डॉ. कुमार कौस्तुभ
मोबाइल पत्रकार को अपने ऑडिएंस की दिलचस्पी का ध्यान रखते हुए कम से कम समय और शब्दों में खबर देने की सलाहियत होनी चाहिए- यही मोबाइल पत्रकारिता का मूल मंत्र है
पत्रकारिता को पहले भाषाई आधार पर हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, वगैरह और फिर इसके बाद बीट यानी विभाग के आधार पर परिभाषित किया जाता था- राजनीतिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, बिज़नेस या आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान पत्रकारिता, इत्यादि। बीट आधारित पत्रकारिता का विभाजन अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा और अब यह समझ पुरानी पड़ती जा रही है क्योंकि वर्तमान दौर में पत्रकारों को “Jack of All Trades, Master of None” मानने की परिपाटी शुरु हो चुकी है।
माना जाता है कि कोई भी विषय ऐसा नहीं, जिसे वो कवर नहीं कर सकते। वहीं, दूसरी ओर समाचार माध्यमों के विकास के साथ-साथ पत्रकारिता की नई-नई विधाओं का जन्म हुआ है, मसलन, न्यूज़ एजेंसी की पत्रकारिता, अखबारी पत्रकारिता, टीवी पत्रकारिता, रेडियो पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता और अब मोबाइल पत्रकारिता। जाहिरा तौर पर, पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत अपनी जगह, लेकिन हर माध्यम की कुछ अपनी विशेषताएं और जरूरतें होती हैं जिनके मुताबिक अलग-अलग माध्यमों में काम करनेवाले पत्रकारों या मीडियाकर्मियों को अपने काम को अंजाम देने के लिए तैयार होना पड़ता है।
जैसे कोई ट्रक ड्राइवर ट्रेन नहीं चला सकता या फिर उसे बस चलाने में भी तब तक दिक्कत हो सकती है जब तक कि वह थोड़ा अभ्यास नहीं कर ले, ठीक उसी तरह अखबारों के पत्रकारों को टीवी या रेडियो के पत्रकारों को ऑनलाइन या अखबारों में काम करने के लिए नए सिरे से तैयार होना पड़ता है, क्योंकि हरेक माध्यम अपने-आप में एक-दूसरे से अलग है, उनकी व्यवस्था अलग है, उनकी अपनी-अपनी मांग है, भले ही पत्रकारिता का बुनियादी अर्थ सबके लिए एक ही है- खबर देना, खबरों की प्रस्तुति। लेकिन, तौर-तरीके अलग-अलग हैं। आमतौर पर प्रिंट या अखबारों में पत्रकारों से विस्तार से खबर लिखने की उम्मीद की जाती है, तो टीवी में कम से कम शब्दों में दृश्यों और ध्वनि आधारित सामग्री के आधार पर खबर देनी होती है, वहीं रेडियो में न तो लंबी रिपोर्ट के लिए समय होता है, ना ही खबरों की पुष्टि करनेवाले दृश्य, तो कुल मिलाकर ध्वनियों और बोलते शब्दों के जरिए खबर देनी की चुनौती पत्रकारों के सामने होती है।
मोबाइल पर पत्रकारिता एक प्रोफेशनल(पेशेवर) काम है, लेकिन काफी लोग शौकिया तौर पर भी इसे अपना रहे हैं। इसका मकसद है अपने आसपास घट रही तमाम ऐसी घटनाओं और स्टोरीज़ को कवर करना जिनको शायद मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह मिलना मुमकिन नहीं है। फेसबुक पर मोबाइल ट्रेनर यूसुफ उमर की ओर से शुरु किये गए पेज “हैशटैग ऑवर स्टोरीज़ (Hashtag our Stories)” पर ऐसे तमाम लोगों की ओर से डाले गए वीडियो देखे जा सकते हैं, जो शायद पेशेवर पत्रकार नहीं हैं, लेकिन मोबाइल से मोबाइल पर पत्रकारिता में दिलचस्पी जरूर रखते हैं
