शैलेश एवं ब्रजमोहन |
रिपोर्टर के लिए जरूरी नहीं है कि वो खबर में हमेशा अपने सूत्र के नाम का खुलासा करे। रिपोर्टर को अपने सूत्र के बारे में दूसरों को कभी जानकारी नही देनी चाहिए। जरूरी हो, तो रिपोर्टर को अपने सूत्र का नाम छिपाना चाहिए। खासकर तब जब नाम सामने आने पर सूत्र की नौकरी या जीवन पर कोई खतरा हो। सूत्र कोई जूनियर अधिकारी है, तो उसका नाम सामने आने पर बड़े अधिकारी उससे नाराज होकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कोई सूत्र अपराध, आतंकवादी संगठन या माफिया के बारे में कोई जानकारी देता है, तो उसके जीवन पर खतरा हो सकता है। ऐसे में सूत्र के नाम को गोपनीय रखना रिपोर्टर की जिम्मेदारी है
जब किसी न्यूज ऑर्गेनाइजेशन में कोई विद्यार्थी रिपोर्टर के तौर पर अपना काम शुरू करता है, तो सबसे पहले उसे खबरें खोज निकालने की समस्या से ही दो-चार होना पड़ता है। नया रिपोर्टर खबरों को खोज निकालने के लिए उत्साहित तो रहता है, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं रहती, कि वो खबर लाए कहां से। यानी खबरों के स्रोत का उसे पता नहीं होता।
नए आइडिया खोजने के लिए रिपोर्टर को बच्चे की तरह सोचना चाहिए, जिसमें हर छोटी-बड़ी चीज को जानने की इच्छा होती है। उसे हर घटना को पत्रकार नहीं, आम आदमी की नजर से देखना चाहिए, तभी वो घटना के तमाम पहलुओं से वाकिफ हो पाएगा और घटनाक्रम में अपने लिए न्यूज भी खोज पाएगा।
आइए जानते हैं कि एक रिपोर्टर को खबरें कहां-कहां से मिल सकती हैं और समाचार संग्रह में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। रिपोर्टर के पास समाचार संग्रह का मुख्यतौर पर दो जरिया (स्रोत) होता है। ये हैं पब्लिकेशन (प्रकाशन) यानी छपी हुई सामग्री और पर्सन यानी लोग (व्यक्ति)।
पब्लिकेशन के तहत किसी विभाग से जारी बुलेटिन, प्रेस विज्ञप्ति, दर्शकों की चिट्टी, ई-मेल, अखबार, पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेख समाचार संग्रह का जरिया हो सकते हैं। खासकर स्थानीय अखबार और पत्र-पत्रिकाओं न्यूज के अहम स्रोत हैं। खबरों के मामले में रिपोर्टर की नजर पारखी हो, तो इनमें छपी छोटी खबर भी कई बार स्कूप (चौंकाने वाली बड़ी खबर) बन सकती है।
सरकारी-गैरसरकारी संगठनों और दफ्तरों के सूचना विभागों से भी रिपोर्टर को अहम खबरें मिलती रहती है। आमतौर पर इन दफ्तरों से विकास के काम से जुड़ी सूचनाएं, विवादों पर सफाई जैसे मुददों पर प्रेस नोट, विज्ञप्ति जारी होती है, जिन्हें न्यूज के स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
खबरों का एक बड़ा सोर्स प्रेस कॉन्फ्रेंस भी है। सरकारी, निजी संस्थान हों, राजनीतिक पार्टियां हों या आम नागरिक, किसी मुददे पर अपना पक्ष रखने के लिए कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला सकता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाने वाला, तमाम न्यूज एजेंसियों के प्रतिनिधियों को किसी खास जगह पर आमंत्रित करता है और प्रेस प्रतिनिधियों के सामने संबंधित मुददे पर अपना पक्ष, अपनी राय या नीतियों की जानकारी देता है।
