Amit Dutta
1. डाटा जर्नलिज्म क्या है?
2. डाटा जर्नलिज्म का इतिहास
3. डाटा जर्नलिज्म की अहमियत (परिभाषाएं)
4. खबरों में आँकड़ों का इस्तेमाल जरूरी क्यों?
5. आँकड़े कहां से जुटाएं?
6. आँकड़ों को कैसे समझें
7. आसान शब्दों में आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण
8. भारत में डाटा जर्नलिज्म
9. डाटा जर्नलिज्म: कुछ रोचक आँकड़े
10.3 बेहतरीन उदाहरण
डाटा जर्नलिज्म के बारे बात करने से पहले हाल की इन 5 खबरों पर गौर करें-
1. भारत ने ऑस्ट्रेलिया को तीसरे वनडे मैच में हराकर 3-0 से सीरीज पर किया कब्जा
2. इंफोसिस के जून तिमाही के नतीजे निराशाजनक, मुनाफा 5.4 फीसदी घटा
3. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 42.3 फीसदी वोट के साथ 71 सीटें हासिल की हैं।
4. दिल्ली में सड़क हादसों की संख्या 976 से घटकर 857 हो गई है। इसके अलावा लूटपाट और स्नैचिंग की वारदात 5,682 से घटकर 1,860 हो गई हैं। जघन्य अपराधों में भी खासी कमी आई है।
5. वायु गुणवत्ता प्रणाली एवं मौसम भविष्यवाणी प्रणाली एवं अनुसंधान (एसएफएआर) के मुताबिक दिल्ली में धूलकण का स्तर 2.5 और पीएम 10 का स्तर अधिकांश जगहों पर 500 से ऊपर रहा।
ऊपर दी गई जानकारियां क्रमश: खेल, कारोबार, राजनीति, अपराध और पर्यावरण से जुड़ी हुई हैं। इनमें ध्यान देने वाली बात ये है कि हर खबर में आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। अगर हम इनमें से आँकड़े निकाल दें तो ये खबर किसी काम की नहीं होगी, ये सिर्फ शब्दों का समूह होकर रह जाएगा और इसमें पाठकों को कोई दिलचस्पी नहीं रह जाएगी। लेकिन आँकड़ों के इस्तेमाल से ये जानकारियाँ अर्थपूर्ण हो गई हैं और समझने के लिहाज से आसान भी।
डाटा जर्नलिज्म क्या है?
साधारण शब्दों में आँकड़ों के आधार पर की जाने वाली पत्रकारिता को डाटा जर्नलिज्म कहते हैं। लेकिन आँकड़े और पत्रकारिता दोनों ही शब्द काफी व्यापक अर्थ वाले हैं। डिजिटल क्रांति के इस युग में पत्रकारिता का विस्तार जिस तेजी से हुआ है, उतनी ही तेजी से अब हर तरह के आँकड़े भी आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं।विभिन्न स्रोतों सेजुटाए गए आँकड़ों के आधार पर स्टोरी लिखी जाती है और इसके जरिए जटिल आँकड़ों को आसान शब्दों में समझाया जाता है।
ये आँकड़े प्रस्तुत करने की एक विधा है जिसके लिए पत्रकारिता का बुनियादी ज्ञान होना जरूरी है। आँकड़ों के ढेर से महत्वपूर्ण डाटा निकालना, उसमें से काम लायक जानकारी छाँटना और उसे व्यवस्थित रूप से सजाने के साथ ही तथ्यात्मक रूप से उसे मजबूती प्रदान करना और सटीक विश्लेषण के जरिए ही स्टोरी में जान फूंकी जा सकती है और उसे आकर्षक बनाया जा सकता है। गणित, सांख्यिकी और अर्थशास्त्र की आधारभूत जानकारी रखने वाले और इन विषयों में दिलचस्पी लेने वालों के लिए डाटा जर्नलिज्म करना आसान हो सकता है, क्योंकि वो आँकड़ों की बाजीगरी का खेल बेहतर रूप से समझ सकते हैं। इसके लिए डाटा को सही रूप से समझने और उसके बेहतर प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता होती है। एक डाटा जर्नलिस्ट के लिए कंप्यूटर का ज्ञान होना बेहद जरूरी है।
डाटा जर्नलिज्म कोई नई विधा नहीं है लेकिन टेक्नोलॉजी के विकास के साथ इसका रूप बदल रहा है। पत्रकारों को आँकड़े जुटाने में आसानी हो रही है और ग्राफिक्स और चार्ट की मदद से पाठकों तक अपनी बात पहुँचाने में सहूलियत हो रही है।