ऑनलाइन पत्रकारिता का फलक विस्तृत है और परिदृश्य मिला-जुला है, उसमें टीवी भी है, रेडियो भी है और प्रिंट तो है ही, यानि ऑनलाइन पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करनेवाले मीडियाकर्मियों को किसी भी खबर की प्रस्तुति में एक ही साथ कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है- प्रिंट की तरह खबर से जुड़ी जानकारियों की डिटेलिंग भी रिपोर्ट में मौजूद हो, अगर उससे जुड़े दृश्य (विजुअल) और तस्वीरें मौजूद हों, तो उनका भी यथोचित उपयोग हो, अखबारों में इस्तेमाल होनेवाले और टीवी पर चलनेवाले इन्फोग्राफिक्स का भी उपयोग हो और पर्याप्त एंबियंस(ध्वनि) सामग्री का भी उपयोग हो। वहीं, एजेंसी के पत्रकारों की तरह खबर फ्लैश करने में भी वो पीछे न रहें। मोबाइल पत्रकारिता वस्तुतः ऑनलाइन पत्रकारिता का विस्तार है जिसके लिए माध्यम बदल गया है और चुनौतियां और बड़ी हैं।
ऑलनाइन पत्रकारिता में संप्रेषण का माध्यम जहां डेस्कटॉप और लैपटॉप पर खुलनेवाली यानि देखी जा सकनेवाली वेबसाइट्स हैं, वहीं मोबाइल पत्रकारिता में यह काम मोबाइल फोन पर और टैबलेट्स पर उपयोग होनेवाले एप के माध्यम से होता है। फर्क यह लगता है कि ऑनलाइन पत्रकारिता का उपभोक्ता जहां टीवी और अखबार की तरह थोड़ा समय देकर, कुछ विस्तार से खबरों और उससे जुड़ी सामग्रियों के बारे में जानना चाहता है, वहीं, मोबाइल पर खबरों के उपभोक्ता के पास अधिक समय तो नहीं ही होता है और अधिकांशतः डेटा और बैटरी ड्रेन होने यानी खत्म होने से बचाने की चिंता भी उसे रहती रही है (कम से कम भारत में, जहां इंटरनेट धीरे-धीरे सस्ता हो रहा है और अब मोबाइल भी मजबूत बैटरी वाले आने लगे हैं)।
बहरहाल, मोबाइल से सीधा अभिप्राय ऐसी डिवाइस से ही है, जिसे चलते-फिरते-घूमते-टहलते हुए इस्तेमाल किया जाए और मोबाइल फोन इसी जरूरत को पूरा करते हैं। पहले चर्चा की जा चुकी है कि इंटरनेट से लैस स्मार्ट-मोबाइल फोन अब सिर्फ बात करने या सोशल मीडिया पर चैटिंग-मैसेजिंग के लिए ही नहीं बल्कि खबरों से बाखबर रहने के लिए भी उपयोग में खूब लाए जा रहे हैं। मोबाइल के इसी उपयोग ने मोबाइल पत्रकारिता को जन्म दिया और क्या ऑनलाइन बल्कि, तमाम अखबारों से लेकर टीवी और रेडियो तक के पत्रकार अब मोबाइल पत्रकारिता को भी अपने काम का हिस्सा बनाने लगे हैं, क्योंकि उन्हें मोबाइल उपयोग करनेवाले अपने उपभोक्ताओं से जुड़ना है, उन तक खबरें पहुंचानी हैं, उनकी प्रतिक्रियायें भी हासिल करनी हैं।
तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि पत्रकारिता के हथियार के रूप में मोबाइल सिर्फ मोबाइल पत्रकारिता के लिए ही नहीं बल्कि टीवी, प्रिंट, रेडियो और ऑनलाइन पत्रकारिता में भी इस्तेमाल हो रहे हैं। पहले बताया जा चुका है कि पत्रकारों के लिए अपने काम को अंजाम देने के वास्ते सरल, सहज, सस्ते और बेहद सुविधाजनक डिवाइस के रूप में उभरे हैं मोबाइल, जो एक ही साथ लेखन, कैमरे, ऑडियो रिकॉर्डिंग और ओबी वैन जैसे सारे काम पूरे करने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। तो कहना न होगा कि मोबाइल पत्रकारिता अब बड़ी तेजी से परंपरागत पत्रकारिता की जगह लेती जा रही है, क्योंकि यही समय की मांग है।
मोबाइल पत्रकारिता की बात करते हुए जेहन में यही बात सबसे पहले उभरती है कि आखिर कैसे की जा सकती है मोबाइल पत्रकारिता या मोबाइल से पत्रकारिता? यह सवाल बड़ा आसान भी है और बहुत कठिन भी। वैसे, यह तो परम सत्य है कि किसी भी उद्देश्य को आप कठिन समझकर सोचें, तो उसे पूरा करना मुश्किल ही हो जाएगा, और अगर आसान समझकर कोशिश करेंगे, तो उसे और आसान बनाने की राहें भी निकलती जाएंगी। मोबाइल पत्रकारिता पर भी कमोबेश यह बात फिट बैठती है। सबसे पहले यह जान लीजिए कि मोबाइल से पत्रकारिता इसलिए बेहद आसान है क्योंकि आज हर किसी के हाथ में मोबाइल है, ज्यादातर लोगों के हाथों में स्मार्टफोन हैं, जो इंटरनेट से लैस हैं। चाहे वह कोई मीडियाकर्मी हो, या फिर आम आदमी- मोबाइल तो सबके पास है।