पर्सन (व्यक्ति)- न्यूज सोर्स में पर्सन का दायरा बहुत बड़ा है। किसी घर में हत्या हो जाती है और पड़ोसी इस वारदात की जानकारी रिपोर्टर को देता है तो वो पड़ोसी, रिपोर्टर के लिए खबर का सोर्स है।
रिपोर्टर जहां रहता है, उसके आसपास का इलाका, वहां के लोग और उनकी गतिविधियां, खबरों का सबसे बड़ा स्रोत होती हैं। इसलिए रिपोर्टर को उस इलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी होनी चाहिए और तमाम छोटे-बड़े अधिकारियों के नाम-पते भी उसके पास होने चाहिए। शहर की राजनीतिक गतिविधियों पर उसकी नजर होनी चाहिए और उसे पार्टी के दफ्तरों का भी चक्कर लगाते रहना चाहिए। रिपोर्टर को शहर की समस्याओं, हर छोटी-बड़ी संस्थाओं के बारे में भी पता होना चाहिए। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, अस्पताल, थाना, कोर्ट-कचहरी, स्टेशन, बस स्टैंड या दूसरी तमाम सार्वजनिक जगहों की जानकारी होनी चाहिए। ये तमाम जगहें, खबरों का स्रोत हो सकती हैं।
दूसरी ओर किसी मंत्रालय का एक कर्मचारी ऐसी बात रिपोर्टर को बताता है, जिससे विभाग के बड़े अफसर या किसी नेता के भ्रष्टाचार, गड़बड़ फैसलों का भंडा फूटता हो, तो वो कर्मचारी भी रिपोर्टर का सोर्स (सूत्र) हो सकता है।
सूत्र (Source)– खबरों के संग्रह में सूत्र भी अहम भूमिका निभाते हैं। अक्सर एक वाक्य पढ़ने या सुनने को मिलता है-सूत्रों के मुताबिक। मन में जिज्ञासा होती है कि ये सूत्र कौन हैं, जिनकी मदद हर रिपोर्टर लेता है। दरअसल खबरों के संग्रह में सूत्र (सोर्स) रिपोर्टर की अहम मदद करते हैं। रिपोर्टर अपनी ज्यादातर खबर इन्हीं की मदद से दर्शकों तक पहुंचाता है।
जो भी व्यक्ति रिपोर्टर को खबर देता है, वो खबर का सूत्र कहलाता है। जैसे किसी विभाग का बड़ा अधिकारी या प्रवक्ता, जब रिपोर्टर को खबर देता है, तो वो खबर का सूत्र होता है। रिपोर्टर अपनी खबर में उस अधिकारी का नाम डालता है, तो खबर की विश्वसनीयता बढ़ती है। लेकिन कई बार रिपोर्टर को सूचना ऐसे कर्मचारी या व्यक्ति से मिलती है, जो अपना नाम या पहचान जाहिर नहीं करना चाहता। ऐसे में रिपोर्टर को उसका नाम छिपाना पड़ता है और खबर सूत्र या विश्वसनीय सूत्र के हवाले से जारी करनी पड़ती है।
आशुतोष के मुताबिक सूत्र माने, वो शख्स, जो रिपोर्टर को खबर दे रहा है। ये पुलिस का कोई अधिकारी भी हो सकता है, या फिर कोई मंत्री या किसी संस्था से जुड़ा व्यक्ति भी।
प्रबल प्रताप सिंह कहते हैं सूत्र नहीं, मित्र बनाइये। इसका मतलब ये है कि खबर देने वाले को आप पर भरोसा हो और आपका, खबर देने वाले पर भरोसा हो। एक रिपोर्टर जितने ज्यादा लोगों के सम्पर्क में रहेगा, उसे खबरें उतनी ज्यादा मिलेंगी। लेकिन हर किसी पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता। किसी की दी हुई खबर का इस्तेमाल करने से पहले जरूरी है कि खबर देने वाले को अच्छी तरह जांच-परख लिया जाए और उसकी दी हुई सूचना की जांच-पड़ताल भी दूसरे सूत्र से कर ली जाए।
