आलोक वर्मा |
- काम के साथ-साथ ही लिखते जाइए
जब डेडलाइन सर पर हो तो टुकड़ो में लिखना सीखिए। जैसे-जैसे काम होता जाए आप स्टोरी लिखते जाएं। मान लीजिए कि आपने किसी से फोन पर अपनी स्टोरी के सिलसिले में कुछ पूछा है और दूसरी तरफ से थोड़ा समय लिया जा रहा है तो उस समय को यूं ही बरबाद न होने दे, उस समय ये आप लिखना शुरू कर दे- क्या पता दूसरी तरफ से फोन कितनी देर में आए! आप उम्मीद के सहारे अपना वक्त बरबाद न करें।
- जितना मसाला उपलब्ध हो उसी से स्टोरी लिखना शुरू कर दें
कई बार आप इस उम्मीद में होते हैं कि स्टोरी कुछ खास चीजों से बस पूरी ही होने वाली है, पर डेडलाइन सर पर होती है। मैं ये कहूंगा कि ऐसे में आप अपने अंतिम किए गए इंटरव्यू को आधार बनाकर स्टोरी लिखना शुरू कर दीजिए। कई बार ऐसा होगा कि आपको स्टोरी की दिशा नहीं समझ में अएगी पर फिक्र न करें, आप बस पैराग्राफ बना बनाकर लिखते जाएं, ये सारे पैराग्राफ थोड़े बहुत बदलाव के साथ आपकी स्टोरी में इस्तेमाल हो ही जाएंगे। इंतजार करने के बजाए उपलब्ध जानकारी के आधार पर ही न्यूज रीडर के लिए एंकर पीस या लीड भी लिख डालिए। इससे दो फाएदे होंगे-एक तो आपका काम शुरू हो जाएगा। दूसरे, आपकी स्टोरी में एक खास तरह का पैनापन रहेगा।
- साथ-साथ लिखते जाने से आप रिर्पोटिंग को ज्यादा वक्त दे पाएंगे
अगर आप रिर्पोटिंग के साथ-साथ ही लिखते भी जाएंगे तो आपको बाद में बैठकर लिखने के लिए अलग से समय नहीं निकालना पड़ेगा और आप रिर्पोटिंग को ज्यादा वक्त दे पाएंगे। ये जरूर है कि आपा-धापी में लिखी गई इस तरह की स्क्रिप्ट थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी होगी पर बीच में समय मिलते ही उसे जरा ध्यान से पढक़र ठीक-ठाक कर लीजिए। कई बार ये होगा कि आप रिर्पोटिंग स्थल और न्यूजरूम की भागदौड़ में इतना व्यस्त होंगे कि बीच के समय में स्टोरी कागज पर लिख पाना संभव नहीं होगा-ऐसे में कम से कम दिमाग में स्टोरी का एक रफ ढांचा जरूर बना लीजिए। ये काम तो आप आते-जाते भी कर सकते हैं।
- मिनिमन स्टोरी (क्या कहें!! लघुतम स्टोरी?)
मिनिमम स्टोरी को मिनिमन स्टोरी करके ही समझिए।
मतलव ये कि स्टोरी में उतनी बाते जिन्हें बताए बिना तो स्टोरी को स्टोरी कहना भी बेमानी हो। स्टोरी क्या है, किस बारे में है, क्या कहा जाना है-कम से कम इतना तो स्टोरी में आ ही जाना चाहिए। आप स्टोरी की इस मिनिमम जरूरत के पूरा होते ही लिखना शुरू कर सकते हैं-आगे की चीजें बाद में की जा सकती हैं।
इस मिनिमम स्टोरी का ढांचा पहले से सोच लीजिए। कई बार जल्दी में इस मिनिमम स्टोरी को करके ही संतोष करना पड़ जाता है।
- मैक्सिमम स्टोरी (क्या कहें!! महत्वम स्टोरी?)