लिहाजा, अगर आप मीडियाकर्मी या पत्रकार हैं, तो आपके लिए अपनी खबरों के उपभोक्ता या बाजार तलाशने की जरूरत नहीं, क्योंकि वह सहज-सुलभ है और उपभोक्ताओं के लिए भी यह सुविधा है कि उन्हें ताजा-तरीन खबरों को जानने के लिए अखबार खरीदने बुक-स्टॉल पर जाने या कमरे में जाकर टीवी ऑन करने या लैपटॉप या डेस्कटॉप ऑन करने की जरूरत ही नहीं है। खबरों के उत्पादक (प्रोड्यूसर-पत्रकार-प्रस्तुतकर्ता) और उपभोक्ता (आम लोग)- दोनों ही ऐसे माध्यम से सीधे-सीधे जुड़े हैं, जो उनकी पहुंच से दूर नहीं, बल्कि उनकी मुट्ठी में ही है।
तो बाज़ार भी है तैयार, खोजने की जरूरत नहीं, पर सवाल वही है कि मोबाइल पत्रकारिता के लिए आप हैं कितने तैयार? कैसे करें मोबाइल पत्रकारिता? इसके लिए किन चीजों की जरूरत है? क्या सिर्फ हाथ में एक मोबाइल फोन होने भर से हो जाएगी मोबाइल पत्रकारिता?– ये तमाम सवाल जरूर आपके मन में कौंध रहे होंगे और आप सोच रहे होंगे कि आखिर मोबाइल पत्रकारिता कैसे शुरु की जा सकती है? सबसे बड़ी बात तो ये है कि अगर आप पर मोबाइल पत्रकारिता या सिर्फ पत्रकारिता की ही धुन सवार है, तो मोबाइल बन सकता है आपके लिए सबसे कारगर और मजबूत हथियार। फिर भी अगर आपके मन में यह धुकधुकी चल रही हो कि आखिर कैसे कर सकते हैं मोबाइल पत्रकारिता तो हम आपकी यह समस्या भी दूर कर देते हैं।
मोबाइल पत्रकारिता के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप किसी मीडिया संगठन, किसी अखबार या किसी टीवी चैनल या फिर किसी वेबसाइट से जुड़े हों। अगर आप इनमें से किसी माध्यम से जुड़े हों, तो और भी अच्छी बात है। लेकिन आपको बुनियादी तौर पर यह जानना चाहिए कि आपके अंदर खबरों की भूख हो, खबरों को सूंघने, उनको पकड़ने और खबर बनाने (यानी घटनाक्रम और सूचनाओं को अपनी सोच, समझ और इच्छा के मुताबिक एंगल देने की क्षमता), जी हां, खबर बनाने की क्षमता हो और आपके हाथ में हो एक मोबाइल हैंडसेट। यह बात तो तय है कि आपका हथियार जितना ही आधुनिक, उन्नत और मजबूत होगा, आपका काम उतना ही आसान हो जाएगा।
आजकल कम से कम और अधिक से अधिक दाम में एक से एक बढ़िया कैमरे, रैम और स्टोरेज कैपिसिटी वाले मोबाइल फोन बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो मोबाइल पत्रकारिता के लिए बेहद मुफीद हो सकते हैं। लेकिन पहले यह तय होना जरूरी है कि आज किस तरह की मोबाइल पत्रकारिता करना चाहते हैं। कहने का मतलब यह है कि जैसी जरूरत वैसा हथियार होना चाहिए। अगर आप प्रिंट मीडिया से जुड़े हैं तो आपके लिए कम स्टोरेज और रैम वाला एक सामान्य स्मार्टफोन भी बहुत उपयोगी हो सकता है जिसमें नोट्स लेने की सुविधा हो और आप ईमेल से अपनी सामग्री अपने अखबार तक भेज सकते हों। चुंकि प्रिंट में तस्वीरों की भी अहमियत है, तो कैमरा जितना बेहतर क्वालिटी का हो, उतना बढ़िया।
आमतौर पर सभी स्मार्टफोन इंटरनेट के इस्तेमाल की सुविधा देते हैं, लिहाजा खबर और उससे जुड़ी सामग्री अखबार या प्रकाशन-प्रसारण संस्था तक भेजना बेहद आसान है, बशर्ते इंटरनेट का नेटवर्क और कनेक्टिविटी ठीक हो। अगर नेटवर्क समय पर नहीं मिले, तो आपकी मोबाइल आपको रुला भी सकता है। आपको मोबाइल पर हिंदी या अंग्रेजी या जिस भाषा में भी आप काम करते हैं, उसमें टाइपिंग में दक्षता होनी चाहिए, तभी आप अपने तरीके से अपनी खबर लिखकर प्रकाशन या प्रसारण के लिए भेज सकेंगे, अन्यथा सिर्फ फोन पर खबर के बारे में बता भर देने के बाद आपको अपनी संस्था के कॉपीराइटर, संपादकीय सहयोगी या फिर स्क्रिप्ट राइटर पर निर्भर रहना पड़ेगा और आधी-अधूरी जानकारी, अपूर्ण तथ्यों के अलावा सही एंगल के अभाव में आपकी खबर मारी भी जा सकती है। हालांकि अक्सर ऐसा होता है कि फील्ड से रिपोर्टर सिर्फ खबर से संबंधित सूचनाएं और सामग्रियां भेजते हैं, खबर बनाने का काम संपादकीय विभाग के लोगों के जिम्मे होता है। लेकिन अच्छे रिपोर्टर के लिए जरूरी है कि वो अपनी खबर, अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखे। पहले यह काम मुश्किल था, लेकिन स्मार्टफोन ने इसे आसान कर दिया है।
