शैलेश और डॉ. ब्रजमोहन।
पत्रकारिता में टीवी रिपोर्टिंग आज सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम है। अखबार या संचार के दूसरे माध्यमों की तरह टीवी रिपोर्टिंग आसान नहीं। टेलीविजन के रिपोर्टर को अपनी एक रिपोर्ट फाइल करने के लिए लम्बी मशक्कत करनी पड़ती है। रिपोर्टिंग के लिए निकलते वक्त उसके साथ होता है कैमरामैन, जो फील्ड में घटना के विजुअल और लोगों की प्रतिक्रियाएं शूट करता है। जबरदस्त कम्पिटिशन के इस दौर में टीवी रिपोर्टर के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है कि वो सबसे पहले अपने चैनल में न्यूज ब्रेक करे। इसके लिए इसके पास ओबी वैन या फ्लाई-वे जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं। इनकी अनुपस्थिति में उसे एफ.टी.पी. या टू्.एम.बी. की मदद से विजुअल और खबरें भेजनी पड़ती हैं। टीवी रिपोर्टर का काम यहीं खत्म नहीं हो जात। दफ्तर लौटकर उसे बाइट और विजुअल फिर से देखने पड़ते हैं, फिर पूरी कहानी सिलसिलेवार तरीके से लिखनी पड़ती है।
रिपोर्टर को ग्राफिक्स की मदद भी लेनी पड़ती है। उसे ग्राफिक्स की मदद से स्टोरी में शामिल व्यक्तियों के नाम, पद, नक्शा, लोकेशन या स्टोरी का कुछ हिस्सा टेक्स्ट के तौर पर लिखकर दिखाना होता है। इसके बाद प्रोड्यूसर उसकी स्क्रिप्ट चेक करता है। फिर कहानी के मुताबिक रिपोर्टर घटना के विजुअल, साउंड खुद रफ एडिट करता है और इसके बाद फाइनल एडिटिंग के लिए वीटी एडिटर के पास जाताहै। वीटी एडिटर स्क्रिप्ट के मुताबिक विजुअल को फाइनल एडिट करता है, स्टोरी के लिए वॉइस ओवर रिकॉर्ड करता है, उसका साउंड लेवल चेक करता है। तब जाकर स्टारी तैयार होती है।
इसके बाद रिपोर्टर स्टोरी रनडाउन से गुजरते हुए स्टूडियों तक पहुंचती है, जहां स्टूडियो डायरेक्टर, विजन मिक्सर और साउंड इंजीनियर स्टोरी के ऑडियो-विजुअल की क्वालिटि को टेलीकास्ट के अनुरूप नियंत्रित करते हैं। फिर स्टारी ऑन एयर होकर टेलीविजन के जरिए घरों में पहुंचती है। इतनीलंबी प्रक्रिया के बाद एक रिपोर्टर की खबर दर्शकों तक पहुंचती है। यानी डेढ़ या दो मिनट की स्टोरी तैयार करने के लिए न्यूज रूम में मीडियार्मियों की एक पूरी फौज जुटी होती है और एक पूरी रिपोर्ट तैयार करने में घंटों वक्त लग सकता है।
इन सबमें सबसे बड़ी है कि टेलीविजन का रिपोर्टर, घटना की वास्तविक वस्वीर पेश करने वाले विजुअल के पीछे भागता है। ये काम अखबार या दूसरे माध्यम के रिपोर्टर नहीं करते। खबर पहुंचाने के मामले में टेलीविजन, अखबार से ज्यादा तेज माध्यम है, इसलिए टीवी रिपोर्टर के पार अखबार के रिपोर्टरों की तरह ज्यादा वक्त नहीं होता। अखबार में जो खबर दूसरे दिन सुबह पढ़ने को मिलेगी, वही खबर टेलीविजन पर लोगों को लाइव भी देखने को मिल सकती है। लेकिन ये सब तभी मुमकिन है, जब टीवी रिपोर्टर तेजतर्रार हो। सबसेबड़ी बात ये है कि अखबार की रिपोर्टर दिनभर में एक बार छपने वाले अखबार के लिए काम करता है, इसलिए ज्यादातर घटनाओं में उसके पास वक्त ही वक्त होता है, लेकिन टेलीविजन में ऐसी बात नहीं है। टीवी का जो रिपोर्टर, जितना जल्द खबरें लेकर आएगा, वो अपने पेशे में उतना ही सफल माना जाएगा।