मैक्सिमम स्टोरी तो उसे कहेंगे जो आपको स्टार बना दे-मतलब जिसके बाद आपकी स्टोरी पूरे देश की जबान पर हो। हर गली नुक्कड़ पर, पान की दुकानों पर उसी स्टोरी की बाते हो। इस स्टोरी को लंबे समय तक याद रखा जाएगा। ऐसी स्टोरी में क्या होता है? -वो सब कुछ जो आप उस स्टोरी से जानना चाहते हैं। ऐसी स्टोरी मुद्दे की गहराई में उतरकर आपको उस मुद्दे के बारे में वो सब कुछ बताती है जो आप जानना चाहते हैं- कई बार तो बड़ी गुप्त और मुश्किल बातें भी। इस स्टोरी में लोग भी होते हैं, भावनाएं भी। इसमें मुद्दा भी होता है और गरमी भी- यूं समझिए कि ये अमिताभ बच्चन की किसी सुपर-डूपर हिट फिल्म की तरह की होती है।
- मिनिमम करके रख लीजिए, मैक्सिमम की कोशिश कीजिए
अगर डेडलाइन की जल्दबाजी नहीं है तो मिनिमम स्टोरी पहले ही सोच लीजिए और उसे मैक्सिमम स्टोरी में बदलने में जुट जाइए। अगर डेडलाइन सर पर आ पड़ी तो भी मिनिमम स्टोरी तो तैयार हो ही जाएगी और अगर मैक्सिमम स्टोरी कर सके तो बल्ले-बल्ले। हां आप ये भी कर सकते हैं कि मैक्सिमम स्टोरी पर ही सीधे काम शुरू कर दें बशर्ते आप श्योर हो कि मिनिमम स्टोरी आपके दिमाग में है और मिनटों में आप उसे कागज पर उतार सकते हैं।
बात ये है कि आप स्टोरी देने से मना नहीं कर सकते। इतना तैयार हमेशा रहिए कि आप मांग आने पर स्टोरी फौरन दे दें, फूल-पत्ती से इसे बाद में सजाते रहिए।
- अगर आपने इंटरव्यू के लिए सही आदमी पकड़ लिया तो समझो आधी जंग जीत ली
कई बार डेड लाइन इतना पास होती है कि आप स्टोरी का ढांचा बना पाने की स्थिति में भी नहीं होते। ऐसे में फौरन ऐसे लोगों को पकडि़ए जो आपकी स्टोरी की बुनियादी बातों पर कुछ न कुछ बोल सकें- इससे आपकी सामान्य सी स्टोरी तो निकल ही आएगी-फिर प्रयास कीजिए कि कोई धमाकेदार कर देगा-पूरी बड़ी स्टोरी आप अगले दिन बता लीजिएगा, अभी जो उपलब्ध हो उसी से धमाका करने की कोशिश कीजिए।
- अपनी स्टोरी का मूल्याकन करते रहिए
हर इंटरव्यू के पहले और बाद में अपनी स्टोरी का मूल्याकन जरूर करिए। ये सोचिए कि अभी क्या करना बाकी रह गया हैं-इसमें दिक्कत क्या है। जो बाकी रह गया हो उसक आगे के सवालो में पूछ लीजिए या सूत्रों से सूचनाएं लेकर अपनी स्क्रिप्ट में जड़ दीजिए-मामला खत्म!!