पत्रकारों पर हमले और उनके कैमरे छीने जाने की खबरें आती हैं। फर्ज कीजिए, आप मोबाइल के सहारे कवरेज कर रहे हों और ऐसी कोई घटना हो, तो आप क्या करेंगे, आप बिल्कुल निहत्थे हो सकते हैं। लेकिन कवर की गई कुछ सामग्री बचाई जा सकती है, बशर्ते आप कवरेज के दौरान समय निकालकर बीच-बीच में आप उसे दूसरे मोबाइल पर या व्हाट्सएप या किसी और माध्यम से न्यूज़ सेंटर को ट्रांसफर करते रहें
अब आप मोबाइल फोन से ही ईमेल पर अपनी पूरी स्टोरी लिखकर छपने के लिए भेज सकते हैं। इसके बाद संपादकीय विभाग का दायित्व उसे अपडेट करने, उसमें कुछ जोड़ने या आवश्यकतानुसार कुछ घटाने का रहता है, जो संपादकीय नीतियों और बुलेटिनों की तात्कालिक जरूरतों के हिसाब से ही तय होता है।
बात टीवी की करें, तो टीवी के रिपोर्टर के लिए मोबाइल आजकल और भी ज्यादा उपयोगी हो गया है, क्योंकि इस हैंडहेल्ड डिवाइस में बड़े-बड़े ओबी वैन तक की छुट्टी कर देने की क्षमता है। लेकिन इसके लिए मोबाइल सेट भी इतना ताकतवर होना चाहिए जिसमें अच्छी क्वालिटी (4K, HD/UHD/FHD) के वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा हो और उसकी लाइवस्ट्रीमिंग (आगे विस्तार से) की सुविधा हो। टीवी पत्रकारिता के लिए मोबाइल के इस्तेमाल या टीवी पर मोबाइल पत्रकारिता का चलन काफी तेजी से बढ़ा है, क्योंकि टीवी पत्रकारिता के पारंपरिक संसाधनों के मुकाबले इसके उपयोग में खर्च काफी कम है। टीवी पत्रकार एक ही साथ खबरों की कवरेज के दौरान विजुअल्स की शूटिंग कर सकते हैं, संबंधित व्यक्तियों के बाइट और ऑडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं, अपने पीस टु कैमरा (PTC) रिकॉर्ड कर सकते हैं, उन्हें टीवी चैनल के पास समाचार फीड के तौर पर भेज सकते हैं, अपनी खबर की स्क्रिप्ट भी खुद लिखकर टीवी के न्यूज़डेस्क को भेज सकते हैं और आवश्कता पड़े तो खबरों के लाइव प्रसारण के दौरान लाइव चैट भी दे सकते हैं (यह कैसे संभव है, इसके बारे में आगे के चैप्टर्स में बताएंगे)। इन सारी पत्रकारीय गतिविधियों को पूरा करने लिए पत्रकार के पास अच्छी क्वालिटी के और शानदार रेजोल्यूशन के कैमरे वाले स्मार्टफोन होने चाहिए जिनमें ब्रॉडकास्टिंग क्वालिटी (4K/HD/UHD/FHD) का वीडियो रिकॉर्ड किया जा सके। वैसे अब तो कई ऐसे मोबाइल एप भी मौजूद हैं, जो सामान्य मोबाइल कैमरे से भी इस तरह की रिकॉर्डिंग की सुविधा देते हैं। ओपन कैमरा, सिनेमा4K, लैप्स इट, सिनेमा FV-5, प्रो कैमरा, स्नैपसीड, प्रोशॉट कुछ ऐसे कैमरा एप हैं जिनके जरिए बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं और वीडियो रिकॉर्डिंग की जा सकती है। यह टीवी-स्टाइल मोबाइल पत्रकारिता हुई।
सोशल मीडिया पर ज्वलंत मुद्दों पर लंबे-लंबे लेख लिखनेवालों की कमी नहीं, लेकिन मोबाइल पत्रकार को इससे बचना चाहिए और थोड़े शब्दों में खबर बताकर उसके अपडेट पर ध्यान देना चाहिए। किसी घटना की वीडियो कवरेज के दौरान भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वीडियो खबर पर केंद्रित हो, न कि फालतू चीजों पर
