–डॉ॰रामप्रवेश राय
जिस प्रकार हमारी फिल्मों/सिनेमा मे स्क्रिप्ट की मांग के अनुसार ‘एंटेरटेनमेंट’ का तड़का लगता है कुछ उसी प्रकार हिन्दी के बारे मे बात–चीत करते समय हिन्दी–अंग्रेज़ी की प्रतिस्पर्धा का भाव आ जाता है। ऐसा शायद इसलिए भी होता है कि अंग्रेज़ी और यूरोपीय भाषाएँ आधुनिकता के द्योतक के रूप मे जानी जाती है। टेकी,टेक सैवी,सोशल मीडिया,हाईटेक आदि शब्द भी आधुनिकता से जुड़े है जिसका प्लेटफार्म अंग्रेज़ी है। हमारे देश मे भी यह मान्यता है कि एलीट क्लास कि भाषा तो अंग्रेज़ी है जिसकी पहुँच नई तकनीक तक है। लेकिन यदि सोशल मीडिया की बात करें तो ये भाषायी प्रतिस्पर्धा बहुत कम नज़र आती है। सोशल मीडिया मे हिन्दी का क्रेज़ क्यों बढ़ रहा है? वेब 2.0 और ऑनलाइन माध्यम मे हिन्दी का स्वरूप क्या है? ये इस विमर्श के प्रमुख अवयव है।
सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म की उपलब्धता जिस तकनीक के माध्यम से संभव हुई है वह है वेब 2.0 तकनीक। इस तकनीक ने सभी इंटरनेट यूजर्स को कंटेन्ट शेयर करने की आज़ादी प्रदान की है जो अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता को और व्यापक स्थान सुलभ कराता है। मुख्य रूप से वेब 2.0 ने प्रोजुमर की विचारधारा को जन्म दिया है, अर्थात प्प्रोडूसर+कंज़्यूमर। अब कंज़्यूमर के हाथ मे कंटेन्ट बनाने और दुनिया को उपलब्ध कराने का मौका मिल गया है। इस संदर्भ मे स्वर्गीय गुरुदत्त की फिल्म प्यासा की याद आना सहज ही है क्योंकि ब्लॉग/सोशल मीडिया के इस दौर मे उनको पब्लिशर के चक्कर नहीं काटने पड़ते। वेब 2.0 तकनीक ने हमे अनेक सुविधाएं प्रदान की है, कुछ प्रमुख सुविधाएं/प्रयोग इस प्रकार है–
विकी – सहभागीज्ञानऔरसूचनाकाअनूठाउदाहरण
ब्लाग– लिखनेकेशौकीनोंकेलिएअप्रतिमप्लेटफार्म
माइक्रो–ब्लागिंग– त्वरित विचार प्रेषण कि सुविधा सिर्फ 140 अक्षरो मे, ट्विटर आदि
फोक्सोनोमी– इसके अंतर्गत हम सोशल बुक्मार्किंग का फायदा उठाते है और किसी वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते है,वेबसाइट के किसी कंटेन्ट को हाइलाइट कर सकते है, कमेन्ट लिख सकते है और शेयर भी कर सकते है। उदाहरण– डिगो॰कॉम।
आरएसएस (रिच साइट समरी)- येऔटोमैटिकअपडेटकीसुविधाप्रदानकरताहै।
विडियो/आडियो शेयरिंग– यू ट्यूब, पॉडकास्ट आदि।
सोशलमीडियामेहिन्दीप्रयोगकाएकमिश्रितस्वरूपहमारेसामनेआताहै।जैसे– लिपि देवनागरी और भाषा हिन्दी, लिपि रोमन और भाषा हिन्दी तथा दोनों भाषाओ और लिपियों का मिश्रण एक साथ जिसको समान्यतया हिंगलिश की संज्ञा भी दी जाती है। अनेक भाषाविद भाषा के साथ इस प्रकार के प्रयोग को सिरे से नकारते है और भाषा की पवित्रता के लिए मुखर स्वर भी देते है। साहित्य लेखन मे भाषा का एक स्वरूप होना ठीक है किन्तु सोशल मीडिया मे इस तरह का बंधन लगाना संभव नहीं लगता। अभिप्राय यह है कि हिन्दी के इन सभी स्वरूपों को हिन्दी ही मानकर आत्मसात करने के बाद विमर्श करना होगा। अर्थात भाषा भाव और प्रेषणीयता पर ध्यान देने कि अधिक आवश्यकता न कि भाषा रचना और व्याकरण पर। पिछले कुछ वर्षो मे ऑनलाइन मीडिया मे हिन्दी का प्रयोग तेज़ी से बढ़ा है और अभिनव प्रयोग भी देखने को मिल रहे है। एन॰डी॰टी॰वी॰ के वरिष्ठ पत्रकार रवीश ने ‘लप्रेक’ नाम से फेसबुक शुरू किया जिसमे वे प्रेम कि नैनो कहानियो की शृंखला लिखते है और हाल ही मे लप्रेक नाम से ही इस कहानी संकलन को किताब के रूप मे प्रकाशित भी किया है। कविता लेखन की जापानी विधा हाइकु का प्रयोग भी सोशल मीडिया मे काफी मिल रहा है। अनेक हाइकु कवितायें उपलब्ध है और साथ ही नए रचनाकारो के लिए आमंत्रण भी है। हाइकु कविता का एक उदाहरण जो ‘हिन्दी हाइकु’ वेबसाइट से उद्धृत है इस प्रकार है–
प्यूली ढालों पे (5 अक्षर)