अगर सारे के सारे लोगों का इंटरव्यू करने का समय न हो तो बेकार की घिसी-पिटी सूचनाए देने वाले लोगों को अपनी इंटरव्यू लिस्ट से निकाल दीजिए। मान लीजिए कोई बड़ी दुर्घटना या अपराध की घटना हुई है तो आप सिर्फ एक सरकारी अफसर से ही बात करें-वो उसे घटना की पूरी जानकारी आपको दे देगा जिससे आपकी मिनिमम स्टोरी तो बन ही जाएगी-आप अगर और अफसरों से बात करेंगे बन ही जाएगी-आप अगर और अफसरों से बात करेंगे तो वे भी आपको वही बातें बताएंगे इसलिए उन्हें छोडिए और गैर सरकारी आम लोगों से बाते कीजिए-वे लोग आपको उस हादसे में जुड़ी मानवीय भावनाओं पर अपनी टिप्पणियां दे सकते है जो आपकी स्टोरी को एक अलग ही भावना प्रधान रंग देगा। अगर आप में तप न कर पाए हो कि स्टोरी के लिए किन लोगों से बात की जाए तो एक आध और सरकारी अफसरों से बात कर लीजिए-वे लोग आपको ये अंदाजा दे देंगे कि और किससे बात करनी चाहिए।
खबर की लीड को सही ढंग से लिखना
- बोलकर देखिए
ध्यान रखिए कि आपकी लिखी लीड बोली जानी है इसलिए ये बोले जाने योग्य होनी चाहिए। लिखने के बाद खुद इसे जोर से बोलकर देखिए। ये भी देखिए कि एक सांस में आप इसे आराम से बोल पाते हैं या नहीं! ऐसे टेढ़े-मेढ़े शब्द तो नहीं है कि बोलते वक्त आप भडख़ड़ा जाएं! सोचकर देखिए कि कही ये लीड बोर तो नहीं कर रही या कोई भ्रम तो नहीं पैदा कर रही-आपको जैसी लगेगी वैसी ही आपकी लीड के श्रोता को भी लगेगी।
- रिवीजन करना सीख लीजिए
लिखी जा चुकी लीड को ध्यान से पढि़ए और सोच कर देखिए कि उसमें कितने शब्द गैरजरूरी है! तमाम लीड्स में ऐसे तमाम शब्द होते है जिन्हे हटाने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता। एक बात और- कोई लीड लिखी जा चुकी हो, अखबार में छप चुकी हो या टीवी पर प्रसारित हो चुकी हो तो भी उसे सही करके सोचिए- इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
- धमाकेदार लीड बनाने के चक्कर में स्टोरी खराब न करें
कई बार ऐसा देखा गया है कि लीड को धमाकेदार बनाने के चक्कर में उसे इस अंदाज में तोड़ा मरोडा जाता है कि स्टोरी अपने सही अर्थ से भटक जाती है- ऐसा न करें।
- व्याकरण को सिकोड़कर लिखे
व्याकरण को सिकोड़ना किसे कहेंगे- ये आम अनुभव से सीखेंगे पर मैं आपकों यहां उदाहरण दे देता हूं- लीड में ये लिखने के बजाए कि ”सरकार उम्मीद कर रही है” या ”उद्योगपति ये आशा कर रहे है” ये लिखें कि ”सरकार को उम्मीद” और उद्योगपतियों को आशा”
”सरकार उम्मीद कर रही है कि अमेरिका उसका साथ देगा।” (न ऐसे लिखे)
”सरकार को अमेरिका का साथ मिलने की उम्मीद।” (ऐसे लिखें)
- तडक़-भडक़ वाली शोरोबाजी लीड में न लाए
वकीलों, नेताओं और सरकारी अफसरों की बोलने की अपनी-अपनी शैली होती है। कुछ बेहद शोरोबाजी वाली भाषा का इस्तेमाल करते है तो कुछ बेहत पुरानी सी ठंडी भाषा का। लोग इससे या तो अब जाते हैं या फिर बोर हो जाते है। आप लीड में अपनी तरफ से नई ताजा भाषा का प्रयोग करें।
असाइनिंग एडीटर इन बातों की जांच कर ले
- क्या स्टोरी में आने वाले सारे नाम, टाइटल और जगहों के नाम दोबारा चेकर कर लिए गए हैं?
- क्या साउंड बाइट्स सही ढंग से लगाई गई है? क्या साउंड बाइट्स बात को तोड़े-मरोड़े बिना सही ढंग से पेश कर रही है?
- क्या स्टोरी में आने वाले टेलीफोन नंबर और वेब एड्रेस को लिखकर रख लिया गया है?