मोबाइल पत्रकारिता के लिए मोबाइल हैंडसेट भी उन्नत प्रोसेसर वाला और कम से कम 4 से 6 जीबी रैम और 64 से 128 जीबी तक स्टोरेज क्षमता वाला होना चाहिए, ताकि आप आवश्यकतानुसार वीडियो शूट कर सकें। मोबाइल का प्रोसेसर मजबूत और रैम अधिक होने से वह तेज़ गति से काम करता है और हैंग नहीं करता। इसके साथ ही मोबाइल की बैटरी भी कम से कम 4000mAh (मिलीएंपियर) या उससे ज्यादा क्षमता की होनी चाहिए, ताकि बैटरी जल्द डिस्चार्ज न हो और आपका काम बाधित न हो। साथ ही एक पॉवर बैंक भी आपके साथ जरूर रहना चाहिए ताकि मोबाइल की बैटरी को चार्ज करने में दिक्कत न हो। मोबाइल पत्रकारिता के लिए आदर्श माने जानेवाले आईफोन के कैमरे तो बेमिसाल माने जाते हैं, लेकिन उसमें बैटरी बेहद कमजोर पाई जाती रही है, जो जल्द ही डिस्चार्ज होती है। यह आईफोन की सबसे बड़ी खामी मानी जाती है। आईफोन के मुकाबले आजकल मोबाइल पत्रकारिता के लिए सैमसंग, श्याओमी, वन प्लस, ओप्पो, वीवो और मोटोरोला समेत कई दिग्गज कंपनियों के मोबाइल सेट चर्चा में हैं, जो आईफोन के मुकाबले सस्ते भी हैं और शानदार भी।
हालांकि मोबाइल फोन की दुनिया में निरंतर नवीनता आ रही है। टेक्नॉलॉजी में लगातार हो रही प्रगति पत्रकारों जैसे प्रोफेशनल मोबाइल उपयोगकर्ताओं को नई-नई सुविधाएं उपलब्ध करा रही है जिससे उनका काम आसान हो रहा है। टीवी के मोबाइल पत्रकार के पास मोबाइल सेल्फी स्टिक, एक ट्राइपॉड और मोबाइल से जुड़नेवाला लैपल या क्लिप माइक और हेडफोन या इयरफोन भी होने चाहिए, जिनकी जरूरत कई बार बाइट लेने या इंटरव्यू के लिए पड़ती ही है। आजकल आमतौर पर सभी मोबाइल कैमरे फ्लैशलाइट से लैस होते हैं जिनके सहारे कम रोशनी में भी बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं। मोबाइल का उपयोग करनेवाले पत्रकार इसका आवश्यकतानुसार उपयोग कर कर सकते हैं।
वैसे, टीवी के लिए मोबाइल से कवरेज करनेवाले पत्रकारों के लिए सबसे जरूरी यह जानना है कि उनका काम मोबाइल के जरिए और भी सीमित हो जाता है, फैलने की गुंजाइश नहीं रहती। एक तो टीवी की मांग वैसे ही कम शब्दों में बात कहने की है, तो कवरेज या पीटीसी के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि आप उतने ही कम से कम और जरूरी विजुअल रिकॉर्ड करें जितने में आपकी स्टोरी का पैकेज आसानी से तैयार हो जाए। अगर आप फालतू विजुअल रिकॉर्ड करेंगे तो वो आपके मोबाइल की सीमित स्टोरेज को भी जाया करेगा और उसे फीड के रूप में इंटरनेट से भेजने में भी समय लगेगा। क्योंकि इमेज के मुकाबले वीडियो ज्यादा जगह लेता है, और उसे अपलोड या डाउनलोड करने में भी अधिक समय लगता है। तो आपको यह जानना जरूरी है कि आपकी स्टोरी का सबसे दमदार विजुअल कौन सा हो सकता है, और उसे शूट करना आपको नहीं भूलना चाहिए। यही बात पीस टु कैमरा (PTC) की रिकॉर्डिंग में भी लागू होती है।
आपके मोबाइल की सीमित क्षमता आपको बढ़िया पीटीसी के लिए टेक पर टेक लेने का मौका नहीं दे सकती। तो पीटीसी में जो भी बोलना हो, पहले से तय करके और पुख्ता बोलें, ताकि कई बार टेक लेने से मोबाइल का स्टोरेज न घटे। देश में फिलहाल 4जी का जमाना है और 5जी मोबाइल कनेक्टिविटी भी आनेवाली है, लिहाजा मोबाइल से पत्रकारिता में बिजली की सी तेजी आने के आसार हैं। हालांकि, अभी भी देश में बहुत-सी जगहें ऐसी हैं, जहां 3जी कनेक्टिविटी मिलना भी मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में आप मोबाइल पर स्टोरी कवर तो कर सकते हैं, लेकिन उसे प्रसारण और प्रकाशन के लिए न्यूज़-सेंटर पर भेजना संभव नहीं होता। तो पत्रकार को इस बात का भी ध्यान रहना चाहिए कि वह जहां कवरेज के लिए जा रहा है, वहां मोबाइल कनेक्टिविटी कैसी है, क्या वहां इंटरनेट का नेटवर्क मिलेगा या नहीं या इससे जुड़ी क्या दिक्कतें आ सकती हैं और उनसे वो कैसे पार पा सकते हैं.