डाटा जर्नलिज्म का इतिहास
उन्नीसवीं शताब्दी में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हैजा (कोलेरा) बीमारी फैली। 1832 में इस बीमारी ने शहर में पाँव पसारना शुरू किया और कुछ ही हफ्तों के भीतर करीब 3 हजार लोगों की मौत हो गई। 1849 तक कोलेरा ने जानलेवा महामारी का रूप धारण कर लिया और करीब 5 हजार लोग काल के गाल में समा गए।
इस भयंकर महामारी से हुई मौत के आँकड़ों को दिखाने के लिए न्यूयॉर्क ट्रिब्यून अखबार ने एक चार्ट प्रकाशित किया। इस चार्ट में हफ्ते दर हफ्ते हैजा से होने वाली मौत की संख्या दिखाई गई और ये समझाया गया कि मृतकों की संख्या किस दर से बढ़ती गई और कब ये सबसे ज्यादा थी और 1849 के जून तक मृतकों की संख्या कैसे कम हुई।
20 वीं शताब्दी आते-आते आँकड़ों के इस्तेमाल का स्वरूप बदलता गया। अतीत की घटनाओं के ट्रेंड बताने के साथ ही अब चार्ट और ग्राफ का इस्तेमाल भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाने के लिए भी किया जाने लगा। 1952 में नेवी के गणितज्ञ ग्रेस मरे हॉपर ने अपनी टीम के साथ मिलकर वोटिंग के आँकड़ों का विश्लेषण किया और आइजनहॉवर की जीत का अनुमान लगाया। साथ ही ये भी बताया कि 1 फीसदी वोट के अंतर पर ये जीत होगी। इस तरह के प्रयोगों से जनता की दिलचस्पी इन आँकड़ों और अनुमान में बढ़ने लगी। हालांकि इस तरह के अनुमान अक्सर सही नहीं होते हैं लेकिन शोध करने वाले अपने तर्कों और मौजूद तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करते हैं और सही अंदाजा लगाने की कोशिश करते हैं।
डाटा जर्नलिज्म की अहमियत
कई विद्वान पत्रकारों ने डाटा जर्नलिज्म की अहमियत को अपने हिसाब से परिभाषित किया है –
जरूरी आँकड़ों का चयन
‘जब हमारे पास सूचनाओं की कमी थी तो हमारा ज्यादातर समय इसे एकत्रित करने में लगता था लेकिन अब जबकि सूचनाओं की भरमार है तो पाठकों के समक्ष इसका प्रस्तुतीकरण ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। इसे दो तरीके से किया जाता है- 1) आँकड़ों के ढेर से अर्थपूर्ण जानकारी निकालना और उसे व्यवस्थित ढंग से शब्दों में पिरोना और 2) आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण ऐसा होना चाहिए जो पाठकों या दर्शकों के लिए समझना आसान हो।’(फिलिप मेयर, प्रोफेसर एमेरिटस, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना)
स्टोरी लिखने की नई शैली
‘किसी आँकड़े को नई तकनीक और नए चार्ट या ग्राफिक्स के साथ शब्दों में उतारना डाटा जर्नलिज्म है। कंप्यूटर के इस दौर में आँकड़ों को इकट्ठा करने से लेकर उसे आसान भाषा और इंफोग्राफिक्स की मदद से पेश करना आसान हो गया है। इसके बावजूद इसका लक्ष्य एक ही है- पाठकों तक सूचनाएं पहुँचाना और उसका सटीक विश्लेषण।’(ऐरॉन पिलहॉफर, न्यूयॉर्क टाइम्स)
लैपटॉप की मदद से फोटो जर्नलिज्म
‘डाटा जर्नलिज्म और साधारण जर्नलिज्म में सिर्फ ये अंतर है कि इसमें हम फोटोग्राफ की जगह इंफोग्राफिक्स, चार्ट या ग्राफ इस्तेमाल करते हैं।’(ब्रायन बॉयेर, शिकागो ट्रिब्यून)
भविष्य की पत्रकारिता