परवेज अहमद कहते है कि रिपोर्टर के लिए जरूरी है कि वो अपना सूत्र बनाए, लेकिन तथ्यों को क्रॉस चेक किया जाना चाहिए। रिपोर्टर को यह भी मान कर चलना चाहिए कि कोई सूत्र खबर दे रहा है तो जरूर उसमें उसका हित या स्वार्थ शामिल होगा और रिपोर्टर को हित और स्वार्थ में भी फर्क समझना होगा।
न्यूज के सोर्स यानी सम्पर्क सूत्र तीन तरह के हो सकते हैं।
News Source
-Fool -Devil -Angel
Fool- यानी मूर्ख- ये ऐसे सम्पर्क सूत्र हैं, जिनमें किसी घटना या जानकारी को समझने की क्षमता नहीं होती। ये देखते या जानते कुछ हैं और उसका मतलब कुछ और निकालते हैं। ऐसे लोग नासमझी और आधी-अधूरी जानकारी से रिपोर्टर को मूर्ख बना देते हैं। अच्छे रिपोर्टर को ऐसे सोर्स या सम्पर्क सूत्र से दूर ही रहना चाहिए।
Devil – या शैतान- ये ऐसे सम्पर्क सूत्र या सोर्स हैं, जो जानते और समझते तो सब कुछ हैं, लेकिन अपने किसी खास मकसद से रिपोर्टर को गुमराह करके गलत खबरे प्लांट करने की कोशिश करते हैं। अफवाह फैलाने वाले लोग इसी श्रेणी में आते हैं। रिपोर्टर को ऐसे सोर्स से हमेशा सावधान रहना चाहिए। ऐसे सोर्स गलत खबरों के जरिए बवंडर मचा सकते हैं और रिपोर्टर तथा चैनल को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। याद रखिए कि गुमराह करने वाली खबर से आपकी नौकरी जा सकती है। रिपोर्टर के रूप में आपकी साख हमेशा के लिए खत्म हो सकती है और आपको कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। एक खबर की जिम्मेदारी हमेशा रिपोर्टर और चैनल की होती है। रिपोर्टर ये कहकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकता कि सोर्स ने उसे गलत खबर दी है। खबर के लिए सोर्स की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। मामला अदालत तक पहुंचता है, तो रिपोर्टर और चैनल की ही जिम्मेदारी होती है कि वो खबर को सही साबित करें।
Angel – यानी देवदूत- Angel ही रिपोर्टर के सबसे अच्छे और भरोसेमंद सोर्स होते हैं। वो रिपोर्टर को कभी गलत सूचना नहीं देते। उनका मकसद सूचना से कोई फायदा उठाना नहीं होता। ऐसे सोर्स दरअसल जनहित में सूचनाओं को बाहर लाते हैं।
जब कभी कोई सोर्स आपको खबर दे, तो यह जरूर तय कर लें कि सोर्स Fool, Devil या Angel में कौन है। रिपोर्टर को तीनों तरह के सोर्स से सम्पर्क रखना पड़ सकता है, लेकिन उसे भरोसा सिर्फ Angel पर ही करना चाहिए। Fool या Devil की सूचनाओं को भरोसेमंद सोर्स से पूरी तरह पुष्टि कर लेने के बाद ही खबर फाइल करनी चाहिए।
समाज के हर तबके में रिपोर्टर की पैठ होनी चाहिए। हर पत्रकार के लिए काम का क्षेत्र बंटा होता है और उसे अपने क्षेत्र (BEAT) के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में रिपोर्टर को उन संस्थाओं या विभागों के बारे में छोटी-छोटी बातों की भी जानकारी रखनी चाहिए, जिसकी जिम्मेदारी उसे सौंपी गई है। लेकिन इन सबसे ज्यादा जरूरी है कि रिपोर्टर वहां सूत्र जरूर खोज ले। यही उसकी सफलता का मूलमंत्र साबित होगा।