इसके अलावा कवरेज के दौरान अप्रिय हालात का सामना करने पर वो खुद को और अपने मोबाइल को कैसे बचा सकते हैं, कवरेज की गई सामग्री को कैसे बचा सकते हैं, इसका भी ध्यान रखना चाहिए। कई बार पत्रकारों पर हमले और उनके कैमरे छीने जाने की खबरें आती हैं। फर्ज कीजिए, आप मोबाइल के सहारे कवरेज कर रहे हों और ऐसी कोई घटना हो, तो आप क्या करेंगे, आप बिल्कुल निहत्थे हो सकते हैं। लेकिन कवर की गई कुछ सामग्री बचाई जा सकती है, बशर्ते आप कवरेज के दौरान समय निकालकर बीच-बीच में आप उसे दूसरे मोबाइल पर या व्हाट्सएप या किसी और माध्यम से न्यूज़ सेंटर को ट्रांसफर करते रहें।
आजकल ऐसे एप भी मौजूद हैं जिनके सहारे आप मोबाइल पर अच्छी ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग भी कर सकते हैं। मसलन सिनमा FV5 के पेड वर्जन में फुल एचडी और 4K क्वालिटी की शूटिंग की सुविधा है। एप के सहारे ही आप अपनी स्टोरी एडिट भी कर सकते हैं। तो उनका भी उपयोग जानना चाहिए और उन्हें भी अपनी स्टोरी मुकम्मल बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। एडोबी प्रीमियर, किनेमास्टर, ल्युमाफ्यूज़न, आईमूवी, पॉवर डायरेक्टर और एलाइट मोशन कुछ ऐसे एडिटिंग एप हैं जिनका इस्तेमाल एंड्राइड और आईओएस वाले आईफोन में विजुअल स्टोरी एडिटिंग के लिए होता है। इनके अलावा मूवीमेकर, वीडियोशॉप, क्यूट कट, क्विक, एनिमोटो भी कुछ ऐसे एप हैं जो मोबाइल पर वीडियो एडिटिंग के लिए इस्तेमाल होते हैं। इनके अलावा गूगल स्ट्रीटव्यू एक ऐसा एप है जो 360 डिग्री फोटोग्राफी के लिए है और मोबाइल पत्रकारिता में फीचर स्टोरीज़ के लिए इस्तेमाल हो सकता है। ऑडियो रिकॉर्डिंग के लिए भी ढेर सारे एप उपलब्ध हैं, जो आपकी पत्रकारिता संबंधी जरूरतें पूरी कर सकते हैं।
इस बात का जरूर ध्यान रखें कि अगर आप एंड्राइड मोबाइल पर काम कर रहे हैं तो एक गूगल प्लेस्टोर से ही डाउनलोड करें और आईफोन पर एपल के आईट्यून्स से ही। अन्यथा थर्ड पार्टी एप कई बार मोबाइल के लिए काल भी बन जाते हैं। तो इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने पर मोबाइल आपकी पत्रकारिता का सबसे उपयोगी और धारदार हथियार बन सकता है।
अब बात ऑनलाइन और मोबाइल पर होनेवाली मोबाइल पत्रकारिता की। इस श्रेणी में दोनों तरह के पत्रकार आते हैं- एक तो वे जो किसी प्रकाशन या प्रसारण संस्था/मीडिया से जुड़े हैं और दूसरे वे जो स्वतंत्र पत्रकार हैं, शौकिया तौर पर पत्रकारीय गतिविधियों में संलग्न हैं या समाजसेवा के लिए ‘सिटिजन जर्नलिस्ट’ वाला काम कर रहे हैं। ऐसे दोनों ही तरह के पत्रकारों के लिए आजकल सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और इंस्टाग्राम ऐसे मंच हैं, जिन पर वो बड़े आराम से मोबाइल पत्रकारिता कर सकते हैं, अपना ऑडिएंस खुद ही बना सकते हैं। इन पत्रकारों के लिए भी मोबाइल पत्रकारिता के साधन वही चाहिए जो प्रिंट और टीवी पत्रकारों के लिए जरूरी हैं यानि एक मजबूत मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन। फिर तो आप ही रिपोर्टर, और आप ही संपादक। फेसबुक और यूट्यूब जैसे मंच तो बखूबी लाइवस्ट्रीमिंग (आगे के चैप्टर में विस्तार से देखें) की सुविधा भी देते हैं जिनके जरिए किसी भी खबर की लाइव कवरेज मोबाइल पर मोबाइल के ही सहारे की जा सकती है।