‘डाटा जर्नलिज्म भविष्य की पत्रकारिता है। पत्रकारों को आँकड़ों का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। इससे किसी स्टोरी को मजबूत और रोचक बनाया जा सकता है साथ ही किसी खबर का विश्लेषण एक अलग नजरिये से किया जा सकता है। लेकिन ये आँकड़े समसामयिक होने चाहिए और जनता से इसका सीधा सरोकार होना जरूरी है।’ (टिम बर्नर्स ली, संस्थापक, वर्ल्ड वाइड वेब)
अंकों और शब्दों का तालमेल
‘डाटा जर्नलिज्म टेक्नीशियन और शब्दकार को जोड़ने वाली कड़ी है। आँकड़ों को पहचानना और ट्रेंड के हिसाब से रोचक जानकारियों को इकट्ठा करना, इसकी खासियत है।’ (डेविड एंडरटन, स्वतंत्र पत्रकार)
डिजिटल तकनीक के जरिए हम जीवन के हर रंग को दिखा सकते हैं। हम क्या खाते-पीते हैं, कहाँ घूमते हैं, हमारी पसंद-नापसंद क्या हैं, हमारे जीवन की बड़ी उपलब्धियाँ क्या हैं- इन सब जानकारियों को हम अब सहेज कर रख सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इन्हें एक स्टोरी का रूप दे सकते हैं। किसी समाज विशेष के लोगों की इन जानकारियों और आँकड़ों को जुटाकर एक अच्छी स्टोरी बन सकती है।
खबरों में आँकड़ों का इस्तेमाल जरूरी क्यों?
पत्रकारिता में रोज नए प्रयोग हो रहे हैं। कुछ दशक पहले तक पत्रकारिता के लिए सिर्फ एक ही तकनीक इस्तेमाल की जाती थी और दिनभर की सारी गतिविधियों की जानकारी लोगों को अगली सुबह मिलती थी। जब रात में प्रिंटिंग प्रेस में अखबारों का मुद्रण होता था और सुबह तक इसे घर-घर पहुंचाया जाता था। सुदूर इलाकों में तो शाम तक अखबार पहुंच पाते थे, लेकिन अब ऐसी हालत नहीं। सूचना का प्रवाह और प्रसारण इतनी तेजी से और इतने बड़े पैमाने पर होने लगा है कि लोगों तक पल-पल खबरें पहुंच रही हैं। अखबार के बाद रेडियो, टीवी और अब सोशल मीडिया ने मानो खबरों को पंख लगा दिये हैं। खबरों के साथ ही अब उसी पल पाठकों और दर्शकों की प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं।
खबरों की इस तेज रफ्तार की वजह से ही डाटा जर्नलिज्म की अहमियत भी बढ़ी है। खबर जुटाना, उसमें से अनावश्यक तथ्यों को छाँटकर बाहर करना और खबर के अंदर की बात निकालना ज्यादा अहम हो गया है और इसके लिए जरूरत होती है आँकड़ों की। एक आम इंसान जिन वस्तुओं या सेवाओं का इस्तेमाल करता है चाहे वो बड़ी हो या छोटी, भूमंडलीकरण के इस दौर में हरेक चीज एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, हर किसी का आपस में कुछ ना कुछ संबंध जरूर होता है। कई बार ऐसा होता है कि कोई छोटी सी जानकारी जिसका हम कोई महत्व नहीं समझते, आगे चलकर उसके जरिए कोई बड़ा तथ्य भी सामने निकलकर आ सकता है।
डाटा जर्नलिज्म के जरिए कुछ जाने-माने पत्रकार अब ये बताने लगे हैं कि कैसे आँकड़ों की मदद से किसी खबर का विश्लेषण बेहतर तरीके से किया जा सकता है। जो घटनाएं हमारे आसपास घट रही होती हैं, उनका हम पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से क्या प्रभाव पड़ सकता है, ये जानने के लिए भी आँकड़ों का सहारा लिया जाता है।
आँकड़ों के विश्लेषण से हमें किसी खबर को अलग नजरिये से देखने का मौका मिलता है। कई जानकारियाँ ऐसी होती हैं जो हमें आँकड़ों के विश्लेषण के बाद ही पता चल पाती है। डाटा जर्नलिज्म के इस्तेमाल के बाद अब सिर्फ खबरों की जानकारी ही नहीं दी जाती, उसके कुछ अनछुए पहलुओं के मायने भी बताए जाते हैं। इन पहलुओं का दायरा काफी व्यापक भी हो सकता है। उदाहरण के तौर पर महंगाई दर और आर्थिक विकास दर के आँकड़ों को देखकर आने वाले आर्थिक संकट का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। बैंकों के लेन-देन और ऑटो बिक्री के आँकड़े, होम लोन की बढ़ती या घटती दरों के आँकड़ों के जरिए अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत का तो पता चलता ही है, आने वाले संकट से निपटने का वक्त भी मिल जाता है।