सूत्र रिपोर्टर के लिए खबर हासिल करने का सबसे बड़ा जरिया होता है और जिस रिपोर्टर के सम्पर्क जितने मजबूत होंगे, वो रिपोर्टर कामयाबी के पायदान पर उतना ही ऊपर होगा। सूत्र की मदद के बिना अच्छी और चौंकाने वाली स्टोरी ब्रेक करना किसी रिपोर्टर के लिए मुमकिन नहीं है। क्योंकि रिपोर्टर को सूत्र न केवल भ्रष्टाचार, अपराध और घोटालों की जानकारी देता है, बल्कि इसकी प्रामाणिकता के लिए सबूत के तौर पर जरूरी कागजात और दूसरी चीजें भी मुहैया कराता है, जिससे खबर की सच्चाई पर सवाल न उठे।
रिपोर्टर को कोशिश करनी चाहिए कि हर फील्ड के जानकार लोगों से उसके व्यक्तिगत और सामाजिक सम्पर्क हों और ज्यादा से ज्यादा लोग उसे जानें-पहचाने। रिपोर्टर को ऐसे लोगों से मिलते-जुलते रहना चाहिए और मुलाकात मुमकिन नहीं हो, तो फोन के जरिए ही सम्पर्क बनाए रखना चाहिए।
खास लोगों से सम्पर्क रिपोर्टर को उसके प्रोफेशन में फायदा पहुंचाता है। ऐसे लोग भी रिपोर्टर के लिए सूत्र (सोर्स) का काम करते हैं। खास लोगों में राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता, सिलेब्रिटिज, बड़े अधिकारी या मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता, कोई भी हो सकता है। रिपोर्टर को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि ऐसे लोगों से ज्यादा खबरें नहीं मिलेंगी, लेकिन जब मिलेंगी, तो वो काफी बड़ी खबर होगी।
रिपोर्टर को हमेशा याद रखना चाहिए कि उसका सूत्र आम व्यक्ति भी हो सकता है। आम आदमी भी समाचार संग्रह का बड़ा जरिया होता है। हर जगह कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो किसी घटना या वारदात के बारे में अच्छी तरह बता सकते हैं और सही जानकारी दे सकते हैं।
अपराध की खबरें कवर करने वाले रिपोर्टरों के लिए थाने के अधिकारी, यहां तक की सिपाही भी न्यूज का अच्छा स्रोत बन सकते हैं। लगातार इनसे सम्पर्क बनाए रखने से इलाके में होने वाली वारदातों की जानकारी रिपोर्टर को तुरन्त मिल जाती है।
लेकिन ये काम आसान नहीं, क्योंकि कोई भी पर्दे के पीछे की बात बताना तो दूर, दोस्ती भी उसी से करना चाहेगा, जिस पर उसे भरोसा हो। इसके लिए रिपोर्टर को सबसे पहले तो उस विभाग या संस्था के चक्कर लगाने होंगे और वहां के लोगों से परिचय बढ़ाना होगा। एक बात याद रखनी चाहिए कि किसी भी विभाग का एक छोटा कर्मचारी भी रिपोर्टर को बड़ी खबर दे सकता है, इसलिए सबसे पहला काम ये है कि रिपोर्टर वहां इस बात की तलाश करे कि उसके काम आने वाले कौन-कौन लोग हैं। हर विभाग में ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें वहां होने वाले हर काम और गतिविधियों की थोड़ी-बहुत जानकारी होती है और ऐसे लोग रिपोर्टर के लिए बड़े काम के हैं।