मोबाइल पत्रकारिता करने के इच्छुक व्यक्तियों को यह समझना चाहिए कि खबर कहां है और उसे किस तरह से वो कवर कर सकते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि एक तस्वीर ही खबर बताने के लिए काफी होती है। तो मोबाइल पत्रकार को उस तस्वीर की पहचान होनी चाहिए जिसमें खबर छुपी हो। इसके लिए फोटोग्राफी की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जरूरत नहीं, लेकिन कैमरे का सही तरीके से उपयोग करना आना चाहिए। आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस मोबाइल के कैमरे खुद ही गाइड कर देते हैं कि बेहतरीन तस्वीर कैसे आ सकती है और फोटो खींचने का बुनियादी ज्ञान और सलीका हो, तो तस्वीर में छुपी खबर को बाहर निकालना मुश्किल नहीं। उसके साथ एक लाइन का कैप्शन भी खबर को मुकम्मल बना सकता है। और यही मोबाइल पत्रकार की सार्थकता है।
मोबाइल पत्रकारिता करने के इच्छुक व्यक्तियों को यह समझना चाहिए कि खबर कहां है और उसे किस तरह से वो कवर कर सकते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि एक तस्वीर ही खबर बताने के लिए काफी होती है। तो मोबाइल पत्रकार को उस तस्वीर की पहचान होनी चाहिए जिसमें खबर छुपी हो। इसके लिए फोटोग्राफी की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जरूरत नहीं, लेकिन कैमरे का सही तरीके से उपयोग करना आना चाहिए
मोबाइल पर पत्रकारिता एक प्रोफेशनल(पेशेवर) काम है, लेकिन काफी लोग शौकिया तौर पर भी इसे अपना रहे हैं। इसका मकसद है अपने आसपास घट रही तमाम ऐसी घटनाओं और स्टोरीज़ को कवर करना जिनको शायद मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह मिलना मुमकिन नहीं है। फेसबुक पर मोबाइल ट्रेनर यूसुफ उमर की ओर से शुरु किये गए पेज “हैशटैग ऑवर स्टोरीज़ (Hashtag our Stories)” पर ऐसे तमाम लोगों की ओर से डाले गए वीडियो देखे जा सकते हैं, जो शायद पेशेवर पत्रकार नहीं हैं, लेकिन मोबाइल से मोबाइल पर पत्रकारिता में दिलचस्पी जरूर रखते हैं। इन वीडियो स्टोरीज़ में साफ-साफ देखा और समझा जा सकता है कि मोबाइल पत्रकारिता की मांग क्या है और इसे कितने रचनात्मक तरीके से अंजाम दिया जा सकता है। टीवी और अखबार में खबरें देने के पारंपरिक फॉर्मेट यानी “2 वीओ 3 बाइट्स 1 पीटीसी” के स्ट्रक्चर से अलग हटकर मोबाइल पर स्टोरीज़ दिखाने की नई शैली विकसित की जा रही है जिसमें प्रयोगों की बहुत गुंजाइश है। 10 सेकेंड से 2 मिनट तक की अवधि में बगैर वॉयस ओवर के, सिर्फ वीडियो और ग्राफिक्स-टेक्स्ट के जरिए, या सिर्फ वीडियो के जरिए कहानियां कहने का अंदाज बहुत से लोगों को शायद पसंद ना भी आए, लेकिन, ये तो मानना ही होगा कि बहुत-कुछ नया हो रहा है इस क्षेत्र में जो शायद सबसे अलग है। जो बात 2 मिनट के वीडियो के जरिए कही जा सकती है, उसे 30 सेकेंड के ग्राफिक्स आधारित पैकेज के जरिए भी कहा जा सकता है क्या, यह भी देखना पड़ेगा और समझना पड़ेगा।