डाटा जर्नलिस्ट के लिए भविष्य में अपार संभावनाएं हैं। आँकड़ों के जरिए वो ये बता सकते हैं कि बेरोजगारी की मार उम्र, लिंग और शैक्षणिक योग्यता के आधार पर किस वर्ग पर ज्यादा पड़ रही है या पड़ने वाली है। आँकड़ों का इस्तेमाल किसी छोटी सी स्टोरी में भी जान डाल सकता है। स्टोरी लिखने के लिए पत्रकार कुछ टूल्स का प्रयोग कर सकते हैं जिससे कार, घर की खरीदारी या किसी शैक्षणिक कोर्स में एडमिशन जैसे जरूरी कामों के लिए फैसले लेने में आसानी हो सकती है।
दंगे और राजनीतिक विवाद जैसी जटिल समस्याओं का विश्लेषण कर आँकड़ों की मदद से इनका हल सुझाने की कोशिश की जा सकती है। आँकड़ों को ढूंढना, चयन करना और सही तरीके से उनके इस्तेमाल के जरिए किसी स्टोरी में सटीक विश्लेषण के बल पर पढ़ने वालों की दिलचस्पी बढ़ाई जा सकती है। आँकड़ों का प्रयोग कर जटिल समस्याओं के समाधान सुझाने पर आम लोगों का भरोसा भी डाटा जर्नलिज्म या जर्नलिस्ट पर मजबू होता है।
आज के परिदृश्य में जब टेक्नोलॉजी की वजह से पत्रकारों की संख्या कम होती जा रही है, छोटी टीम के बल पर तकनीक का उपयोग करके काम चलाया जा रहा है। पत्रकारों का रुख धीरे-धीरे पब्लिक रिलेशन की ओर होता जा रहा है। ऐसे में डाटा जर्नलिस्ट आकर्षक और दमदार स्टोरी के जरिए अपनी अलग पहचान बना सकता है। दुनियाभर में कंपनियां अब ऐसे कर्मचारियों की तलाश करती हैं जो ट्रेंड से अलग हटकर और नई तकनीक का इस्तेमाल कर कुछ नया करने का जज्बा रखते हों और ऐसे में पत्रकारिता में डाटा जर्नलिज्म एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
अखबारों या वेबसाइट्स पर अब खबरों की संख्या की बजाय उसकी क्वालिटी और आम जनता से उस खबर के सरोकार पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। संस्थान अब ऐसे पत्रकारों को ज्यादा तरजीह देते हैं जिनकी लेखन शैली थोड़ी अलग हो और पाठकों और दर्शकों के लिए ज्यादा रुचिकर हो।
आँकड़ों का उपयोग कर स्टोरी बनाना एक अंधे कुएँ में उतरने के बराबर है, जिसमें गहराई में जाने के बावजूद ये अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि जो चीजें हाथ लगी हैं वो कितने नाम की हो सकती हैं। कई बार कुछ आँकड़ों को देखकर सिर चकराने लगता है। आँकड़ों को स्टोरी का रूप देना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें शांतचित्त होकर धैर्य से काम करने की जरूरत होती है। अक्सर जल्दबाजी करने वाले पत्रकार आँकड़ों के ढेर में स्टोरी ढूंढ नहीं पाते हैं या हल्की-फुल्की जानकारी निकालकर निश्चिंत हो जाते हैं।
यूरोपियन जर्नलिज्म सेंटर ने पत्रकारों के प्रशिक्षण के बारे में विस्तार से जानने के लिए एक सर्वे कराया, जिसके मुताबिक पत्रकार अब पारंपरिक पत्रकारिता से निकलकर कुछ नया आजमाना चाहते हैं। गार्जियन, द न्यूयॉर्क टाइम्स, टेक्सास ट्रिब्यून जैसे अखबारों ने लगातार अपने पत्रकारों को ट्रेनिंग देकर डाटा जर्नलिज्म को बढ़ावा देने की कोशिश है।
आँकड़े कहां से जुटाएं?