- क्या स्टोरी को मजबूत बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया ‘बैकग्राउंड मैटीरियल’ ठीक ढंग से लगाया गया है?
- क्या लीड सही है?
- क्या स्टोरी संतुलित है?
- क्या सभी पक्षों को स्टोरी में अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया है?
- किस तरह के लोग इस स्टोरी के आने से नाराज या गुस्सा हो सकते है? इसकी वजह क्या होगी और क्या हम इसके लिए तैयार है?
- क्या हमने स्टोरी में किसी एक पक्ष का साथ दिया है? क्या हमने स्टोरी के माध्यम से ये बता दिया है कि क्या सही था और क्या गलत? क्या कुछ लोगों को स्टोरी जरूरत से ज्यादा पसंद आने वाली है?
- क्या अब भी स्टोरी में कोई कमी रह गई है?
स्क्रिप्ट की जांच करते वक्त इन सात चीजों के चक्कर में न फंसे
किसी भी चीज की स्क्रिप्ट लिखना एक चैलेंजिंग काम होता है-और किसी और की लिखीं स्क्रिप्ट को चेक करके उसे सही करना और भी ज्यादा चैलेंजिंग काम होता है। ठीक है कि हर आदमी अपनी समझ से चीजों को ठीक करना चाहता है और यकीनन स्क्रिप्ट चेक करने वाला कापी एडीटर भी स्क्रिप्ट को अपनी नजर से सही करना चाहता है-जरूर करिए पर एक बेहतरीन कापी एडीटर बनने के लिए नीचे लिखी बातों पर जरूर ध्यान दीजिए-
- अकड़ में मत आइए
सिर्फ अपनी ही सोचकर मत लिखिए। होता ये है कि जब आप स्क्रिप्ट चेक कर रहे होते है तो उसमें कैसे शब्द लिखे जाए या किस तरह के विजुअल्स दिखाए जाए ये आप तय कर रहे होते है-पर ये सब करते वक्त पाठकों की या दर्शकों की जरूर सोचिए। मुझे ये ठीक लगता है सोच-सोच कर उल्टा-सीधा काम मत कीजिए। और कापी एडीटिंग की ये अकड़े साफ-साफ दिखती है। आप कई बार देखेंगे कि खबर कुछ और है तस्वीरे कुछ और है, लिखा कुछ और गया है पर समझ में कुछ और ही आ रहा है- ये सब ओवर काफीडेंस और अकड़े का नतीजा होता है- इससे बचिए- अरे भाई, आप दर्शकों या पाठको के लिए ही तो लिख रहे है- आप खुद ही बैठकर तो पढऩे वाले हैं नहीं!!! (चलिए मजाक छोडि़ए)
- उल्टे-सीधे आकलन मत कीजिए
जब आप किसी स्क्रिप्ट की जांच पड़ताल के काम पर हो तो तरकीबें लगाकर मत सोचिए, और न ही बिना तसदीक किए हुए चीजे करना शुरू कीजिए। कहने का मतलब ये है कि स्क्रिप्ट चेक करते वक्त ये सब मत सोचिए कि ये रिर्पोटर की गलती है, ये मिसटेक कैमरामैन ने की होगी… या थोड़ा और एडवेंचर्स हुए तो न सोचा न पूछा, कही और की चीज उठाकर अपनी स्क्रिप्ट में डाल दी- भले ही उस चीज के इस्तेमाल का अधिकार हो या न हो- थोड़ा रियलिस्टिक रहिए प्लीज।