बुनियादी बात यह है कि खबर देनी है तो उसे कम से कम समय में, कम से कम साधनों के इस्तेमाल से, कितने दिलचस्प तरीके से दिया जा सकता है। इस दृष्टि से मोबाइल पत्रकारिता में प्रयोगों की बहुत गुंजाइश है और यह आप पर यानी मोबाइल के जरिए पत्रकारिता करनेवाले पर निर्भर करता है कि वो अपने मोबाइल का कितना और किस तरह से इस्तेमाल इस काम के लिए करता है और कितनी खूबसूरत रिपोर्ट्स पेश करता है। ये बात किसी एक किताब या गाइड से नहीं सीखी जा सकती, बल्कि नितांत निजी प्रयोगों से ही सीखी जा सकती है और एक व्यक्ति से दूसरे और फिर तीसरे व्यक्ति तक पहुंच सकती है। यहां, इस पुस्तक में हम सिर्फ आपको कुछ ऐसे टिप्स दे सकते हैं जिनके आधार पर आपको आगे बढ़ना होगा और अपनी राह खुद तय करनी होगी।
यह भी समझना बेहद जरूरी है कि मोबाइल पत्रकारिता के लिए खबर पर फोकस होना जरूरी है। वैसे तो मोबाइल पत्रकारिता चलते-फिरते कहीं भी हो सकती है, जहां खबर मिल जाए, और यही इसका ध्येय भी होना चाहिए, लेकिन अगर पत्रकार को पहले से पता हो कि अमुक जगह कोई खबर बन सकती है, तो वह उसके लिए पहले से तैयारी कर सकता है। और यह चीज सिर्फ मोबाइल पत्रकारिता के लिए ही नहीं, किसी भी तरह की पत्रकारिता के लिए जरूरी है। अगर मुद्दा पहले से पता हो, तो रिसर्च करके बैकग्राउंडर जुटाना मुश्किल नहीं होता और उससे स्टोरी मजबूत ही होती है। लिहाजा, प्लान करके चलें, तो मोबाइल पर भी बेहतरीन स्टोरी की जा सकती है।
दूसरी बात यह है कि सोशल मीडिया पर ज्वलंत मुद्दों पर लंबे-लंबे लेख लिखनेवालों की कमी नहीं, लेकिन मोबाइल पत्रकार को इससे बचना चाहिए और थोड़े शब्दों में खबर बताकर उसके अपडेट पर ध्यान देना चाहिए। किसी घटना की वीडियो कवरेज के दौरान भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वीडियो खबर पर केंद्रित हो, न कि फालतू चीजों पर। तेज़ रफ्तार जिंदगी में मोबाइल का इस्तेमाल करनेवाले लोगों के पास समय कम होता है और क्रिकेट मैच जैसी अगर कोई बहुत ज्यादा आकर्षक या दिलचस्प घटना न हो, तो लोग सोशल मीडिया पर भी उस पर ज्यादा समय नहीं दे सकते। लिहाजा, मोबाइल पत्रकार को अपने ऑडिएंस की दिलचस्पी का ध्यान रखते हुए कम से कम समय और शब्दों में खबर देने की सलाहियत होनी चाहिए- यही मोबाइल पत्रकारिता का मूल मंत्र है।
कुमार कौस्तुभ टीवी पत्रकार हैं. फिलहाल एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस से संबद्ध. नौकरी के अलावा ‘मीडिया और रूस में आतंकवाद पर संवाद’ विषय पर शोध प्रगति पर. 2014 में हिंदी टीवी पत्रकारिता पर ‘टीवी समाचार की दुनिया’ नाम की किताब किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित. मीडिया में आने से पहले 2000 में रूसी भाषा से हिंदी में रूसी कवि अलेक्सांद्र पूश्किन की कविताओं का अनुवाद ‘ओ मेरे वसंत के वर्ष’ प्रकाशित. 1999 में IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा, 2003 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से पत्रकारिता औऱ जनसंचार में मास्टर्स डिग्री, 1997 में रूसी भाषा में एमए जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से। जनसंचार और पत्रकारिता में NET, Ph.D., रूसी भाषा और साहित्य में जूनियर रिसर्च फेलोशिप प्राप्त. टीवी पत्रकारिता के सिलसिले में टीवी टुडे-आजतक, श्री विनोद दुआ, ज़ी न्यूज़, दूरदर्शन समाचार, आकाशवाणी से जुड़े रहे। सम्पर्क:Mobile- 9953630062 & 9910220773
Email- kumarkaustubha@gmail.com