विजुअल/स्क्रिप्ट की अहमियत
टीवी नयूज ऑडियों-विजुअल माध्यम है, इसलिए किसी स्टोरी को कवर करत वक्त टीवी रिपोर्टर के लिए निहायत जरूरी है कि वो ऑडियो और विजुअल, दोनों पक्षों में अपनी खबर को संतुलित रखे। यानी विजुअल स्टोरी के साथ न्याय करते हुए तो होने ही चाहिए और एक स्टारी में जितने पक्ष हों, उन सभी को अपनी बात कहने का भी पूरा मौका मिले। दर्शक को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि रिपोर्टर किसी का पक्ष ले रहा है। टीवी न्यूज की एक स्टोरी के लिए घटनास्थल की तमाम गतिविधियां कैमरे में कैद करने के अलावा बैलेंस स्टोरी बनाने के लिए पक्ष-विपक्ष के बयान और अधिकारियों या पुलिस का पक्ष भी शामिल करना जरूरी है। इन तमाम चीजों के लिए मुमकिन है कि रिपोर्टर को अलग-अलग जगहों पर जाना पड़े और उनकी बात रिकॉर्ड करने (बाइट लेने) के अलावा उसे स्टोरी से जुड़े अन्य विजुअल भी कैमरामैन से शूट कराना पड़े।
दर्शक अक्सर अच्छी और दिलचस्प चीजों को देखने के लिए अपने टीवी पर चैनल सर्च करता रहताहै। स्टोरी ऐसी होनी चाहिए कि टीवी पर चैनल सर्च के दौरान उसकी एक झलक देखकर ही दर्शक ठहर जाए। ये अच्छा विजुअल हो सकता है, अच्छी सक्रिप्ट हो सकतीहै, अच्छा वीओ या ग्राफिक्स, कुछ भी हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि स्टोरी बनाने का काम टीम भावना से किया गया हो। इसमें कैमरामैन, वीटी एडिटर,कॉपी डेस्क, वीओ,एंकर और प्रोड्यूसर सभी की अहम भूमिका होती है। लेकिन रिपोर्टर को हमेशा याद रखना चाहिए कि स्टोरी बनाने में भले ही कितने लोगों की भूमिका हो, स्टोरी टेलीकास्ट होनी चाहिए कि स्टोरी बनानेमें भले ही कितने लोगों की भूमिका हो, स्टोरी टेलीकास्ट होगी उसके नाम से ही और उसके अच्छे, बुरे का क्रेडिट भी उसे ही मिलेगा।
टेलीविजन पत्रकारिता में विजुअल की ज्यादा अहमियत है। इसलिए टेलीविजन के रिपोर्टर को दूसरे माध्यम के रिपोर्टरों से ज्यादा काम तो करना ही पड़ता है, साथ ही तेजी से काम करना पड़ता है। उदाहरण के लिए शहर में कहीं आगजनी या बड़ी वारदात हो जाए, तो टीवी रिपोर्टर को अखबार से रेडियों के रिपोर्टर से कहीं ज्यादातेजी से घटनास्थल पर पहुंचना होगा। क्योंकि घटना का ब्यौरा तो सूत्रके जरिए भी मि सकता है, लेकिन विजुअल के लिए तो सही वक्त पर मौके पर होना निहायत जरूरी है।