रिपोर्टर के लिए जरूरी है कि वो अपने सूत्र के लगातार सम्पर्क में रहे। ऐसा होता है कि रिपोर्टर महीनों अपने काम के लोगों से बात नहीं करता और जब खबर की जरूरत पड़ती है, तो उसे फोन करता है। लेकिन तब तक सम्बन्धों में दूरी पैदा हो जाती है और खबर देने के लिए सूत्र का उत्साह भी खत्म हो चुका होता है। ये भी हो सकता है, आपसे दूरी बढ़ने के बाद वो किेसी दूसरे रिपोर्टर का ज्यादा करीबी बन जाए और पहले आपको खबर नहीं दे। सूत्र से जान-पहचान हो जाने के बाद उससे बार-बार सम्पर्क करना चाहिए। हो सकता है कि रिपोर्टर को लम्बे समय तक सूत्र से कोई खबर नहीं मिले, लेकिन उसका हालचाल पूछते रहिए। ये पूछते रहें कि संस्था या उसके दफ्तर में क्या कुछ नया हो रहा है। कई बार तो ऐसी बातचीत के दौरान ही बढि़या खबर निकल आती है।
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रिपोर्टर के लिए ये समझना जरूरी है कि जो आदमी उसके लिए काम कर रहा है, उसका मकसद क्या है? क्योंकि मुमकिन है कि जो आदमी रिपोर्टर को खबर मुहैया करा रहा हो, उसका अपना कोई निजी स्वार्थ हो और किसी को बदनाम करने के लिए वो रिपोर्टर का इस्तेमाल करना चाहता हो। इसलिए किसी को सूत्र बनाने से पहले उसके चाल और चरित्र के बारे में पूरी जानकारी रिपोर्टर को हासिल कर लेनी चाहिए। इससे बाद में धोखा खाने का डर नहीं रहता
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सूत्र से सम्पर्क बनाए रखने का सबसे आसान तरीका है कि रिपोर्टर के पास उसका फोन नम्बर जरूर हो और मुलाकात भले ही कम हो, फोन पर उससे बातचीत होती रहे। सूत्र के घर का या निजी नम्बर भी रिपोर्टर के पास जरूर होना चाहिए। यहां पर एक बात का उल्लेख जरूरी है कि रिपोर्टर को अपने सूत्र के घर के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए।
कई बार ऐसा होता है कि रिपोर्टर जब अपने सोर्स को फोन करे, तब व्यस्तता की वजह से वो बात ही न कर पाए। इसलिए इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि सोर्स का फ्री टाइम क्या है, कब वो फुरसत में बात कर सकता है। साथ ही रिपोर्टर को अपने सूत्र से लगातार सम्पर्क तो बनाए रखना चाहिए, लेकिन उसका इस्तेमाल तभी करना चाहिए, जब जरूरत हो।
ये सही है कि सूत्र से ज्यादातर बातचीत फोन पर ही होती है, लेकिन समय-समय पर उससे मिलते रहना भी जरूरी है। कई बार ऐसे लोग सार्वजनिक जगहों पर बात करने से कतराते हैं। ऐसे में घर पर आराम से बातचीत हो सकत है। ऐसी मुलाकात से आत्मीयता बढ़ती है और एक-दूसरे पर भरोसा भी।
रिपोर्टर को इतना सावधान रहना चाहिए कि उससे कोई बड़ी गलती न हो जाए। याद रखें कि आपी खबर देश, समाज या किसी समूह पर बड़ा असर डाल सकती है। दंगे की खबर किसी दूर के इलाके में खलबली मचा सकती है। इसलिए किसी भी सूरत में कोई गलती नहीं होनी चाहिए। 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में आतंकी हमले के दो दिन बाद कुछ चैनलों ने खबर दिखा दी कि कुछ और आतंकवादी रेलवे स्टेशन और कुछ दूसरी जगहों पर गोलियां चलाते हुए घूम रहे हैं। इस खबर से मुम्बई और देश के दूसरे हिस्से में दोबारा सनसनी फैला दी। बाद में पता चला कि खबर गलत थी
