सुशील यति
नेल्सन मंडेला का कहना था कि “खेल की ताक़त से दुनिया को बदला जा सकता है। यह लोगों को एकजुट करती है, उन्हें प्रेरणा देती है और नस्लीय भेदभाव दूर करने में यह सरकारों से भी ज़्यादा ताक़तवर है।” ऐसे में एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट से उम्मीद की जाती है कि वो एक बेहतरीन कम्यूनिकेटर (संचारक) हो। पत्रकारिता के छात्रों को अपने कैरियर के चुनाव मे विषय के चुनाव के साथ साथ स्वयं को किसी एक क्षेत्र मे विशेषज्ञयता (specialization) भी हासिल करना चाहिए और इसके लिए हमारे इर्द-गिर्द जो मीडिया वातावरण हैं उसकी समझ भी छात्रों को बढ़ाने चाहिए जिससे उनके भविष्य के निर्णय सही दिशा में हों। आज हम स्पोर्ट्स जर्नलिस्म (sports journalism) या खेल पत्रकरिता की बात करेंगे। इस क्षेत्र में आज नए अवसरों की उपलब्धता है तथा योग्य पेशेवर पत्रकारों/ विशेषज्ञों की आवश्यकता है। स्पोर्ट्स का क्षेत्र बहुत व्यापक हो चुका है, तथा इसमें बहुत से विविध आयाम विकसित हुये हैं। इसका एक स्वतंत्र आर्थिक मॉडल भी विकसित हुआ है जिसमें बहुत से लोग जुड़े होते हैं।
खेल पत्रकारिता या स्पोर्ट्स जर्नलिज़्म हमेशा से चुनौतियों से भरा क्षेत्र रहा है, सूचना तकनीक के विकास और प्रसार ने इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। आज मैच के दौरान की पल पल की ख़बर दर्शक व पाठक के पास पहले से ही मौजूद होती है। ऐसे में यह समझना ज़रूरी है कि किस प्रकार खेल प्रेमियों का ध्यान अपनी रिपोर्टिंग और विश्लेषण की तरफ़ खींचा जाए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि, खेल पत्रकारिता या स्पोर्ट्स जर्नलिज़्म हमेशा से ही महत्व का क्षेत्र रहा हैं। न्यूज पेपर मे खेल पेज और टेलीविजन पर खेलों पर आधरित विशेष पैकेज की लोकप्रियता इसका एक उदाहरण हैं। हमारे समाज में खेलों को वरीयता दी जाती है, लोग खेलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। आज स्पोर्ट्स से जुड़े पेजों को सबसे ज़्यादा पढ़ा जाता है और टीवी पर भी स्पोर्ट्स प्रोग्राम की व्यूवरशिप या दर्शकों की संख्या अधिक होती है। इसलिए खेलों को समझने और उसका सही विश्लेषण करने वाले पत्रकारों की मीडिया के क्षेत्र मे हमेशा ज़रूरत होती हैं। टीवी पर क्रिकेट और फ़ुटबाल जैसे लोकप्रिय खेलों का टीवी प्रसारण भी लोग पसंद से देखते हैं। अख़बारों मे खेल के महत्व को आप ऐसे समझ सकते हैं कि अख़बार पूरा पेज खेल की ख़बरों की कवरेज़ के लिए देते है, और विशेष अवसरों पर जैसे ओलम्पिक खेलों और वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजनो के समय एक से अधिक पेज की सामग्री तैयार की जाती है। वहीं टीवी न्यूज चैनल पर भी खेल आधारित कार्यक्रमों की लगभग बाढ़ सी आ जाती है, और खेल के विविध पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विशेष प्रोग्राम तैयार किये जाते हैं। टेलीविजन न्यूजरूम मे स्पोर्ट्स डेस्क होती हैं जिसके काम को सामान्य दिनों में भी विशेष महत्व दिया जाता हैं और खेल रेपोर्टिंग को समझने वाले पत्रकारों को इस डेस्क पर नियुक्ति होती हैं और ज़िम्मेदारी दी जाती हैं। इसके इतर स्पोर्ट्स जूर्नलिज्म के क्षेत्र मे अवसरों की उपलब्धता आज पहले की तुलना में और बढ़ गयी हैं। आज इलेक्ट्रोनिक मेडिया के दौर मे खेलों को पूरी तरह समर्पित 24 घंटे के स्पोर्ट्स चैनल मौजूद है।
