डॉ. धरवेश कठेरिया |
समय की तेज रफ्तार और सूचना की बढ़ती भूख ने फेसबुक जैसे सोशल साइट्स को जन्म दिया। फेसबुक के आगमन से अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ संवाद की गति भी तेज हो गई है। आज सूचनाएं अखबार, टेलीविजन से पहले फेसबुक पर आती है। 80 प्रतिशत फेसबुक यूजर का मानना है कि फेसबुक व्यक्तिगत सोच को सामाजिक सोच में परिवर्तित कर रहा है। 74 प्रतिशत लोगों का मानना है कि तकनीकी सुविधाओं ने वर्चुअल दुनिया को जन्म दिया है। हम अपने सगे-सबंधी से दूर होते जा रहे हैं। 51 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि ज्ञान-विज्ञान की दुनिया से जोड़ रहा है साथ ही फेसबुक किताबों से दूर नहीं कर रहा है। उक्त बातें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के सहायक प्रोफेसर धरवेश कठेरिया के नेतृत्व में (पुरुष उपयोगकर्ताओं के विशेष संदर्भ में) विषय-फेसबुक का उपयोग, दायित्व और सीमाएं पर हुए शोध में सामने आयी।
शोध का हवाला देते हुए डॉ. कठेरिया ने कहा कि फेसबुक अभिव्यक्ति का मंच है। फेसबुक का सही उपयोग करें। आज फेसबुक का उपयोग भ्रम फैलाने के लिए किया जा रहा है। यह समाज के लिए हितकर नहीं है। फेसबुक उपयोग करते समय उसके दायित्व, नियम व शर्तों से परिचित रहें। फेसबुक अभिव्यक्ति का संगम है जहां आप हजारों विचारों से रूबरू होते हैं। फेसबुक का उपयोग व्यक्तिगत हित के साथ-साथ सामाजिक हित को ध्यान में रखकर करें। आज फेसबुक पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर मंथन की जरूरत है।
शोध में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 31 प्रतिशत जानकारी बढ़ाने के लिए, 29 प्रतिशत व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए, 22 प्रतिशत सामाजिक सरोकारों के लिए, 15 प्रतिशत समय बिताने के लिए और 03 प्रतिशत अधिक से अधिक मित्र बनाने के लिए फेसबुक का उपयोग करते हैं। फेसबुक सामाजिक मुद्दों पर जनमत बनाने में सक्षम है लेकिन आंकड़े यह दर्शाते हैं कि फेसबुक सामाजिक मुद्दों पर जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा नहीं करता है। यह केवल इसे कुछ हद तक राय बनाने की भूमिका तक मानते हैं। वर्तमान समय में फेसबुक पर ज्यादातर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा रहा है जिससे सूचनाओं में पारदर्शिता आ रही है। फेसबुक ने भौगोलिक दूरियों को कम किया है।
शोध अध्ययन में डॉ. कठेरिया के अलावा स्वतंत्र पत्रकार शिवांजलि कठेरिया, जनसंचार विभाग के पीएच.डी. शोधार्थी निरंजन कुमार,
आईसीएसएसआर परियोजना के शोध सहायक नीरज कुमार सिंह, एमए. जनसंचार के अविनाश त्रिपाठी, एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पंकज कुमार, पूर्णिमा झा और पद्मा वर्मा की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
अध्ययन को स्वरूप देने के लिए वर्धा शहर में स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा से जुड़े देश के अलग-अलग प्रांतों से अध्ययनरत छात्रों को शामिल किया गया है। इसमें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल, और उत्तर भारत के अनेक शहरों से आए अध्ययनरत छात्रों के मतों को आधार बनाया गया है। अध्ययन हेतु प्रश्नावली और अनुसूची (अनुसूची-खास तौर से भाषाई विविधता के कारण प्रश्नावली भराने में हुई परेशानी को देखते हुए शोध तथ्य संकलन हेतु) का प्रयोग किया गया है।
शोध में शामिल कुछ प्रतिभागी फेसबुक को समाज के लिए हितकार मानते हैं तो वहीं कुछ इसे नकारात्मक। कुछ प्रतिभागियों का मत है कि फेसबुक 21वीं सदी में सूचना के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम है। फेसबुक को प्रतिभागियों ने व्यवसाय से जोड़ते हुए भी महत्वपूर्ण माना, वहीं कुछ प्रतिभागी इसे सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन में भी फेसबुक को अहम स्थान प्राप्त होता है। समाज में प्रभाव की दृष्टि से भी फेसबुक महत्वपूर्ण है। युवाओं के लिए फेसबुक सूचना, मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान में वृद्धि करने का माध्यम भी बन गया है। आज युवा पीढ़ी इस माध्यम का भरपूर उपयोग करती नजर आ रही है।
फेसबुक पर कानून विरोधी विषयवस्तु को देखने वाले विषय में धर्म, जाति आदि की उपेक्षा के अन्तर्गत 28 प्रतिशत मत, हिंसा व द्वेष के उत्प्रेरक विषय संबंधी 20 प्रतिशत, अश्लील विषयक 18, मानहानि/अपमान सूचक 17 प्रतिशत और फेसबुक पर अनैतिक विषयवस्तु न देखने वालों का मत भी 17 प्रतिशत प्राप्त होता है।
फेसबुक यूजर यह मानते हैं कि फेसबुक की उपयोगिता सूचना प्राप्त करने और विचारों के आदान-प्रदान के लिए है वहीं कुछ लोग इसे जनसंपर्क, मित्रों से चैट और कैरियर लाभ की दृष्टि से भी देखते हैं। ज्यादातर युवा फेसबुक के माध्यम से अपने कैरियर को भी आगे बढ़ा रहे हैं। फेसबुक विचारों के आदान-प्रदान में क्रांति लाने का काम कर रहा है। आज सूचना क्रांति को विस्तार रूप देने में कहीं न कहीं फेसबुक का महत्वपूर्ण योगदान है। आज फेसबुक संचार का सबसे सशक्त माध्यम बन कर उभरा है। फेसबुक के युग को सूचना युग कहा जाय तो गलत नहीं होगा। फेसबुक के माध्यम से आमजन सामाजिक मुद्दों से भी अवगत हो रहे हैं। तथ्यों पर गौर करें तो 56 प्रतिशत मत सामाजिक मुद्दों से अवगत कराने के पक्ष में जाता है। वर्तमान समय में फेसबुक सामाजिक परिवर्तन की दिशा में सशक्त भूमिका अदा कर रहा है।
डॉ. धरवेश कठेरिया, सहायक प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र
ई-मेलः dkskatheriya@yahoo.com M. 09922704241