी ग्रामीण पत्रकारिता का एक अंग है। भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश है और अब अखबारों में भी कृषि पत्रकारिता पर ध्यान दिया जाने लगा है। पत्रकारिता के माध्यम से हम किसानों को कृषि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं । इस के लिए सरकारी साधनों के अतिरिक्त पत्रकार के लिए अध्ययन करना भी महत्वपूर्ण होता है। सरकार की ओर से किसानों को नए बीज, खाद और खर पतवार नाशक की जानकरी समय समय पर दी जाती रहती है मगर वह किसान के पास सही समय पर नहीं पहुंच पाती एसे में पत्रकार ही किसान की मदद कर सकते हैं यही नहीं पत्रकार किसान की इस बारे में भी मदद कर सकते हैं कि किस उर्वरक का अधिक प्रयोग हानि कारक हो सकता है। इस सब को देखते हुए सरकार ने एक किसान चैनल भी आरंभ किया है इस चैनल में कृषि से सम्बंधित जानकारी के लिए भी पत्रकारों की आवश्यकता रहती है।
खेती किसानी से सम्बंधित ग्रह नक्षत्रों की चाल मौसम के बारे में भविश्यवाणी और हवाओं के रुख के बारे में घाघ आदि कवियों की अनेक कविताएं और उक्तियां गांवों में प्रचलित हैं मगर अब ये धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं जबकि आज भी मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुकाबले ये लोकोक्तियां अधिक सठीक बैठती हैं। कृषि से जुड़े पत्रकार इन सब की जानकारी रखेंगे और इनका उपयोग करेंगे तो किसान और समाज दोनों के हित में होगा। पशु पक्षी भी मौसम की भविष्यवाणी अपने क्रिया कलापों से करते हैं जानकार लोग इनके आधार पर किसानों को सलाह भी देते हैं। खेती किसानी से जुड़े पत्रकार अगर समय-समय पर ऐसी जानकारियों पर प्रकाश डालते रहें तो यह भी किसानों के हित में होगा। अंधविश्वास या टोटके कह कर इन बातों को नकारा नहीं जा सकता।
आज किसान के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां नए नए बीज ले कर आ रही हैं जो उत्पादन बढाने में महत्व्पूर्ण योगदान तो करते हैं मगर उन के बारे में कई प्रकार की अन्य बातें भी सुनने को मिलती हैं। उदाहरण स्वरुप बीटी कपास और बीटी बैंगन के बारे में कहा जा रहा है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अब इस माहौल मे कृषि से जुड़े पत्रकार का यह दायित्व हो जाता है कि वह अध्ययन कर सही स्थिति किसान और समाज के सामने लाए।
दिल्ली में पत्रकारिता करते समय देखा गया कि हिंदी और अंग्रेजी के बड़े अखबारों में एक पत्रकार ऐसा भी रखने का चलन है जो खेती किसानी के बारे में विशेष योगयता रखता हों समय समय पर इन की रिपोर्ट अखबारों में छपती रहती हैं। इस प्रकार के समाचार न केवल किसान या गांव के लोग पढ़ते हें बल्कि शहरी पाठक और अन्य पत्रकार भी ऐसे समाचारों का अध्ययन कर अपनी जानकारी में इजाफा करते देखे गए हैं। पत्रकारों के लिए खेती किसानी की रिपोर्टिंग में र्प्याप्त अवसर हैं बशर्ते कि इनका लाभ उठाया जाए।
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डॉ. महर उद्दीन खां लम्बे समय तक नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे और इसमें उनका कॉलम बहुत लोकप्रिय था. हिंदी जर्नलिज्म में वे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं संपर्क : 09312076949 email- maheruddin.khan@gmail.com