नए डाटा जर्नलिस्ट के ये बड़ी चुनौती होती है कि अपनी स्टोरी के लिए आँकड़े कहां से जुटाए, लेकिन ये समस्या तब बड़ी थी जब संसाधनों का अभाव था। आज संसाधनों के साथ ही स्रोतों की भी भरमार है। आँकड़ों के लिए अब अनगिनत स्रोत उपलब्ध हैं लेकिन ये आँकड़े कितने विश्वसनीय हैं, ये बड़ा सवाल बनकर उभरता है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जब गलत आँकड़ों के इस्तेमाल से स्टोरी कमजोर हो जाती है और उस पत्रकार या संस्थान की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगते हैं। इसलिए स्रोत की विश्वसनीयता की जांच करने के बाद ही उसके आँकड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। कई बार ऐसा भी होता है कि अपनी स्टोरी को सही साबित करने के लिए या रोचक बनाने के लिए कुछ अनुमानित आँकड़े पेश किये जाते हैं जो वास्तविकता से परे होते हैं। ऐसे प्रयोगों से डाटा जर्नलिस्ट को हमेशा बचना चाहिए। डाटा जर्नलिज्म में आँकड़ों का इस्तेमाल किसी स्टोरी को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है लेकिन गलत आँकड़ों के प्रयोग से ये बिल्कुल खोखली साबित होती है।
इंटरनेट आने के बाद अब लगभग सरकार के हर विभाग की वेबसाइट पर उससे जुड़ी जानकारियां आसानी से उपलब्ध हैं। सरकारी आँकड़ों के सबसे विश्वसनीय स्रोत उनके आधिकारिक वेबसाइट ही हो सकते हैं। अगर कुछ ऐसे आँकड़े जानने हों जो वेबसाइट पर मौजूद न हों तो पत्रकार सीधे संबंधित संस्थान या संगठन से जानकारी मांग सकता है और अब सूचना का अधिकार मिलने के बाद आरटीआई के जरिए ये काम और भी आसान हो गया है।
गैर-सरकारी संगठन या निजी उद्योग या संस्थान भी अब पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर मुहैया कराते हैं। कई विश्व स्तरीय एजेंसियां अक्सर सर्वे कराती हैं और इसके परिणाम साझा भी करती है, इन सर्वे के जरिए भी कई दिलचस्प स्टोरी निकलकर आती हैं। कई बार एजेंसियां जनता का मूड भांपने के लिए भी सर्वे कराती हैं और एजेंसी की विश्वसनीयता के बल पर इस तरह की स्टोरी को काफी तरजीह दी जाती है। कई बार अखबारों और न्यूज चैनलों के जरिए भी पोल या सर्वे कराए जाते हैं जिसमें समसामयिक मुद्दों पर जनता की राय माँगी जाती है। ऐसे पोल में भी कई बार अच्छे आँकड़े मिलते हैं जिन पर अच्छी स्टोरी की जा सकती है लेकिन ये पूरी तरह सवालों की गंभीरता और उन पर आएजनता की राय पर निर्भर करता है।
सर्च इंजन के आने के बाद ये काम काफी आसान हो गया है लेकिन आँकड़ों के ढेर में विश्वसनीय स्रोत का ही चयन करें। हर डाटा जर्नलिस्ट को एक बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए कि वो अपनी स्टोरी में आँकड़ों के स्रोत की जानकारी जरूर दें ताकि किसी तरह की कमी या गड़बड़ी होने पर पाठक उसे समझ सकें और पत्रकार तक अपनी प्रतिक्रिया पहुंचा सकें।
आँकड़ों को कैसे समझें?