- लापरवाही मत दिखाइए
लापरवाही अर्थ का अनर्थ कर सकती है। बचिए इससे। ऐसा न हो कि नाम किसी और का हो और तस्वीर किसी और की, या स्क्रिप्ट में पेज नंबर ही नहीं है, या ऐसी लाइन लिखी जिसका मतलब खुद आप ही नहीं समझे- दूसरे क्या समझेंगे…ये काल्पनिक गलतियां नहीं है- हर अखबार और न्यूज चैनल ऐसी गलतियों को फेस करता है-आप लापरवाही से बचें तो ये सब होगा ही नहीं।
- स्टोरी की ताकत को पहचानने में गलती मत कीजिए
अब स्क्रिप्ट आपके हाथ में है, और आप ही है उसके जज… लेकिन अगर जज ने समझा ही नहीं कि उस स्टोरी में कितना दम है और उसे एक साधारण सी स्टोरी बनाकर पेश कर दिया तो ये नुकसान एक रिर्पोटर की स्टोरी का नहीं बल्कि पूरे अखबार का या पूरे न्यूज चैनल का होता है। खबर की ताकत को पहचान कर उसे उसी ताकत के साथ पेश कीजिए।
और इसी से जुड़ी हुई बात ये है कि अगर सब कुछ घिसे पिटे ढंग से बासी अंदाज में आप देंगे तो पाठक या दर्शकों को कोई भी चीज होल्ड नहीं करेगी। जरा स्टाइल से खबर को पेश कीजिए- बढिय़ा सी हेडलाइन हो, तस्वीरें हिला ंदेने वाली हो या कुछ और हो-मुद्दा ये है कि कुछ हो।
- अपनी अज्ञानता को दूर कीजिए
अब अगर आपको विषयों का ज्ञान ही नहीं है और आप उसी विषय पर लिख रहे है तो हस्र क्या होगा ये लिखने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि महात्मा गांधी का नाम लिखते वक्त आप सरदार पटेल की तस्वीर दिखा रहे हो कि लीजिए देखिए गांधी जी को… (ये उदाहरण जरा ज्यादा ही है पर इससे आप अंदाजा लगा ले कि कैसे लगेगा)… या फिर आपने लिख डाला कि दूसरा विश्वयुद्ध फलाना-फलाना तारीख को खत्म हुआ भले ही न तो आपने वो तारीख पढ़ी न ही किसी से पूछी… या ज्यादा जोर आया तो डेडलाइन में किसी और भाषा के शब्द डाल दिए, अब शब्द तो लिख दिए पर ग्रामर आती नहीं थी तो पूरा वाक्य एक बकवास वाक्य बना डाला…या फिर एक और महान गलती कर ली कि लिखा कि फलाना-फलाना टीवी शो इतने बजे रात को आता है- हेलो…जरा पता तो कर लेते कि एक महीने से उस शो का टाइम बल गया है और वो शो अब रात को नहीं दिन में आता है-
देखिए ऐसा है कि दर्शक और पाठक ये सब पकड़ लेते है और ऐसा करके आप उन्हें न सिर्फ हंसने का मौका देते है बल्कि वे आप पर भरोसा करना भी छोड़ देते है- क्या आप चाहेंगे कि ऐसा हो!!