पहाड़ मुस्कुराया (7 अक्षर)
बसंत आया । (5 अक्षर)
इसमे 5:7:5 अक्षरो मे ही पूरा वाक्य गढ़ना होता है। इस विधा के प्रथम प्रयोगकर्ता रवीन्द्रनाथ ठाकुर को माना जाता है जिन्होने अपने जापान प्रवास के दौरान इस विधा से रूबरू हुये। के.एम.जी. फिक्की की रिपोर्ट 2014 के अनुसार नीलेश मिश्रा का रेडियो कार्यक्रम ‘यादों का इडियट बॉक्स–याद शहर की कहानी’ सर्वाधिक लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रमो मे से एक है। याद शहर की कहानी यूट्यूब और नीलेश मिश्रा की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है और करीब 20 देशो मे यह कार्यक्रम इंटरनेट के माध्यम से सुना जा रहा है। रेडियो पर कहानी सुनाना अत्यंत अभिनव प्रयोग है जो सफल भी है। डॉ॰ सुधांशु उपाध्याय, वरिष्ठ कवि, इलाहाबाद अपने फसेबुक पर लगातार कवितायें पोस्ट करते है और उनकी कविताओ की मांग उनके फोलोवर्स और फ्रेंड्स मे हमेशा रहती है। कुछ समय पूर्व ही उन्होने अपनी कविता ‘बेटियाँ’ –
बड़ी बेटियाँ बेटी कम
अधिक सहेली हो जातीं हैं
जिस घर में केवल बेटे हों
माएँ और अकेली हो जाती हैं !
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पोस्ट की जिसको 150 से अधिक लाइक मिले तथा लगभग 45 शेयर हुये। फेसबुक पर काव्य और विचार विमर्श के साथ–साथ भाषा चिंतन भी जारी है। इलाहाबाद के भाषाविद डॉ॰ पृथ्वीनाथ पाण्डेय फेसबुक पर भाषा को लेकर चिंताएँ व्यक्त करते रहते हैं और साथ ही हिन्दी का सही प्रयोग भी बताते हैं। न्यूज़ चैनलो मे जब एक खबर आई कि ‘मृतक के परिजनो को मुआवजा दिया जाएगा’ तबडॉ॰पांडेयनेफेसबुकपरपरिजनोकेस्थानपरस्वजनोशब्दकाप्रयोगसहीबतायाऔरइसकीव्याख्याभीकी।तात्पर्ययहहैकिसोशलमीडियाइतनीआज़ादीप्रदानकररहाहैकिआसानीसेअपनीबातकहीजासकेऔरउसपरअन्यलोगोकीप्रतिकृयाभीमिलसके।
अबमौलिकप्रश्नयहउठताहैकिसोशलमीडियापरहिन्दीप्रयोगकायेमाहौलकैसेबनरहाहै? इस संबंध मे तीन प्रमुख बिन्दु सामने आते है– पहला तकनीक का विकास और भाषा चयन मे आसानी। भारत की कई तकनीकी संस्थाएं जैसे सीडैक आदि ने भाषा प्रयोग की दिशा मे काफी अनुसंधान किया है जिसके फलस्वरूप हिन्दी लिखने की जटिलता, फांट की समस्या और की–बोर्ड मे भाषा परिवर्तन जैसी कई समस्याओं का निवारण हो गया है। दूसरा है बाज़ार का दबाव। गजेट्स मार्केट मे काफी प्रतिस्पर्धा का दौर है जिसके कारण कंपनियाँ भाषा के आधार पर बाज़ार नियोजित कर रही है। सभी ईमेल प्रोवाइडर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स हिन्दी मे लिखने की सुविधा उपलब्ध करा रही है। यूट्यूब की बात करें तो कार, गेजेट्स आदि की समीक्षाएं हिन्दी मे भी उपलब्ध है यहाँ तक कि अनेक विषयों के लेक्चर भी हिन्दी मे उपलब्ध है। इसका सीधा अर्थ ये है कि क्रेता जिस भाषा मे बोलता है बाज़ार उसी भाषा मे उसको उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करायेगा। और यदि कहीं हिन्दी भाषा–भाषी क्रेता शक्ति के रूप मे अपनी भाषा कि मांग करे तो बाज़ार के रुख मे और तेज़ी आ जाएगी क्योंकि हिन्दी भाषा–भाषी क्रेता काफी संख्या मे है। तीसरा प्रमुख बिन्दु है हिन्दी और उसकी सहयोगी भाषाओं से हमारा जुड़ाव। घरों मे, संस्कारिक आयोजनो मे, उत्सवों मे और भावनाओं को व्यक्त करने मे हम हिन्दी/देसज भाषाओं का ही प्रयोग करते है। सोशल मीडिया जैसा प्रभावी माध्यम मिलने से अपनी भाषा मे भावों को व्यक्त कर भाषा का विस्तार भी हो रहा है और कहीं न कहीं हिन्दी और अँग्रेजी की प्रतिस्पर्धा भी कम होती दिख रही है जो की एक स्वस्थ प्रजातन्त्र के विकास मे सहभागी प्रयास का प्रतीक है। भाषाओं के लिए समान आदर भाव का विकास होना, भाषिक स्तर पर अपनी रोटियाँ सेंकने वालों पर कुठराघात भी साबित हो सकता है।