स्पोर्ट्स के लिए ‘स्टोरी’ लिखना न्यूज राइटिंग मे एक अलग तरह की तैयारी और महारत की माँग करता है। यह एक्शन स्टोरी का एक रूप होता है। लेकिन स्पोर्ट्स जूर्नलिस्ट से एक न्यूज राईटर की तुलना मे कूछ और भी उम्मीद की जाती है। सामान्य तरीक़े से अगर हम समझे तो हम यह कह सकते है कि एक सामान्य ख़बर लिखने मे और स्पोर्ट्स स्टोरी लिखने मे क्या अंतर होता है! सामान्य न्यूज राइटिंग जर्नलिस्ट आमतौर पर छोटे शब्दों और वाक्यों का चयन करता हैं। स्पोर्ट्स डेस्क पर बैठे पत्रकार को यह आज़ादी होती है कि वह अपनी सामग्री को बेहतर और प्रभावी बनाने के लिए चित्रमय (pictorial) और चमकीले (colourful) शब्दों का इस्तेमाल कर सकता है।
आइए समझने की कोशिश करते है कि एक सामान्य ख़बर लिखने मे और स्पोर्ट्स स्टोरी लिखने मे क्या अंतर होता है?
सामान्य ख़बर
लेखनी में छोटे शब्द और वाक्यों और छोटे पैराग्राफ़ का चुनाव किया जाता है वहीं स्पोर्ट्स के लेखक की लेखनी में वह अधिक स्वतंत्र होता हैं। स्पोर्ट्स के लेखक के पास अधिक स्वतंत्रता होती हैं साथ ही उसकी लेखनी में अधिक ऊर्जा और उत्साह का भाव होता है। एक न्यूज़ रिपोर्टर ख़बर लिखते समय घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में अपनी राय ज़ाहिर नहीं कर सकता, अगर वो अपनी राय ज़ाहिर करता है तो वो एक सही रिपोर्ट नहीं मानी जायेगी। वही दूसरी तरफ़ एक न्यूज़ रिपोर्टर को कभी कभार इस बात की छूट होती है कि कूच हद तक वो ऐसा कर सकता है। कई बार स्पोर्ट्स के बारे में लिखते समय वो ऐसे ‘स्लैंग’ शब्दों का प्रयोग भी कर सकता है जिसे कभी भी न्यूज़ के संदर्भ में प्रयोग नहीं किया जाता है। खेल के बारे में और खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बारे में लिखते और बोलते समय स्पोर्ट्स जूर्नलिस्ट अपनी भाषा को और अलंकृत कर सकता है और खेल संपादकों द्वारा इसे इसे बढ़ावा भी दिया जाता है।
रहस्य और रोमांच किसी भी खेल का महत्वपूर्ण अंग है, खेलों को होने वाली रिपोर्टिंग और लेखन में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। दर्शक या पाठक जब आपकी रिपोर्ट व विश्लेषण को देखे व पढ़े तो उसे कभी भी यह नहीं लगना चाहिए कि वो खेल के मैदान से दूर है। आपकी रिपोर्टिंग में खेल के महत्वपूर्ण पल झलकने चाहिए। आमतौर पर खेल प्रेमी दर्शक व श्रोता जब किसी अखबार में किसी खेल के बारे में पढ़ते है तो यह तथ्य समझना अहम होता है कि जो पाठक या दर्शक आपका विश्लेषण पढ़ेगा या देखेगा वो खेल देख चुका होगा। उसे अब आपसे कुछ अतिरिक्त जानकारियों की उम्मीद है। अगर आप बहुत ही सपाट बयानी करेंगे तो शायद आप एक अच्छे खेल पत्रकार नहीं है।
स्पोर्ट्स स्टोरी लिखना/ लिखने की प्रक्रिया
कोई भी स्पोर्ट्स स्टोरी लिखना एक चुनौती से भरा कार्य होता है। सामान्यतौर पर कोई भी ख़बर लिखने के कुछ नियम स्पोर्ट्स में भी अपनाये जाते हैं। तो आइए देखते है कि एक अच्छी स्पोर्ट्स स्टोरी लिखने के नियम व सिद्धांत क्या है?