करते समय रिपोर्टर अपना दिमाग खुला रखे और बातचीत में खबरों की टोह भी लेता रहे। हो सकता है कि बातचीत की एक लाइन से ही बड़ा स्कूप मिल जाए और दूसरे दिन रिपोर्टर और उसकी खबर सुर्खियों में हो। लेकिन य तभी सम्भव है जब रिपोर्टर अपनी बीट से बखूबी वाकिफ हो।
रिपोर्टर को चाहिए कि वो अपने सूत्र को ये जरूर बता दे कि उसकी दी गई सूचनाओं का वो कैसे इस्तेमाल करेगा, ताकि बाद में सूत्र किसी मुश्किल में न फंसे।
खबर निकालने के लिए अपने सूत्र को पूरा वक्त दें। सूत्र से जल्दबाजी या दबाव में काम नहीं लेना चाहिए। ऐसा करने से भयंकर भूल हो सकती है और आखिरकार नुकसान रिपोर्टर को ही उठाना पड़ेगा। कई बार तो सूत्र धमाकेदार खबर दे सकता है, लेकिन रिपोर्टर को अन्दर की कोई खबर मिले, तो उसे खबर से जुड़ी जानकारी अपने सूत्र को भी बतानी चाहिए। खबर की पुष्टि में ऐसी जानकारी काफी मददगार साबित हो सकती है।
इस तरह हम कह सकते है कि सूत्र या सोर्स किसी स्टोरी को लोगों तक पहुंचाने में रिपोर्टर के लिए सूत्रधार की तरह काम करते हैं। यानी यही वो जरिया हैं, जिसकी पहली सूचना के आधार पर रिपोर्टर किसी खबर की परत दर परत खोलता है और वो खबर ब्रेकिंग या एक्सक्लूसिव न्यूज के तौर पर दर्शकों के सामने होती है।
सावधानियां
किसी को सूत्र बनाने से पहले कुछ सावधानियां जरूरी है। रिपोर्टर को अपने सोर्स के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए। मसलन
-उसका नाम क्या है?
-कहां का रहने वाला है?
-उसके करीबी लोग कौन हैं?
-पहले उसने कहां-कहां काम किया है।
-जहां वो काम करता है, वहां के ज्यादातर लोगों से उसके संबंध कैसे हैं।
-वो किस पद पर काम करता है और विभाग में उसकी कितनी पैठ है।
रिपोर्टर के लिए ये समझना जरूरी है कि जो आदमी उसके लिए काम कर रहा है, उसका मकसद क्या है? क्योंकि मुमकिन है कि जो आदमी रिपोर्टर को खबर मुहैया करा रहा हो, उसका अपना कोई निजी स्वार्थ हो और किसी को बदनाम करने के लिए वो रिपोर्टर का इस्तेमाल करना चाहता हो। इसलिए किसी को सूत्र बनाने से पहले उसके चाल और चरित्र के बारे में पूरी जानकारी रिपोर्टर को हासिल कर लेनी चाहिए। इससे बाद में धोखा खाने का डर नहीं रहता।
रिपोर्टर के लिए जरूरी नहीं है कि वो खबर में हमेशा अपने सूत्र के नाम का खुलासा करे। रिपोर्टर को अपने सूत्र के बारे में दूसरों को कभी जानकारी नही देनी चाहिए। जरूरी हो, तो रिपोर्टर को अपने सूत्र का नाम छिपाना चाहिए। खासकर तब जब नाम सामने आने पर सूत्र की नौकरी या जीवन पर कोई खतरा हो। सूत्र कोई जूनियर अधिकारी है, तो उसका नाम सामने आने पर बड़े अधिकारी उससे नाराज होकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कोई सूत्र अपराध, आतंकवादी संगठन या माफिया के बारे में कोई जानकारी देता है, तो उसके जीवन पर खतरा हो सकता है। ऐसे में सूत्र के नाम को गोपनीय रखना रिपोर्टर की जिम्मेदारी है।
लेकिन रिपोर्टर से उसके वरिष्ठ सहयोगी, सूत्र का नाम और उसके सम्पर्क का पता पूछ सकते हैं, ताकि वो खुद भी खबर की सत्यता की जांच कर सकें। रिपोर्टर अपने वरिष्ठ सहयोगी से सूत्र का नाम नहीं छिपा सकता, लेकिन रिपोर्टर अपने वरिष्ठ सहयोगी से सूत्र का नाम गोपनीय रखने का आग्रह कर सकता है।