टेलीविजन एक ऐसा माध्यम है, जो विजुअल के जरिए घटनाकी असली तस्वीर सीधे दर्शकों तक पहुंचाता है। कोई क्या कह रहा है, आमतौर पर लोगों की उससे ज्यादा दिलचस्पी घटना की तस्वीरों में होतीहै। एक सर्वे के मुताबिक दस सेकेण्ड के बाद ही टीवी देखने वाले दर्शक का ध्यान ऑडियो से हटकर विजुअल पर केंद्रित हो जाता है। खास बात ये है कि काई घटना जिस रूप में घटती है, दर्शक उसे, उसी रूप में देखना पसन्द करता है।
लेकिन केवल विजुअल से ही खबर पूरी नहीं हो जाती। टीवी रिपोर्टर से उम्मीद की जाती है कि वो अच्छी स्क्रिप्ट भी लिखे। इसलिए उसे विजुअल के साथ शब्दों के इस्तेमाल की क्षमता भी विकसित करनी पड़ती है। अक्सर ऐसा होता है कि रिपोर्टर अब अपनी खबर के लिए कहानी लिखनी शुरू करता है, तो विजुअल से मैच करते शब्द उसक दिमाग में जल्द नहीं आते और स्टोरी आगे बढ़ाने में बड़ी मश्किल होती है। इसलिए बेहतर है कि सफल रिपोर्टर बनने की लालसा रखने वाले छात्र को पढ़ाई के दौरान ही विजुअल के मुताबिक लिखने की क्षमता बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा टीवी रिपोर्टर को सोचने की क्षमता भी विकसित करनी चाहिए। इससे उसे तुरन्त फैसला लेनेमें मदद मिलेगी।
टीवी रिपोर्टर को एक स्टोरी बनाने में इस्तेमाल होने वाली तकनीक की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। उसे पूरेआत्मविश्वास के साथ कैमरा फेस करना चाहिए और जब वो पीटीसी (पीस टू पीस) कर रहा हो, तो इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि वो जो कुछ बोल रहा है, पूरे आत्मविश्वास के साथ बोल रहा है। इससे लोगों में उसकी क्रेडिबिलिटी बढ़गी। दर्शक उसकी बातों पर भरोसा करेंगे।
रिपोर्टिंग क्या है?
टीवी रिपोर्टिंग दरअसल एक पूरा पैकेज है, जिसमें रिपोर्टर की समझ, उसकी भाषा कहानी कहने की उसकी कला, उसकी आवाज, सब मिलकर उसकी काबिलियत साबित करती है। टीवी रिपोर्टर की असली पहचान उसकी रिपोर्टिंग क्षमता से ही होती है। जो रिपोर्टर खबरों को खोज निकालने में जितना माहिर होगा, वो मीडिया के क्षेत्रमें उतना ही सफल रहेगा और रिपोर्टरों की भीड़ में अपनी अलग पहचान बना पाएगा। मीडिया की चकाचौंध को देखकर पत्रकारिता के हर विद्यार्थी की पहली ख्वाहिश रिपोर्टर बनने की ही होती है। इसलिए सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि रिपोर्टिंग आखिर है क्या।
रिपोर्टिंग बहुत ही परिचित और आम शब्द है, लेकिन जर्नलिस्म के छात्रों के लिए जरूरी है कि वो इसका सही मतलब समझें। रिपोर्टिंग का सीधा सा अर्थ है समाचारों का संग्रह और उसकी डिलेवरी। जो बात कही-सुनी या देखी गई हो, उसे सूचना के अंदाज में दर्शकों, पाठकों, आम लोगों तक पहुंचाना ही रिपोर्टिंग है।
टीवी रिपोर्टिंग का आधारभूत सिद्धांतभी यही है, लेकिन संचारके दूसरे माध्यम की तुलना में इसमें थोड़ा ज्यादा काम करना पड़ता है। घटनास्थल पर जाकर घटना का विजुअल सहित सही ब्यौरा लेना और उसे निर्धारित न्यूज फॉर्मेट में सिलसिलेवार तरीके से लिखकर या बोलकर विजुअल और ग्राफिक्स टेक्स्ट की मदद से टीवी के जरिए दर्शकों तक पहुंचाना ही सही मायनेमें टीवी रिपोर्टिंग है।