- आलसी नेचर से बाज आइए
आलसी नेचर आपकी लिखी या आपकी सही ही हुई खबर को कुछ का कुछ बना सकता है। मसलन आपने स्टोरी तो लिख डाली मगर स्टोरी के साथ जो चीजें अटैच होती है उनकी फिक्र ही नहीं की, ये सोचकर कि ये आपका काम नहीं है। या स्टोरी से संबंधित एडवांस पेज लिखा ही नहीं, ये सोचकर कि अब तो घर जाना है, या फिर स्टोरी के लिए किसी रिफरेंस बुक या स्टाइल बुक से जो मदद लेनी चाहिए थी वो ली ही नहीं, ये सोचकर कि ठीक ही होगा, या फिर स्टोरी के मुद्दों को फ्रांस चेक करने के लिए इलेक्ट्रानिक लाइब्रेरी की तरफ देखा भी नहीं, ये सोचकर कि टॉप बास देख ही लेगा, ये सब और कुछ नहीं बल्कि आलसीपन है और आलसीपन के लिए कारण ढूढंना है, इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए।
- हठीपन से न्यूज को खराब मत कीजिए
खबरों की दुनिया हर घड़ी हर पल बदलती रहने वाली दुनिया है, आपको बार-बार मेहनत करनी पड़ सकती है। अब मान लीजिए आप खबर भेज चुके है, अखबार का फ्रंट पेज तैयार हो चुका है, टीवी न्यूज का रन डाउन रेडी है और अचानक एक हेलीकाप्टर दुर्घटना की खबर आ गई-अब आप क्या कहते है-छोड़ो न, छोटी सी खबर है- दरअसल आप बदलना नहीं चाहते। या फिर ये हुआ कि आपका ग्रैफिक्स जरा जम नहीं रहा है, किसी ने कहा इसे बदलते हैं पर आप कह रहे है, क्या जरूरत है !!… ये सब मत कीजिए… बदलती जरूरतों के हिसाब से बदलना सीखिए।
आलोक वर्मा के पत्रकारिता जीवन में पन्द्रह साल अखबारेां में गुजरे हैं और इस दौरान वो देश के नामी अंग्रेजी अखबारों जैसे कि अमृत बाजार पत्रिका, न्यूज टाइम, लोकमत टाइम्स, और आनंद बाजार पत्रिका के ही विजनूस वर्ल्ड के साथ तमाम जिम्मेदारियां निभाते रहे है और इनमे संपादक की जिम्मेदारी भी शामिल रही है। बाद के दिनों में वो टेलीविजन पत्रकारिता में आ गए। उन्होंने 1995 में भारत के पहले प्राइवेट न्यूज संगठन जी न्यूज में एडीटर के तौर पर काम करना शुरू किया। वो उन चंद टीवी पत्रकारों में शामिल है जिन्होने चौबीस घंटे के पूरे न्यूज चैनल को बाकायदा लांच करवाया। आलोक के संपादन काल के दौरान 1998 में ही जी न्यूज चौबीस घंटे के न्यूज चैनल में बदला। जी न्यूज के न्यूज और करेंट अफेयर्स प्रोग्राम्स के एडीटर के तौर पर उन्होंने 2000 से भी ज्यादा घंटो की प्रोग्रामिंग प्रोडूसर की। आलोक वर्मा ने बाद में स्टार टीवी के पी सी टीवी पोर्टल और इंटरएक्टिव टीवी क्षेत्रों में भी न्यूज और करेंट अफेयर्स के एडीटर के तौर पर काम किया। स्टार इंटरएक्टिव के डीटीएच प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने न्यूज और करेंट अफेयर्स के बारह नए चैनलो के लिए कार्यक्रमों के कान्सेप्युलाइजेशन और एप्लीकेशन से लेकर संपादकीय नीति निर्धारण तक का कामो का प्रबंध किया। आलोक वर्मा ने लंदन के स्काई बी और ओपेन टीवी नेटवक्र्स के साथ भी काम किया है। अखबारों के साथ अपने जुड़ाव के पंद्रह वर्षों में उन्होंने हजारों आर्टिकल, एडीटोरियल और रिपोर्ट्स लिखी हैं। मीडिया पर उनका एक कालम अब भी देश के पंद्रह से अधिक राष्ट्रीय और प्रदेशीय अखबारों में छप रहा है। आलोक वर्मा इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय, माखनलाल चर्तुवेदी विश्वविद्यालय और गुरु जेवेश्वर विश्व विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर जुड़े हुए हैं। फिलहाल वो मीडिया फॉर कम्यूनिटी फाउंडेशन संस्था के डायरेक्टर और मैनेजिंग एडीटर के तौर पर काम कर रहे हैं। ये संगठन मीडिया और बाकी सूचना संसाधनों के जरिए विभिन्न वर्गों के आर्थिक–सामाजिक विकास हेतु उनकी संचार योग्यताओं को और बेहतर बनाने का प्रयास करता है। वे अभी Newzstreet Media Group www.newzstreet.tv and www.nyoooz.com and www.i-radiolive.com का संचालन कर रहे हैं .