आंकड़ों के स्रोत तो अब काफी उपलब्ध हो गए हैं लेकिन इन्हें जुटाने के बाद हर पत्रकार अपने हिसाब से इसे समझने की कोशिश करता है। इन आंकड़ों को देखने के बाद सबसे पहले ऐसे तथ्य निकालें जो बिल्कुल नई हो और किसी ने अब तक इस ओर ध्यान ही नहीं दिया हो। आँकड़ों के साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करें मतलब गणित और सांख्यिकी के तथ्यों से दूर भागने की बजाय उसे समझने की कोशिश करें। अगर आपने स्टोरी आइडिया पहले से तय कर रखा हो तो सिर्फ उस आइडिया से संबंधित आंकड़ों पर ध्यान दें। हाँ, आप अपनी स्टोरी को और मजबूत और बेहतर बनाने के लिए कुछ और आँकड़ों को इस्तेमाल कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर अगर आपको भारत की निजी कंपनियों की वित्तीय स्थिति का जायजा लेना हो और आप उस पर कोई स्टोरी करना चाहते हैं तो चुनिंदा दस कंपनियों के पिछले 5 साल के मुनाफे या घाटे के आँकड़ों पर नजर डालें। ये ध्यान दें कि जिन कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर रहा है क्या वो एक ही कारोबार करने वाली कंपनियां हैं। मसलन पिछले 5 साल में बैंकों का मुनाफा बढ़ रहा है या ऑयल-गैस कंपनियों का मुनाफा घट रहा हो या उन्हें घाटा हो रहा है। इस तरह के आँकड़ों से एक स्टोरी तैयार की जा सकती है, जिसमें ये बताया जा सकता है कि ग्रामीण इलाकों में विस्तार के बाद बैंकों का कारोबार कितनी तेजी से बढ़ रहा है लेकिन कच्चे तेल के दाम बढ़ने की वजह से ऑयल-गैस कंपनियों की बैलेंस शीट पर दबाव साफ दिख रहा हो।
उसी तरह कुछ स्टोरी ऐसी भी की जा सकती हैं जिनके तथ्यों की जानकारी आँकड़ों को देखने के बाद मिलती है। जैसे किसी खास अवधि में खाद्य पदार्थों के दाम में होने वाली बढ़ोतरी अगर किसी ग्राफ या चार्ट के जरिए प्रदर्शित होती है तो इस विशेष अवधि देश के विभिन्न राज्यों में खाद्य पदार्थों की महंगाई का ट्रेंड और इसके पीछे की वजह ढूंढकर उस पर स्टोरी की जा सकती है। अगर किसी राज्य की हालत बेहतर है तो उसकी वजह से जानकर दूसरे राज्यों के लिए इस अवधि में महंगाई कम करने की रणनीति तैयार करने का सुझाव दिया जा सकता है।
आसान शब्दों में आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण
यूरोप के प्रमुख समाचार पत्र द गार्जियनके मुताबिक‘बेहतर जर्नलिज्म के लिए डाटा अत्यंत जरूरी होता है, जो सरल और विश्लेषणात्मक होता है। एक तस्वीर के जरिए जो बात कही जा सकती है वो हजार शब्द भी नहीं कर पाते हैं। यह इंफोग्राफिक्स की तरह प्रभावी रूप से कार्य करता है।’
विभिन्न समय पर अलग-अलग स्रोतों से डाटा एकत्र करना, उस विषय पर विश्लेषण को आसान और मजबूत बनाता है। इसे आकर्षक रूप में दर्शाना ही डाटा जर्नलिज्म की विशेषता है। इसमें गणित, सांख्यिकी और विश्लेषण की गहराई दिखती है। आधुनिक तकनीक की मदद से कोडिंग के जरिए डाटा को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाया जाता है।
आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण अगर सुग्राह्य और आकर्षक होगा तो स्टोरी भी उतनी ही रोचक होगी। आँकड़ों को सरल बनाकर पेश करना डाटा जर्नलिज्म की सबसे बड़ी खासियत होगी। पाठकों या दर्शकों का ध्यान तभी आकर्षित होगा जब जटिल से जटिल आँकड़े साधारण शब्दों या टूल्स के जरिए प्रस्तुत किए जाएंगे। आँकड़े पेश करने के लिए ये अहम है कि मूल आँकड़े किस रूप में मौजूद हैं, उसी आधार पर पाई चार्ट, लाइन ग्राफ, डॉटेड लाइंस, डिजिटल टेबल या बार ग्राफिक्स के रूप में ये दर्शाए जा सकते हैं।
भारत में डाटा जर्नलिज्म
ऐसा कहा जा सकता है कि भारत में डाटा जर्नलिज्म अभी बिल्कुल शुरुआती दौर में है। ऐसी बहुत कम वेबसाइट्स हैं जो आँकड़ों का इस्तेमाल कर स्टोरी तैयार करती हैं। वैश्विक परिदृश्य में डाटा जर्नलिज्म में अलग पहचान बनाने में भारत को अभी काफी कुछ करना होगा। लेकिन अच्छी बात ये है कि डाटा जर्नलिज्म की तरफ अब सरकार के साथ ही, न्यूज संस्थानों, एनालिटिक्स कंपनियों और डाटा विजुअलाइजेशन से जुड़ी कंपनियां भी फोकस कर रही हैं।
आँकड़ों का इस्तेमाल कर जनता को जिम्मेदारी का अहसास कराया जा सकता है वहीं सरकारी और निजी एजेंसियों में पारदर्शिता लाई जा सकती है। कई बार आँकड़ों को देखकर जनता की आँखें खुलती हैं और भ्रष्टाचार और जनता के पैसों के साथ हो रहे खिलवाड़ की ओर उनका ध्यान जाता है। न्यूज चैनलों में अब इसे काफी तरजीह दी जा रही है और मल्टीमीडिया के साथ ही डिजिटल रिपोर्टिंग में भी इसकी अहमियत बढ़ती जा रही है। कुछ नई कंपनियां भी स्टार्ट अप के तौर पर सामने आई हैं जो अब आँकड़ों से जुड़ी सामग्री मुहैया कराती हैं। भारत में भी अब इसके प्रति लोगों की समझ और जागरुकता बढ़ रही है और इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में डाटा जर्नलिस्ट की मांग देश-दुनिया में बढ़ने वाली है।
डाटा जर्नलिज्म की नई तकनीक का उपयोग कर प्रिंट और डिजिटल में गंभीर स्टोरी तैयार की जा सकती है। डाटा जर्नलिज्म का सही अर्थ सिर्फ आँकड़ों को कॉलम प्रस्तुत करना ही नहीं बल्कि उसमें छिपी स्टोरी व संदेश को सामने लाना है। डाटा बेहतर स्टोरी को ढूंढने और उसके अप्रत्यक्ष भावों को स्पष्ट करने में मदद करता है। इसका महत्व समझने के बाद ही आज देश-विदेश में कई एजेंसियां डाटाविजुअल भी मुहैया कराने लगी हैं।
डाटा जर्नलिज्म: कुछ रोचक आँकड़े
गूगल के आने से पत्रकारों का काम काफी आसान हुआ है और इस पर निर्भरता भी बढ़ी है। पिछले तीन साल गूगल न्यूज लैब डाटा जर्नलिज्म को बेहतर बनाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। सर्वे के जरिए समसामयिक जरूरतों के मुताबिक नए टूल्स बनाना, कंटेंट क्रिएशन और डाटा शेयरिंग का प्रयास लगातार जारी है और जिससे डाटा जर्नलिस्ट को मदद मिलती है। तेजी से बढ़ते इस जर्नलिज्म के विस्तार और इसकी चुनौतियाँ जानने के लिए गूगल ने एक ऑनलाइन सर्वे कराया है। इसमें कुछ दिलचस्प परिणाम सामने आए हैं, जो इस प्रकार हैं-
• करीब 42 फीसदी पत्रकार अपनी स्टोरी के लिए डाटा का इस्तेमाल करते हैं (हफ्ते में दो बार या उससे ज्यादा)
• अमेरिका और यूरोप में 51 फीसदी समाचार संगठनों में विशेष रूप से डाटा जर्नलिस्ट नियुक्त हैं। जबकि सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए ऐसे 60 फीसदी पत्रकार हैं।
• 33 फीसदी पत्रकार पॉलिटिकल स्टोरी के लिए, 28 फीसदी बिजनेस-फाइनेंस संबंधित खबरों के लिए और 25 फीसदी खोजी पत्रकारिता के लिए डाटा का इस्तेमाल करते हैं।