खबर को लेकर कानूनी विवाद की स्थिति में अदालत भी रिपोर्टर से सूत्र का नाम पूछ सकती है। अदालत को सूत्र का नाम नहीं बताने पर रिपोर्टर को सजा भी हो सकती है। इसलिए बेहतर है कि रिपोर्टर अपने गोपनीय सूत्र से सूचना इकट्ठा करे, लेकिन मुमकिन हो, तो आधिकारिक सूत्रों से भी उसकी जांच-पड़ताल कर ले और उस पर ऑफिशियल वर्जन लेने के बाद ही रिपोर्ट फाइल करे। ऐसा करने पर आधिकारिक सूत्र सामने आ जाते हैं और रिपोर्टर को अपनी असली गोपनीय सूत्र को सामने लाने की जरूरत कभी नहीं पड़ती।
रिपोर्टर को इतना सावधान रहना चाहिए कि उससे कोई बड़ी गलती न हो जाए। याद रखें कि आपी खबर देश, समाज या किसी समूह पर बड़ा असर डाल सकती है। दंगे की खबर किसी दूर के इलाके में खलबली मचा सकती है। इसलिए किसी भी सूरत में कोई गलती नहीं होनी चाहिए। 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में आतंकी हमले के दो दिन बाद कुछ चैनलों ने खबर दिखा दी कि कुछ और आतंकवादी रेलवे स्टेशन और कुछ दूसरी जगहों पर गोलियां चलाते हुए घूम रहे हैं। इस खबर से मुम्बई और देश के दूसरे हिस्से में दोबारा सनसनी फैला दी। बाद में पता चला कि खबर गलत थी। एक रेलवे स्टेशन पर एक मेटल डिटेक्टर गिर पड़ा, जिसकी धमाकेदार आवाज से स्टेशन पर भगदड़ मच गई। पुलिस और जांच एजेंसियों को बुला लिया गया और छानबीन के बाद पुलिस ने खबर का खंडन कर दिया। इस खबर ने रिपोर्टर और चैनल दोनों को मुश्किल में डाल दिया। काश, रिपोर्टर ने Fool और Devil की बातों में नहीं आकर Angel से सम्पर्क किया होता, तो रिपोर्टर और चैनल के सामने इस तरह की मुसीबत खड़ी नहीं होती।
इसलिए जब भी कोई सूचना मिले, तो सबसे पहले अपने विश्वसनीय सोर्स (Angel) से सम्पर्क करके सौ फीसदी तय कर लें, कि खबर पूरी तरह पक्की है। उसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।
शैलेश: बनारस हिन्दून विश्व विद्यालय में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान दैनिक जागरण के लिए रिपोर्टिंग। अमृत प्रभात (लखनऊ, दिल्लीज) में करीब 14 साल तक काम। रविवार पत्रिका में प्रधान संवाददाता के तौर पर दो साल रिपोर्टिंग। 1994 से इेक्ट्रॉवनिक मिडिया में। टीवीआई (बी आई टीवी) आजतक में विशेष संवाददाता। जी न्यूसज में एडिटर और डिस्क वरी चैनल में क्रिएटिव कंसलटेंट। आजतक न्यूलज चैनल में एक्जिक्यूतटिव एडिटर रहे । प्रिंट और इलेक्ट्रिॉनिक मीडिया में 35 साल का अनुभव।
डॉ. ब्रजमोहन: नवभारत टाइम्स से पत्रकारिता की शुरूआत। दिल्ली में दैनिक जागरण से जुड़े। 1995 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। टीवीआई (बीआई टीवी), सहारा न्यूतज, आजतक, स्टार न्यूज, IBN7 जैसे टीवी न्यूर चैनलों और ए.एन.आई, आकृति, कबीर कम्युनिकेशन जैसे प्रोडक्शचन हाउस में काम करने का अनुभव। IBN7 न्यूकज चैनल में एसोसिएट एक्जिक्यूंटिव प्रोड्यूसर रहे । प्रिंट और इलेक्ट्रॉंनिक मीडिया में 19 साल का अनुभव।