1 लीड – किसी भी न्यूज़ स्टोरी का पहला हिस्सा। इस हिस्से से आप लोगों का ध्यान अपनी और खींचते है। अगर पाठक या दर्शक का ध्यान अपनी स्टोरी के पहले हिस्से में खींचने में नाकाम होता है तो आप अपने दर्शक को अपनी स्टोरी पर रोक कर नहीं रख पाएँगे।
2 मध्य भाग (बॉडी) – स्पोर्ट्स स्टोरी के इस हिस्से में लीड (स्टोरी) के पहले हिस्से को ही विस्तार दिया जाता है अर्थात उसे लेकर और जानकारी दी जाती है। उदाहरण के तौर पर, अगर आपकी स्टोरी किसी ऐसे खिलाड़ी के बारें में है जो कि इतना महत्वपूर्ण नहीं समझा जा रहा था लेकिन उसका प्रदर्शन आशा के विपरीत रहा तो आपके स्टोरी के इस हिस्से में और विस्तार से इस बात की चर्चा करनी चाहिए।
3 लेखनी का शास्त्रीय सिद्धांत – ख़बर लिखने के कूछ सिद्धांत ऐसे है जिनका अनुसरण करके आप अपनी लेखनी में धार पैदा कर सकते है। ये सिद्धांत है ‘5 W सिद्धांत’। अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘W’ से बना यह सिद्धांत यह दर्शाता है कि कैसे ‘W’ से बंने वाले पाँच प्रशनों के उत्तर ढूँढ कर आप अपनी लेखनी को और बेहतर कर सकते है। जैसे: कौन जीता? किसके ख़िलाफ़ टीम हासिल की? कितने रन से जीत हासिल हुई? टीम की जीत में किन खिलाड़ियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया?
4 अंतिम भाग (Wrap Up ) – यह आपकी स्टोरी का अंतिम भाग होता हैं। इसे आप जितने रोचक ढंग से लिखेंगे उससे आपकी पहचान बढ़ेगी। इस भाग में सामान्यतौर हम कोच या खिलाड़ी के किसी कथन (quote) से इसे पूरा करते है। प्रत्येक स्टोरी में किसी खिलाड़ी का वर्ज़न (कथन या quote) ले आना मुश्किल होता है लेकिन मुश्किलों के बीच से हाई अपनी राह बनाना एक अच्चे स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट की पहचान होती है।
उदाहरण के लिए एक स्पोर्ट्स स्टोरी को पढ़ते है और समझने की कोशिश करते है:
साभार: एनडीटीवी इंडिया
स्पोर्ट्स स्टोरीज के प्रकार:
एडवांस स्टोरी : इस तरह का लेखन आमतौर पर आगामी खेल के आयोजनों को लेकर होता है जहाँ स्पोर्ट्स जूर्नलिस्ट दर्शकों और पाठकों में उस आयोजन को लेकर एक उत्सुकता जागता है। यह सीधे सीधे एक न्यूज़ स्टोरी हो सकती है, बैकग्राउंड स्टोरी हो सकती है या फिर एक प्रीडिक्सन स्टोरी हो सकती है जहाँ रिपोर्टर आने वाले आयोजनों को लेकर कुछ अनुमान लगाए, टीमों के पिछले प्रदर्शनों को लेकर कूछ विश्लेषण प्रस्तुत करें।
कवरेज स्टोरी: इस तरह की रिपोर्टिंग घटित होने या खेल या आयोजन की ऑन-दी-स्पॉट कवरेज के लिए इस्तेमाल होता है। यहाँ रिपोर्टर स्टेडीयम में मौजूद रहता है और वहीं से रिपोर्टिंग करता है। कवरेज स्टोरी में आँकड़ो का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि आप से उम्मीद की जाती है की आप सबसे तेज और अपडेटेड आँकड़े प्रस्तुत करेंगे।