• फ्रांस में 56 फीसदी न्यूजरूम में डाटा जर्नलिस्ट नियुक्त हैं जबकि जर्मनी और यूके में इनका प्रतिशत 52-52 है और अमेरिका में 46 के आसपास है।
• सर्वे में ये तथ्य भी निकलकर सामने आए कि डाटा इकट्ठा करना, उनसे काम लायक स्टोरी निकालना, उनका विश्लेषण और प्रस्तुतीकरण में काफी वक्त लगता है और विभिन्न संसाधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है।
कुछ बेहतरीन उदाहरण
डाटा जर्नलिस्ट अपनी स्टोरी को मजबूत करने के लिए आँकड़ों का इस्तेमाल करते हैं। इससे स्टोरी पर पाठकों का भरोसा बढ़ता है और कम शब्दों में स्टोरी को ग्राफिक्स के जरिए आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है। डाटा जर्नलिज्म को भविष्य की पत्रकारिता कहा जा रहा है और हाल के दिनों में इसके कुछ बेहतरीन उदाहरण नीचे बताए जा रहे हैं….
द गार्जियन- एनएसए फाइल की डीकोडिंग
द गार्जियन ने हमेशा से डाटा जर्नलिज्म में बेहतर स्टोरी पेश किए हैं। 2009 में इसने अपना डाटा ब्लॉग शुरू किया और इसके 6 महीने बाद एडवर्ड स्नोडॉन ने एनएसए से जुड़ी फाइल की जानकारी विस्तृत रूप से दी और इससे होने वाले असर को भी बताया। इस स्टोरी में वीडियो इंटरव्यू, टेस्ट, डॉक्यूमेंट्स और इंफोग्राफिक्स भी जोड़े गए जिससे पाठकों पर ये असर छोड़ने में कामयाब रही। इस स्टोरी को पढ़ते वक्त जासूस जैसा अनुभव होता है।
https://www.theguardian.com/world/interactive/2013/nov/01/snowden-nsa-files-surveillance-revelations-decoded#section/3
ब्लूमबर्ग: सबसे खतरनाक नौकरियां
जटिल आँकड़ों को आसान रूप में पेश करने में ब्लूमबर्ग को महारत हासिल है। इसकी वेबसाइट के डाटा ग्राफिक्स सेक्शन में तरह-तरह के बेहतरीन इंफोग्राफिक्स मौजूद हैं। 2015 में इसने अमेरिकी की सबसे खतरनाक नौकरियों के ऊपर एक स्टोरी की है जिसको डाटाविजुअल के माध्यम से काफी दिलचस्प अंदाज में समझाया गया है।
https://www.bloomberg.com/graphics/2015-dangerous-jobs/
प्रो-पब्लिका: गायब होती दुनिया
प्रो-पब्लिका एक नॉन-प्रॉफिट और स्वतंत्र मीडिया हाउस है और जनता से सीधा सरोकार रखने वाली खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर है। दुनियाभर में कुछ गायब होते जानवरों की प्रजातियों पर इसने बेहतरीन फोटो और ग्राफिक्स के जरिए स्टोरी की है जो आँखे खोल देने वाली है। तेजी से गायब होते इन जानवरों से पर्यावरण पर होने वाले असर की ओर इसमें ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की गई है. http://projects.propublica.org/extinctions/
Amit Dutta is currently working with CNBC-Awaaz as an Assistant Editor. He has more than 12 years experience in Business Journalism (Last 10 years with CNBC-Awaaz). CNBC-Awaaz is India’s No.1 Business News Channel of Network-18 Group. Earlier worked with Zee Business for around 3 years, done MJMC from Uttarakhand Open University and has Interest in New Genres of Journalism (especially Broadcast, Digital & Data).
He can be reached at : a.amit.dutta@gmail.com