दरअसल रिपोर्टिंग कोई नई कला नहीं है और धरती पर सभ्यता की शुरूआत से ही इंसान इस कला में माहिर है। ईव और आदमी के प्यार की कहानी सब जानते हैं। लेकिन ये दोनों दुनिया के पहले रिपोर्टर भी थे, इस बात पर कम लोगों ने ही गौर किया है। ईव ने जब आदम से कह होगा कि उसने पेड़ से सेब तोड़ कर खा लिया है, तो ये भी एक तरह की रिपोर्टिंग ही थी। हिन्दू पुरातन कथाओं में तो लाइव रिापोर्टिंग तक के प्रमाण मिलते हैं। जब महाभारत की लड़ाई चल रही थी, तो संजय ने कौरवों के राजा धृतराष्ट्र को इस लड़ाई का आंखों देखा हाल सुनाया था। संजय ने लड़ाई की एक-एक घटना को विस्तार से बताया था, ठीक उसी तरह, जैसा आजकल टेलीविजन में रिपोर्टर लाइव के जरिए किसी घटना से दर्शकों को रू-ब-रू कराते हैं।
टेलीविजन के वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद रिपोर्टिंग की व्याख्या कुछ इस तरह करते हैं। उनक कहना है कि दरअसल बच्चा जन्म से ही अपने साथ दो प्रतिभाएं लाता है। एक अभिनय और दूसरी पत्रकारिता। यानी जब बच्चा मां के पास रहता है, तो शाम को पिता के आते ही, वह पिता के सामने दिनभर की रिपोर्टिंग करता है। जब पिता के साथ होता है, तो सब कुछ मां को बताता है। जब वह घर से बाहर निकलता है, तो घर की खबरें, दोस्तों को सुनाता है और घर आकर मुहल्ले की सारी बातें माता-पिता को बताता है। बच्चों की बातों में हर तरह की खबरें होती हैं, सनसनीखेज, अपराध, खेल, रोमांच, यहां तक की खोजी खबरें भी होती हैं।
तो यही अर्थों में रिपोर्टिंग का मतलब है, संदेशों का आदान-प्रदान और इंसान हर युग में इस माध्यम का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में करता रहा है।
शैलेश : बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान दैनिक जागरण के लिए रिपोर्टिंग। अमृत प्रभात (लखनऊ, दिल्ली) में करीब 14 साल तक काम। रविवार पत्रिका में प्रधान संवाददाता के तौर पर दो साल रिपोर्टिंग। 1994 से इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में। टीवीआई (बीआईटीवी) आजतक में विशेष संवाददाता। जी न्यूज में एडिटर और डिस्कवरी चैनल में क्रिएटिव कंसलटेंट। आजतक न्यूज चैनल में एक्जिक्यूटिव एडिटर रहे। प्रिंट और इलेक्ट्रिॉनिक मीडिया में 35 साल का अनुभव।
डॉ. ब्रजमोहन : नवभारत टाइम्स से पत्रकारिता की शुरुआत। दिल्ली में दैनिक जागरण से जुड़े। 1995 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। टीवीआई (बीआईटीवी), सहारा न्यूज, आजतक, स्टार न्यूज, IBN7 जैसे टीवी न्यूज चैनलों और ए.एन.आई, आकृति, कबीर कम्युनिकेशन जैसे प्रोडक्शन हाउस में काम करने का अनुभव। IBN7 न्यूज चैनल में एसोसिएट एक्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे। प्रिंट और इलेक्ट्रॉंनिक मीडिया में 19 साल का अनुभव।