एडवांस कवरेज: इस तरह की स्पोर्ट्स स्टोरी के पहले हिस्से में आगामी खेल आयोजन की जानकारी होती है तथा आख़िरी हिस्से में पिछले बार के आयोजन को लेकर सूचनाएँ और विश्लेषण होता है। उदाहरन के तौर पर क्रिकेट वर्ल्ड कप एक बहुत बड़ा खेल आयोजन है। इसे लेकर क्रिकेट प्रेमी इंतज़ार करते है और इससे जुड़ी सूचनाओं को जानने को लेकर इच्छुक रहते है। ऐसे में आगामी वर्ल्ड कप को लेकर किसी भी ख़बर में उनकी उत्सुकता होगी। इस तरह कवरेज करते समय रिपोर्टर तफ़सील से पिछले वर्ल्ड कप के बारे में बात कर सकता है: कौन कौन सी टीमें सेमी-फ़ाइनल तक पहुँची? किस टीम के किस खिलाड़ी का प्रदर्शन बेहतरीन रहा? कौन से खिलाड़ी सबसे ज़्यादा चर्चा में रहे? कौन से खिलाड़ियों से उम्मीदें थी लेकिन वो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये? किस देश की टीम की ग़लती से उन्हें बहुत नुक़सान उठाना पड़ा? आदि आदि।
स्पोर्ट्स जर्नलिस्म के क्षेत्र में कैरियर की सम्भावना:
स्पोर्ट्स जर्नलिज़म एक ऐसी विशेषज्ञता वाला क्षेत्र है जिसमें कैरीयर की आपर सम्भावनाएँ है। प्रिंट, रेडीयो, टीवी, ऑनलाइन तथा अन्य मीडिया माध्यमों में स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट की ज़रूरत होती है और अगर आप अपने काम को समझते है और खेलों पर अच्छी कॉपी लिख सकते है तो इस क्षेत्र में आपकी बहुत आवश्यकता है।स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट अलग अलग स्थानों पर विभिन्न रूपों में काम करते है जैसे किसी की विशेषज्ञता केवल एक ही खेल को लेकर होती है जैसे कि सिर्फ़ क्रिकेट या हॉकी। कूछ की सिर्फ़ एक टीम को लेकर होती है वो उस टीम को बराबर फ़ॉलो करते है। अगर आप खेल को अच्छे से समझते है तो आप किसी टीम के साथ जुड़कर भी काम कर सकते है। साथ ही सा, इस क्षेत्र के लोग पब्लिक रिलेशन, एडवरटाइजिंग तथा कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में भी काम कर सकते है।
स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट के उत्तरदायित्व:
- स्पोर्ट्स राइटर/ रिपोर्टर प्रिंट और एलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए
- स्पोर्ट्स एडिटर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए
- रेड़ीयो और टीवी के लिए स्पोर्ट्स शो के एंकर
- स्पोर्ट्स कमेंटेटर/ अनाउंसर
- टीवी और रेडीयो में प्रोग्राम प्रोड्युसर और निदेशक
- ऑनलाइन राइटर/ रिपोर्टर
- ऑनलाइन एडिटर स्पोर्ट्स वेबसाइट के लिए
- स्पोर्ट्स टीमों के मीडिया प्रतिनिधि
- विभिन्न खेल आयोजनो और लीग के मैनेजर जैसे आईपीएल
स्पोर्ट्स जर्नलिज्म का क्षेत्र बहुत विकसित हुआ है लेकिन अभी में इसमें अपार सम्भावनाएँ मौजूद हैं। अंग्रेज़ी भाषा में कुछ अच्छी पत्रिकाएँ मौजूद है लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं में खेल को लेकर स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं का आभाव साफ़-साफ़ दिखता है। हालाँकि इंटरनेट ने स्पोर्ट्स जर्नलिज्म के क्षेत्र में आपार संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। खेल से जुड़े विषयों पर लगातार ब्लॉग लेखन और सोशल मीडिया पर बहसें हो रही हैं जो कि एक सकारात्मक पहलू को उजागर करता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मीडिया शोधार्थी हैं। इनसे sushil.yati@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।)